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शाहिद कमाल: ये तन्हाई अजब लड़की है सन्नाटे में रोती है

shahid kamaal famous ghazal hawa ki dor mein toote huye taare piroti hai
                
                                                         
                            


हवा की डोर में टूटे हुए तारे पिरोती है
ये तन्हाई अजब लड़की है सन्नाटे में रोती है

मोहब्बत में लगा रहता है अंदेशा जुदाई का
किसी के रूठ जाने से कमी महसूस होती है

ख़मोशी की क़बा पहने है महव-ए-गुफ़्तुगू कोई
बरहना जिस्म तन्हाई मिरे पहलू में सोती है

ये आँखें रोज़ अपने आँसुओं के सुर्ख़ रेशम से
नया कुछ ख़्वाब बुनती है कोई सपना सँजोती है

लहू में तैरने लगता है जब वो चाँद सा चेहरा
हवा-ए-दर्द सीने में कोई नेज़ा चुभोती है

ये शहर-ए-रफ़्तगाँ है अब यहाँ कोई नहीं आता
ये किस के पावँ की आहट मुझे महसूस होती है

बुरीदा-सर पड़ा है कुश्ता-ए-उम्मीद सहरा में
उदासी ख़ाक पर बैठी हुई आँचल भिगोती है 

एक दिन पहले

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