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Mera Kavya

मेरा काव्य

Mere Alfaz

मेरा काव्य

हां हां मैं, तुम से ही प्यार करूं

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सभी 44 एपिसोड

कातिलाना है चाहत तेरी
आ बसा दे तू जन्नत मेरी
तेरे बिन जियूं ना मरूं...
हां हां मैं,तुम से ही प्यार करुं
तू मिला है तो,खुशियां मिल गयी
रब से हम को इजाजत मिल गयी
पलकों पर तुम को रखूं...
हां हां मैं, तुम से ही प्यार करूं

जब से तुम से ये आंख है मिल गयी
रातों की सारी नींद भी उड़ गयी
सपनों में तुम को देखूं....
हां हां मैं,तुम से ही प्यार करूं
तूझ में बसती है दुनिया मेरी
तू हकीकत,या सपना कोई
सजदा मैं खुद को करुं...
हां हां मैं, तुम से ही प्यार करूं

कातिलाना है चाहत तेरी
आ बसा दें तू जन्नत मेरी
तेरे बिन जियूं ना मरूं...
हां हां मैं,तुम से ही प्यार करुं
हां हां मैं,तुम से ही प्यार करुं...

Main Sochti Hoon

20 August 20240 mins 37 secs

मैं सोचती हूँ

मैं सोचती हूँ,
अगर ये इश्क ही ना होता, तो क्या होता?
ये गुलाब, ये खत, ये तस्वीरों की क्या कीमत होती?
ये गुलाब बस एक फूल होता,
ये खत सिर्फ कागज होते,
ये तस्वीरें बेजान होतीं।
मैं सोचती हूँ,
अगर ये इश्क ही ना होता, तो क्या होता?

ना होता बारिशों का इंतज़ार,
ना होता बातों का इकरार,
ना आँखों से बातें होतीं,
ना विरह में बिताई गई वो रातें होतीं।
लाल रंग भी फिर सिर्फ एक रंग होता,
मैं सोचती हूँ,
अगर ये इश्क ही ना होता, तो क्या होता?

Mera vatan

22 March 20240 mins 8 secs

मेरा वतन

Name - suhana rajput
Class - 7
School - Air force school kanpur cantt
Address - Balurghat , Shuklaganj ,
Unnao , Uttar Pradesh , India

Man maen ashaa jagana

8 January 20240 mins 17 secs

मन में आशा जगाना

मन को हताश करना बहुत आसान है
इस मन में आशा जगाना बहुत मुश्किल है
जब हम इस मन में आशा जगाते हैं
हर वो चीज़ मिल जाती है
जिसके बारे में हम सपने देखते हैं ।

~  डॉ मीरा सिंह
   पुणे, महाराष्ट्र

अपने दिल की कभी सुन ले जरा
कुछ करना है तो सोच बड़ा
उड़ जा तू परिंदे आसमानों में
अपने सपनों के पंखों तले

है तेरी जमी ये आसमां तू बन जा इसका हौसला
रुक ना इन टेढ़ी राहों से चट्टानों पर भी चलता जा

तू खुद को कर साबित साबित
तू खुद को कर साबित साबित
तो एक दिन मिल जायेगी मंजिल
तू खुद को कर साबित साबित

अंगारों पर चलने के वासते
तेरा हर करम हो वतन हो के वासते
ना सुन लें कभी दुनिया की बातों को
दे तू ये फैसला तेरे खुद के हाथों को

ये दिन भी तेरा ये रात तेरी जज्बातों से रख बात तेरी
कर पार तू हर एक राह तेरी फिर मुश्किल हो आसान तेरी

तू खुद को कर साबित साबित
तू खुद को कर साबित साबित
तो एक दिन मिल जायेगी मंजिल
तू खुद को कर साबित साबित

इस बार खुद को सुंदर पाया है

नाक में नथनी
गले में प्यारा सा हार पाया है
जिस में छुपे एक नन्हे से शीशे ने चेहरे का नूर बताया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।

कंधे जितने बाल मुस्कुरा रहे हैं आज
माथे पर छोटी सी बिंदिया शायद उड़ा रही है लाखों की निंदिया बिना किसी छुअन के चेहरे पर कोई चमक लाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।

शांति से भंग मेरे कंगन कई घुंगरू से भरे हैं
लगता है जैसे सुनी कलाई पर सरगम बन के मिले हैं
इन कंगनों के इंतजार ने मेरी कलाइयों को खूब तड़पाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है

आज नीले रंग के कुर्ते को लाल आंचल से सजाया है
कई अरसों बाद ही सही पर अपने पन का एहसास आया है
इस बार घर की याद को इन कपड़ों ने भगाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है

इस बार दिए की ज्योत ने मेरे मन में एक दीप जलाया है
जैसे खुद को खुद से मिलाया है इस बार चेहरे की चमक ने आंखों को मुस्कुराना सिखाया है
वैसे ही जैसे खुलती जुल्फों ने जीने का तरीका बताया है
इस बार खुद को पहले से भी ज्यादा सुंदर पाया है
क्योंकि डर से जीत आत्मा विश्वास का दीप जलाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।।

Main Shikshak Hu

15 March 20233 mins 7 secs

मैं शिक्षक हूं

मैं शिक्षक हूँ

सवाल फिर वही था, पर मैं जवाब नया बताता हूँ l
कौन हूँ, मैं क्या करता हूँ, कविता के ज़रिये सुनाता हूँ∥

सुन्दर सी इक बगिया है और मैं हूँ उसका बाग़बान l
जहाँ नन्हे पौधे फल-फूलकर बनते इक दिन वृक्ष महान∥

मेरा काम है इन नन्हे परिंदों के परों में जान भरना l
ताकि वो सीख पाएं अपने हौसलों की उड़ान भरना∥

इनके सपनों की ज़मीं को मंज़िल के आसमां से जोड़ता हूँ l
सुनहरे कल के सृजन हेतु मैं अपना पुरुषार्थ निचोड़ता हूँ∥

इन कच्चे घड़ों को अपने ज्ञान-तप से पकाता हूँ l
इसलिए शिल्पी शिल्पकार जैसे नामों से पुकारा जाता हूँ∥

कलम, किताब, चॉक और बालक, इन्हीं से मेरी पहचान है l
अध्यापन है मेरा पेशा और मुझे इस पर अभिमान है∥

तराश कर हुनर इनके, मैं इन्हे क़ाबिल बनाता हूँ l
मैं एक शिक्षक हूँ जनाब और बच्चों को पढ़ाता हूँ∥

ज्ञान और विवेक से मैं इनके भविष्य गढ़ता हूँ l
अपने उत्तम अध्यापन हेतु स्वयं घंटों तक पढता हूँ∥

प्रलय और सृजन का बीज मेरी गोद में पलता है l
मैं विशिष्ट कृति हूँ विधाता की, मेरे पीछे ज़माना चलता है∥

जो बीच राह मैं भटक गए मैं उन्हें राह दिखलाता हूँ l
मैं शिक्षक, गुरु, मैं मार्गदर्शक, मैं ही राष्ट्रनिर्माता हूँ∥

ये महज़ पेशा नहीं, सेवा है, जिसको हमने अपनाया है l
बड़ी ख़ुशी से इस ज़िम्मेदारी को हमने गले लगाया है∥

आओ मिल संकल्प करें कि हम अपना फ़र्ज़ निभाएंगे l
अपने प्यारे भारतवर्ष को फिर विश्वगुरु बनाएंगे∥

हाँ बनती है ना कभी बहरी ,
कभी गूंगी ,कभी अंधी

स्त्री है ना जानती है जोड़ कर
रखने जो हैं धागे उन्हें एक माला में

डरती भी है! दहल जाता है दिल
जब सुनती है ऊंचे स्वर की बातें

मूक रह जाती है ,अनदेखा करती है जाने कितनी बातें
क्यूंकि उन्हें पता है मोती बिखर जाते हैं माला से

अगर उलझ गये जो इसके धागे
तभी तो मुस्कुराती है ,उड़ाती है हर गुब्बार को

क्यूंकि रिश्तों को जोड़े रखने में
हाँ बनना पड़ता है कभी-कभी अंधा, बहरा ,गूंगा |
----एकता कोचर रेलन

Khel Rachaya Hai

24 December 20221 mins 51 secs

खेल रचाया है

वाह दाता वाह! क्या खेल रचाया है?
देकर अत्यंत सुख या दुःख
कभी ना कभी तो तूने
सबको ज़रूर नचाया है

आकर इस माया नगरी में
कुछ संवर गए तो कूच बिखर गए
ऐसे ही तो खेल खेलकर
तूने सबको सिखाया है
वाह दाता वाह! क्या खेल रचाया है?

हो कर हमारी रग -रग से वाक़िफ़
कितना सोच समझकर हमें बनाया है
जो आए थे इस दुनिया में
करके तुझसे एक ही वादा
था की हम ना भूले कभी तुझको
था तूने अच्छे से समझाया

करके दुआ भेजा तूने हमें
आकाश से इस धरती पर
कहा तूने की हूँ अब मैं
एक आज़ाद परिंदा
जा उड़! फैला ले अपने पर

ले जो तू चाहे कुछ भी किंतु
तेरे लिए खुले हैं ये दर
देख दुनिया के ये रंगीन रंग
भूले हम सरे अपने सपने वादे
अंत में, भारी पड़ी ये दुनिया दारी
पड़ा इस का बोझ सब पर भारी

फिर गुम होकर इसी दुनिया में
हम भूले तेरे सारे सपने वादे
जो खाईं मैंने ठोकर
तुझ से जुड़ा होकर
फिर भी बरसाई कृपा तूने मुझ पर

हुआ मेैं सच से परिचित
जब मिला तेरा आसरा
अंत में तूने ही संवारा
तूने ही सम्भाला
बस करता है हमारी दृष्टि पर निर्भर

कि ये पृथ्वी है स्वर्ग या नरक
इस नज़र को तू सुबुद्धि दे
कि आऊँ मैं अपने भाई जनों के काम
उन पर भी हों वर्षा ज्ञान की
लेकर तेरा प्यारा सा नाम

आख़िर में, खोकर मैंने तुझको
मुझ में ही तो पाया है!
वाह दाता वाह! क्या संसार बनाया है?
वाह दाता वाह! क्या खेल रचाया है?

इस तपन से और कितना जलाओगे मुझे
मेरी जमुना से कब मिलाओगे मुझे
मैं भी देखना चाहता हूं बरात अपनी
रोना धोना बंद करो कंधों पे सजालो मुझे
डरा नहीं हूं मैं थोड़ा इंतजार ख़ुशी का है
जरूरी तो नहीं लगाकर गले और जला दे मुझे
जाने कितने बगीचों का उजाड़ होती है लकड़ी
मेरे साथ खुद कितनी जिंदा हैं ये दिखाओगे मुझे
दुनियां की चाहत को हकीकत में जानना है
मत जलाओ इतना अभी सब को बताना है मुझे।

- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।

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