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कुंवर नारायण की ये कविताएं हमें आईना भी दिखाती हैं और सीख भी देती हैं

साहित्य
                
                                                         
                            अपनी एक डायरी में कुंवर नारायण लिखते हैं, जरूरी नहीं कि अपने समय को हम अपने ही समय में खड़े होकर देखें, उसे हम भविष्य के किसी अनुमानित बिंदु या अतीत से भी देख सकते हैं। उन्हें पढ़ना और पकड़ना पिछली शताब्दी के भारतीय मानस के उस देश काल से परिचित होना है, जहां औपनिषदिक जीवन रहस्यों की प्रशस्त सड़कें भी हैं और उन रास्तों पर चलकर अपने समय के मूल्यांकन की सूझबूझ भी पैदा होती है। 
                                                                 
                            


एक अजीब सी मुश्किल में हूं इन दिनों-
मेरी भरपूर नफरत कर सकने की ताकत
दिनों-दिन क्षीण पड़ती जा रही,

मुसलमानों से नफ़रत करने चलता
तो सामने ग़ालिब आकर खड़े हो जाते
अब आप ही बताइए किसी की कुछ चलती है
उनके सामने?
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14 घंटे पहले

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