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Hindi Poetry: शंकर शैलेंद्र की कविता- ज़िंदगी अरमान बनके गुनगुनाई

कविता
                
                                                         
                            ज़िंदगी अरमान बनके गुनगुनाई 
                                                                 
                            
एक नई पहचान बनके मुस्कुराई 
तुम रहे आकाश को ही देखते। 

जब समझ पाए न तुम उसका इशारा 
नाम लेकर भी तुम्हें उसने पुकारा 
क्या मिला क्या तुम गँवाते आ रहे हो 
पूछ देखो जानता है दिल तुम्हारा 
प्रीत प्यासी जान बनके छटपटाई 
दूर की एक तान बनके पास आई 
तुम रहे आकाश को ही देखते! 

बात मानो अब धरा की ओर देखो 
आदमी के बाज़ुओं का ज़ोर देखो 
कट रहे पर्वत समंदर पट रहे हैं 
आज के निर्माण की झकझोर देखो 
ज़िंदगी तूफ़ान बनके तिलमिलाई 
तुम रहे आकाश को ही देखते। 

व्यर्थ ये आदर्श ये दर्शन तुम्हारे 
प्यास में क्यों जाएँ हम सागर किनारे 
क्यों न हम भागीरथी के गीत गाएँ 
क्यों न श्रम सिरजे नए मंदिर हमारे 
मौत टूटा बान बनके थरथराई 
लाज के मारे मरी कुछ कर न पाई 
तुम रहे आकाश को ही देखते। 
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23 घंटे पहले

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