उठे जो कदम मंजिल की ओर, तो राह में आए कांटे
और टूटने वाले लगाव नहीं देखे जाते।
जब उतर चुके हो मैदान-ए-जंग में युद्ध के लिए
तो इसमें लगने वाले घाव नहीं देखे जाते।
मत बंधे रहो, किसी जंजीरों में,
कुछ नहीं रखा किस्मत की लकीरों में,
अगर खुद में दम है तो, घसीट कर ले आओ,
किस्मत को अपनी तकदीरों में।
दो कदम चलकर ही क्यों? थक गया मुसाफिर,
रख हौसला कुछ कर दिखाने को।
मत उदास हो असफलताओं से मित्र,
एक सफलता ही काफी है, सारा दुख भुलाने को।
-अंशु मौर्य
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