इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में रविवार को 'मेरा रंग फाउंडेशन' के नवें वार्षिकोत्सव पर आयोजित संगोष्ठी ‘जब स्त्री बोलती है’ में महिला सशक्तिकरण के कई संवेदनशील पहलुओं पर गंभीर चर्चा हुई। राजनीति में ट्रोलिंग से लेकर घरेलू हिंसा, एसिड सर्वाइवर्स की कहानियों और जमीनी संघर्ष तक पर चर्चा हुई। इस कार्यक्रम ने भारत के वर्तमान परिदृश्य में स्त्री के उन संघर्षों को उजागर किया जो अक्सर सार्वजनिक विमर्श से बाहर रह जाते हैं। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने किया। उन्होंने चर्चा की शुरुआत करते हुए हाल के कुछ यौन उत्पीड़न के मामलों में ‘मेरा रंग फाउंडेशन’ द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की और कहा कि ऐसे मंच स्त्रियों की आवाज़ को नई दिशा देते हैं।
'मेरा रंग' का नौ साल का सफर
संगोष्ठी की शुरूआत फाउंडेशन की संस्थापक शालिनी श्रीनेत ने संस्था की यात्रा साझा करते हुए की। उन्होंने बताया कि ‘मेरा रंग’ की शुरूआत नौ वर्ष पहले एक डिजिटल प्लेटफॉर्म के रूप में हुई थी, जहां महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बातचीत होती थी। लेकिन जल्द ही घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों ने उन्हें एहसास कराया कि केवल संवाद पर्याप्त नहीं है, ज़रूरत है सीधी मदद और हस्तक्षेप की। इसीलिए उन्होंने इसे एक सक्रिय एनजीओ के रूप में आगे बढ़ाया, जो अब देशभर में महिलाओं को कानूनी और सामाजिक सहायता प्रदान कर रहा है।
राजनीति में ट्रोलिंग और चरित्र हनन
संगोष्ठी में राजनीति में महिलाओं की ट्रोलिंग और उनके चरित्र हनन की प्रवृत्ति पर बहुत विस्तार के सर्चा हुई। कांग्रेस में सोशल मीडिया की चेयरपर्सन सुप्रिया श्रीनेत ने सोशल मीडिया से कई उदाहरण सामने रखते हुए कहा कि कि “राजनीतिक विमर्श का स्तर इस हद तक गिर गया है कि असहमति का जवाब अब स्त्रियों के चरित्र पर हमला करके दिया जा रहा है। यह न केवल शर्मनाक है बल्कि लोकतंत्र के लिए भी खतरनाक संकेत है।”
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और वरिष्ठ लेखक श्यौराज सिंह ‘बेचैन’ ने कहा कि जब स्त्री को शिक्षा के पंख मिलते हैं तो उसे अपनी उड़ान रोकनी नहीं चाहिए। उनके इस विचार पर भाषा सिंह और सुप्रिया श्रीनेत ने यह तर्क रखा कि केवल शिक्षित या आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने से स्त्री का संघर्ष समाप्त नहीं हो जाता। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज की बुनावट अब भी पितृसत्तात्मक ढांचे में गहराई से जकड़ी हुई है, और यह ढांचा हर स्तर पर स्त्रियों के आत्मविश्वास को चुनौती देता है।
इतिहास और आंकड़ों की रोशनी में स्त्री का संघर्ष
दिल्ली विवि में प्राध्यापक और स्त्रीवादी विचारक तारा शंकर ने अपने वक्तव्य में इतिहास में स्त्रियों के अधिकारों की जानबूझकर सीमित किए जाने और वर्तमान के अपराध आंकड़ों के ज़रिए बताया कि स्त्रियों के खिलाफ हिंसा के मामलों में जागरूकता बढ़ी है, पर उसका स्वरूप उतना ही भयावह बना हुआ है। उन्होंने कहा, “पहले यौन हिंसा के मामले किसी एक व्यक्ति द्वारा किए जाते थे, लेकिन अब जब स्त्रियां अपने अधिकारों की मांग कर रही हैं, तो उन्हें दबाने के लिए हिंसा सामूहिक रूप लेने लगी है। यह समाज में बढ़ते असहिष्णु मानसिकता का संकेत है।”
संगोष्ठी में सहयोगी संस्था छाँव फाउंडेशन की ओर से आईं एसिड सर्वाइवर महिलाएँ, रूपा, अंशु, नगमा और काजल ने अपनी मार्मिक लेकिन प्रेरणादायक यात्रा साझा कीं। उन्होंने बताया कि एसिड अटैक के बाद समाज का सबसे बड़ा घाव उनके शरीर पर नहीं, बल्कि उनके आत्मसम्मान पर लगा था। रूपा ने कहा, “पहले हम डर के कारण चुप थे, लेकिन अब हमें अपनी आवाज़ बुलंद करनी आती है। हम दूसरों के लिए नहीं, अपने लिए बोलना सीख चुकी हैं।” उनकी कहानियों ने सभा में उपस्थित हर व्यक्ति को गहराई से प्रभावित किया।
युवाओं के साथ सवाल-जवाब
कार्यक्रम के अंत में हुए सवाल-जवाब सत्र में कई युवा प्रतिभागियों ने अपने अनुभव और सवाल साझा किए। एक छात्रा ने कहा कि पढ़ाई पूरी करने के बाद भी उसे अपने परिवार और समाज में बराबरी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इस पर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता निवेदिता झा ने कहा, “लड़कियों को हर हाल में आर्थिक रूप से मजबूत होना होगा। आर्थिक स्वतंत्रता ही वह कुंजी है जिससे वे सामाजिक दबावों को तोड़ सकती हैं।” सत्र के दौरान श्रोता दीपिका ने सुझाव दिया कि ऐसे विमर्शों में ट्रांसजेंडर पुरुषों और नॉन-बाइनरी जेंडर्स की भागीदारी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि ‘जेंडर’ की चर्चा सचमुच समावेशी बन सके।
लक्ष्मी शर्मा को ‘रंग साहस का अवार्ड’
संगोष्ठी के बाद ‘मेरा रंग फाउंडेशन’ की ओर से ‘रंग साहस का अवार्ड’ चंबल मीडिया की ऑपरेशनल हेड लक्ष्मी शर्मा को दिया गया। उनकी अनुपस्थिति में यह सम्मान उनकी सहयोगी रजनी ने ग्रहण किया। लक्ष्मी शर्मा बुंदेलखंड और चंबल के ग्रामीण इलाकों में जमीनी पत्रकारिता को बढ़ावा देने का कार्य कर रही हैं। वे वंचित समुदायों, विशेषकर महिलाओं से जुड़े मुद्दों को मुख्यधारा की मीडिया तक पहुँचाने में सक्रिय हैं। उनके साहस और पत्रकारिता में प्रतिबद्धता को यह सम्मान समर्पित किया गया।
‘मेरा रंग फाउंडेशन’ की स्थापना शालिनी श्रीनेत ने महिलाओं की आवाज़ को मंच देने और सामाजिक अन्याय के खिलाफ ठोस कदम उठाने के उद्देश्य से की थी। संस्था घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और लैंगिक असमानता के मामलों में कानूनी परामर्श और सहयोग प्रदान करती है। साथ ही, यह ग्रामीण और शहरी दोनों स्तरों पर जेंडर सेंसिटाइजेशन और महिला नेतृत्व को प्रोत्साहित करने की दिशा में काम कर रही है। संगोष्ठी का समापन इस विश्वास के साथ हुआ कि समाज में परिवर्तन तभी संभव है जब स्त्रियाँ अपनी बात कहने के साथ-साथ एक-दूसरे के संघर्ष को भी समझें और समर्थन करें।
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