मोहब्बत में जो वादे प्रेमी और प्रेमिका करते हैं, यह गाना उसी की बानगी है। 1974 की फ़िल्म 'रोटी कपड़ा और मकान' में यह सुनाई दिया था लेकिन वर्मा मलिक के शब्दों को जब लता मंगेशकर और मुकेश ने आवाज़ दी तो गूँज चिरकालीन हो गयी। इसके शब्दों को संगीतमय लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने किया है। इस गाने से निश्छल प्रेम-बंधन की भीनी-भीनी महक आती है। मनोज कुमार और ज़ीनत अमान के अभिनय ने इसे और भी जीवंत एहसास दे दिया है। यहां 'ना भूलने' की नींव पर प्रेम के आशियां की दीवारें खड़ी की जा रही हैं। इस पूरे गाने में अपने-अपने हिस्से के वादों को करते प्रेमी और प्रेमिका खोए हुए हैं क्योंकि प्रेम में खो जाना एक सुंदर अवस्था है।
इन रस्मों को इन क़समों को इन रिश्ते नातों को मैं ना भूलूँगा, मैं ना भूलूँगी...
मैं ना भूलूँगा, मैं ना भूलूँगी
इन रस्मों को इन क़समों को इन रिश्ते नातों को
मैं ना भूलूँगा, मैं ना भूलूँगी
चलो जग को भूलें, खयालों में झूलें
बहारों में डोलें, सितारों को छूलें
आ तेरी मैं माँग संवारूँ तू दुल्हन बन जाये
माँग से जो दुल्हन का रिश्ता मैं ना भूलूँगी
गाने की शुरुआत में आयी मनोज कुमार की भाव-भंगिमा अप्रतिम है और जब ज़ीनत कह रही हैं कि 'इन रस्मों को, इन क़समों को'...उस समय कैमरे का फ़ोकस उनकी ऊंगली की अंगूठी पर जाता है। जिसका मतलब है कि उस अंगूठी और उससे जुड़े प्रेम-भाव को वह नहीं भूलेंगी। जग को भूलना और सितारों को छूने जैसी कल्पनाओं के बाद मांग भरने की बात रोमांचक है और नायिका का कहना है कि वह इसे हमेशा याद रखेगी।
समय की धारा में, उमर बह जानी है...
समय की धारा में, उमर बह जानी है
जो घड़ी जी लेंगे, वही रह जानी है
मैं बन जाऊँ साँस आखिरी तू जीवन बन जाये
जीवन से साँसों का रिश्ता मैं ना भूलूँगी
बहती हुई धार के साथ ये आभास कि उम्र भी इसी तरह ग़ुज़र जाएगी, इसलिए हर क्षण को जी भरकर जीना और जीवन-सांसों का मनभावन आकार ले लेना भी एक वादा ही है।
बरसता सावन हो, महकता आँगन हो...
बरसता सावन हो, महकता आँगन हो
कभी दिल दूल्हा हो, कभी दिल दुल्हन हो
गगन बनकर झूमें, पवन बनकर झूमें
चलो हम राह मोड़ें, कभी ना संग छोड़ें
कहीं पे छुप जाना है, नज़र नहीं आना है
कभी भी साथ न छोड़ने की शर्त स्वाभाविक है और दिल के दूल्हा और दुल्हन होने की लालसा भी, क्योंकि ये सभी तो प्रेम के श्रृंगार हैं। इन पंक्तियों में प्रेम-रस की यही अभिव्यक्ति है। व्यक्ति अपनी हर अजीज़ चीज़ को छुपा लेना चाहता है, एकांत में रख लेता है कि उसकी हिफ़ाज़त की जा सके। यहं प्रेमी-प्रेमिका यही छुप जाने की आकांक्षा रखते हैं।
कहीं पे बस जाएंगे, ये दिन कट जाएंगे...
कहीं पे बस जाएंगे, ये दिन कट जाएंगे
अरे क्या बात चली, वो देखो रात ढली
ये बातें चलती रहें, ये रातें ढलती रहें
मैं मन को मंदिर कर डालूँ तू पूजन बन जाये
मंदिर से पूजा का रिश्ता मैं ना
जब प्रेमी का संग हो तो ज़माने की चिंता क्या, इसलिए कहा है कि कहीं बस जायें तो यूँ ही दिन गुज़र जाएंगे। जैसे मंदिर और पूजा का रिश्ता बेहद पवित्र होता है वैसे ही मोहब्बत की शिद्दत भी उतनी ही होती है।
अमर उजाला एप इंस्टॉल कर रजिस्टर करें और 100 कॉइन्स पाएं
केवल नए रजिस्ट्रेशन पर
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही
अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज आपके व्हाट्सएप पर
Disclaimer
हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर और व्यक्तिगत अनुभव प्रदान कर सकें और लक्षित विज्ञापन पेश कर सकें। अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।
कमेंट
कमेंट X