22 February 20251 mins 4 secs
कातिलाना है चाहत तेरी
आ बसा दे तू जन्नत मेरी
तेरे बिन जियूं ना मरूं...
हां हां मैं,तुम से ही प्यार करुं
तू मिला है तो,खुशियां मिल गयी
रब से हम को इजाजत मिल गयी
पलकों पर तुम को रखूं...
हां हां मैं, तुम से ही प्यार करूं
जब से तुम से ये आंख है मिल गयी
रातों की सारी नींद भी उड़ गयी
सपनों में तुम को देखूं....
हां हां मैं,तुम से ही प्यार करूं
तूझ में बसती है दुनिया मेरी
तू हकीकत,या सपना कोई
सजदा मैं खुद को करुं...
हां हां मैं, तुम से ही प्यार करूं
कातिलाना है चाहत तेरी
आ बसा दें तू जन्नत मेरी
तेरे बिन जियूं ना मरूं...
हां हां मैं,तुम से ही प्यार करुं
हां हां मैं,तुम से ही प्यार करुं...
20 August 20240 mins 37 secs
मैं सोचती हूँ,
अगर ये इश्क ही ना होता, तो क्या होता?
ये गुलाब, ये खत, ये तस्वीरों की क्या कीमत होती?
ये गुलाब बस एक फूल होता,
ये खत सिर्फ कागज होते,
ये तस्वीरें बेजान होतीं।
मैं सोचती हूँ,
अगर ये इश्क ही ना होता, तो क्या होता?
ना होता बारिशों का इंतज़ार,
ना होता बातों का इकरार,
ना आँखों से बातें होतीं,
ना विरह में बिताई गई वो रातें होतीं।
लाल रंग भी फिर सिर्फ एक रंग होता,
मैं सोचती हूँ,
अगर ये इश्क ही ना होता, तो क्या होता?
22 March 20240 mins 8 secs
Name - suhana rajput
Class - 7
School - Air force school kanpur cantt
Address - Balurghat , Shuklaganj ,
Unnao , Uttar Pradesh , India
8 January 20240 mins 17 secs
मन को हताश करना बहुत आसान है
इस मन में आशा जगाना बहुत मुश्किल है
जब हम इस मन में आशा जगाते हैं
हर वो चीज़ मिल जाती है
जिसके बारे में हम सपने देखते हैं ।
~ डॉ मीरा सिंह
पुणे, महाराष्ट्र
29 October 20231 mins 36 secs
अपने दिल की कभी सुन ले जरा
कुछ करना है तो सोच बड़ा
उड़ जा तू परिंदे आसमानों में
अपने सपनों के पंखों तले
है तेरी जमी ये आसमां तू बन जा इसका हौसला
रुक ना इन टेढ़ी राहों से चट्टानों पर भी चलता जा
तू खुद को कर साबित साबित
तू खुद को कर साबित साबित
तो एक दिन मिल जायेगी मंजिल
तू खुद को कर साबित साबित
अंगारों पर चलने के वासते
तेरा हर करम हो वतन हो के वासते
ना सुन लें कभी दुनिया की बातों को
दे तू ये फैसला तेरे खुद के हाथों को
ये दिन भी तेरा ये रात तेरी जज्बातों से रख बात तेरी
कर पार तू हर एक राह तेरी फिर मुश्किल हो आसान तेरी
तू खुद को कर साबित साबित
तू खुद को कर साबित साबित
तो एक दिन मिल जायेगी मंजिल
तू खुद को कर साबित साबित
2 July 20232 mins 29 secs
इस बार खुद को सुंदर पाया है
नाक में नथनी
गले में प्यारा सा हार पाया है
जिस में छुपे एक नन्हे से शीशे ने चेहरे का नूर बताया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।
कंधे जितने बाल मुस्कुरा रहे हैं आज
माथे पर छोटी सी बिंदिया शायद उड़ा रही है लाखों की निंदिया बिना किसी छुअन के चेहरे पर कोई चमक लाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।
शांति से भंग मेरे कंगन कई घुंगरू से भरे हैं
लगता है जैसे सुनी कलाई पर सरगम बन के मिले हैं
इन कंगनों के इंतजार ने मेरी कलाइयों को खूब तड़पाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है
आज नीले रंग के कुर्ते को लाल आंचल से सजाया है
कई अरसों बाद ही सही पर अपने पन का एहसास आया है
इस बार घर की याद को इन कपड़ों ने भगाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है
इस बार दिए की ज्योत ने मेरे मन में एक दीप जलाया है
जैसे खुद को खुद से मिलाया है इस बार चेहरे की चमक ने आंखों को मुस्कुराना सिखाया है
वैसे ही जैसे खुलती जुल्फों ने जीने का तरीका बताया है
इस बार खुद को पहले से भी ज्यादा सुंदर पाया है
क्योंकि डर से जीत आत्मा विश्वास का दीप जलाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।।
15 March 20233 mins 7 secs
मैं शिक्षक हूँ
सवाल फिर वही था, पर मैं जवाब नया बताता हूँ l
कौन हूँ, मैं क्या करता हूँ, कविता के ज़रिये सुनाता हूँ∥
सुन्दर सी इक बगिया है और मैं हूँ उसका बाग़बान l
जहाँ नन्हे पौधे फल-फूलकर बनते इक दिन वृक्ष महान∥
मेरा काम है इन नन्हे परिंदों के परों में जान भरना l
ताकि वो सीख पाएं अपने हौसलों की उड़ान भरना∥
इनके सपनों की ज़मीं को मंज़िल के आसमां से जोड़ता हूँ l
सुनहरे कल के सृजन हेतु मैं अपना पुरुषार्थ निचोड़ता हूँ∥
इन कच्चे घड़ों को अपने ज्ञान-तप से पकाता हूँ l
इसलिए शिल्पी शिल्पकार जैसे नामों से पुकारा जाता हूँ∥
कलम, किताब, चॉक और बालक, इन्हीं से मेरी पहचान है l
अध्यापन है मेरा पेशा और मुझे इस पर अभिमान है∥
तराश कर हुनर इनके, मैं इन्हे क़ाबिल बनाता हूँ l
मैं एक शिक्षक हूँ जनाब और बच्चों को पढ़ाता हूँ∥
ज्ञान और विवेक से मैं इनके भविष्य गढ़ता हूँ l
अपने उत्तम अध्यापन हेतु स्वयं घंटों तक पढता हूँ∥
प्रलय और सृजन का बीज मेरी गोद में पलता है l
मैं विशिष्ट कृति हूँ विधाता की, मेरे पीछे ज़माना चलता है∥
जो बीच राह मैं भटक गए मैं उन्हें राह दिखलाता हूँ l
मैं शिक्षक, गुरु, मैं मार्गदर्शक, मैं ही राष्ट्रनिर्माता हूँ∥
ये महज़ पेशा नहीं, सेवा है, जिसको हमने अपनाया है l
बड़ी ख़ुशी से इस ज़िम्मेदारी को हमने गले लगाया है∥
आओ मिल संकल्प करें कि हम अपना फ़र्ज़ निभाएंगे l
अपने प्यारे भारतवर्ष को फिर विश्वगुरु बनाएंगे∥
11 January 20231 mins 22 secs
हाँ बनती है ना कभी बहरी ,
कभी गूंगी ,कभी अंधी
स्त्री है ना जानती है जोड़ कर
रखने जो हैं धागे उन्हें एक माला में
डरती भी है! दहल जाता है दिल
जब सुनती है ऊंचे स्वर की बातें
मूक रह जाती है ,अनदेखा करती है जाने कितनी बातें
क्यूंकि उन्हें पता है मोती बिखर जाते हैं माला से
अगर उलझ गये जो इसके धागे
तभी तो मुस्कुराती है ,उड़ाती है हर गुब्बार को
क्यूंकि रिश्तों को जोड़े रखने में
हाँ बनना पड़ता है कभी-कभी अंधा, बहरा ,गूंगा |
----एकता कोचर रेलन
24 December 20221 mins 51 secs
वाह दाता वाह! क्या खेल रचाया है?
देकर अत्यंत सुख या दुःख
कभी ना कभी तो तूने
सबको ज़रूर नचाया है
आकर इस माया नगरी में
कुछ संवर गए तो कूच बिखर गए
ऐसे ही तो खेल खेलकर
तूने सबको सिखाया है
वाह दाता वाह! क्या खेल रचाया है?
हो कर हमारी रग -रग से वाक़िफ़
कितना सोच समझकर हमें बनाया है
जो आए थे इस दुनिया में
करके तुझसे एक ही वादा
था की हम ना भूले कभी तुझको
था तूने अच्छे से समझाया
करके दुआ भेजा तूने हमें
आकाश से इस धरती पर
कहा तूने की हूँ अब मैं
एक आज़ाद परिंदा
जा उड़! फैला ले अपने पर
ले जो तू चाहे कुछ भी किंतु
तेरे लिए खुले हैं ये दर
देख दुनिया के ये रंगीन रंग
भूले हम सरे अपने सपने वादे
अंत में, भारी पड़ी ये दुनिया दारी
पड़ा इस का बोझ सब पर भारी
फिर गुम होकर इसी दुनिया में
हम भूले तेरे सारे सपने वादे
जो खाईं मैंने ठोकर
तुझ से जुड़ा होकर
फिर भी बरसाई कृपा तूने मुझ पर
हुआ मेैं सच से परिचित
जब मिला तेरा आसरा
अंत में तूने ही संवारा
तूने ही सम्भाला
बस करता है हमारी दृष्टि पर निर्भर
कि ये पृथ्वी है स्वर्ग या नरक
इस नज़र को तू सुबुद्धि दे
कि आऊँ मैं अपने भाई जनों के काम
उन पर भी हों वर्षा ज्ञान की
लेकर तेरा प्यारा सा नाम
आख़िर में, खोकर मैंने तुझको
मुझ में ही तो पाया है!
वाह दाता वाह! क्या संसार बनाया है?
वाह दाता वाह! क्या खेल रचाया है?
11 June 20220 mins 52 secs
इस तपन से और कितना जलाओगे मुझे
मेरी जमुना से कब मिलाओगे मुझे
मैं भी देखना चाहता हूं बरात अपनी
रोना धोना बंद करो कंधों पे सजालो मुझे
डरा नहीं हूं मैं थोड़ा इंतजार ख़ुशी का है
जरूरी तो नहीं लगाकर गले और जला दे मुझे
जाने कितने बगीचों का उजाड़ होती है लकड़ी
मेरे साथ खुद कितनी जिंदा हैं ये दिखाओगे मुझे
दुनियां की चाहत को हकीकत में जानना है
मत जलाओ इतना अभी सब को बताना है मुझे।
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
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