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शमशेर बहादुर सिंह : वो प्रसिद्ध कवि जिन्होंने गायत्री मंत्र बोलते हुए शरीर त्यागा

शमशेर बहादुर सिंह
                
                                                         
                            शमशेर बहादुर सिंह का जीवन सहजता की मिसाल है। जैसा जीवन उन्होंने जिया वैसा ही उन्होंने लिखा। उनके अनुभव का सूत्र पकड़ में आ जाए तो दुरूह जान पड़ने वाली कविता भी खुल जाती है। लेकिन वे मानते थे, कला कैलेंडर की चीज़ नहीं है। इसलिए अपने अनुभव का निजीपन, जहां तक हो सके, उसे खुलने से रोकते थे।
                                                                 
                            

"कबूतरों ने एक गजल गुनगुनायी...
मैं समझ न सका, रदीफ-काफिये क्या थे,
इतना खफीफ, इतना हलका, इतना मीठा
                उनका दर्द था।

आसमान में गंगा की रेत आईने की तरह हिल रही है।
मैं उसी में कीचड़ की तरह सो रहा हूँ
                और चमक रहा हूँ कहीं...
                न जाने कहाँ।"

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13 घंटे पहले

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