यह बबूल का वन ही अच्छा
चन्दन वन में नाग बहुत हैं!
उपवन को सुरभित करने में
कोई अवसर कभी न चूके
सबकी इच्छा है उपवन में
हर डाली पर कोयल कूके
जो कोयल के अण्डे पालें
ऐसे भी तो काग बहुत हैं !
स्वर साधन करने में सरगम -
के सातों स्वर, स्वर से नापे
वातावरण बने गायन का
सबने अपने राग अलापे
पर अब झगड़ा है ढपली का
इक ढपली है राग बहुत हैं!
सारे पैर दौड़ते दीखे
सफल हुये पाँवों के पीछे
पगलाये से लोग दौड़ते
अपनी इच्छाओं के पीछे
अगर पाप ही धोने हैं तो
धो लो कहीं प्रयाग बहुत हैं!
साभार: ज्ञान प्रकाश आकुलकी फेसबुक वाल से
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2 वर्ष पहले
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