आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

इस बार खुद को सुंदर पाया है

POORNIMA SOGARWAL
2:29
                
                                                         
                            इस बार खुद को सुंदर पाया है
                                                                 
                            

नाक में नथनी
गले में प्यारा सा हार पाया है
जिस में छुपे एक नन्हे से शीशे ने चेहरे का नूर बताया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।

कंधे जितने बाल मुस्कुरा रहे हैं आज
माथे पर छोटी सी बिंदिया शायद उड़ा रही है लाखों की निंदिया बिना किसी छुअन के चेहरे पर कोई चमक लाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।

शांति से भंग मेरे कंगन कई घुंगरू से भरे हैं
लगता है जैसे सुनी कलाई पर सरगम बन के मिले हैं
इन कंगनों के इंतजार ने मेरी कलाइयों को खूब तड़पाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है

आज नीले रंग के कुर्ते को लाल आंचल से सजाया है
कई अरसों बाद ही सही पर अपने पन का एहसास आया है
इस बार घर की याद को इन कपड़ों ने भगाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है

इस बार दिए की ज्योत ने मेरे मन में एक दीप जलाया है
जैसे खुद को खुद से मिलाया है इस बार चेहरे की चमक ने आंखों को मुस्कुराना सिखाया है
वैसे ही जैसे खुलती जुल्फों ने जीने का तरीका बताया है
इस बार खुद को पहले से भी ज्यादा सुंदर पाया है
क्योंकि डर से जीत आत्मा विश्वास का दीप जलाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।।
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
2 वर्ष पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर