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Hasya: अशोक चक्रधर की कविता- ख़ैर साहब! इस यंत्र के बड़े-बड़े गुल खिलाए हैं

हास्य
                
                                                         
                            ठोकर खाकर हमने
                                                                 
                            
जैसे ही यंत्र को उठाया
मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई
कुछ घरघराया।
झटके से गर्दन घुमाई,
पत्नी को देखा
अब यंत्र से
पत्नी की आवाज़ आई—
मैं तो भर पाई
सड़क पर चलने तक का
तरीक़ा नहीं आता
कोई भी मैनर
या सलीक़ा नहीं आता
बीवी साथ है
यह तक भूल जाते हैं,
और भिखमंगे नदीदों की तरह
चीज़ें उठाते हैं। आगे पढ़ें

23 घंटे पहले

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