आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

मीना कुमारी नाज़: जो मेरी रात थी वो आप का सवेरा है

उर्दू अदब
                
                                                         
                            उदासियों ने मिरी आत्मा को घेरा है 
                                                                 
                            
रू-पहली चाँदनी है और घुप अंधेरा है 

कहीं कहीं कोई तारा कहीं कहीं जुगनू 
जो मेरी रात थी वो आप का सवेरा है 

क़दम क़दम पे बगूलों को तोड़ते जाएँ 
इधर से गुज़रेगा तू रास्ता ये तेरा है 

उफ़ुक़ के पार जो देखी है रौशनी तुम ने 
वो रौशनी है ख़ुदा जाने या अंधेरा है  आगे पढ़ें

2 वर्ष पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर