सारी दुनिया एक रंगमंच है, नर-नारी सब अभिनेता
सात अवस्थाएं जीवन की, सात अंकों के नाटक में
अपना-अपना खेल दिखाकर हर इनसान चला जाता।
दूध गिराता शिशु पहले रिरियाता मां की बांहों में,
मन मारे, बस्त लटकाये चींटी की फिर चाल से चलता
पढ़ने जाता सुबह-सवेरे उजले चेहरे वाला बच्चा,
और फिर आशिक आहें भरता आता तपती भट्टी-सा
आँखों पर प्रेयसी की लिक्खी दर्द भरी ग़ज़लें गाता।
फिर आता है एक सिपाही, दढ़ियल, अड़ियल, कसमें खाता
लड़ जाता सम्मान की खातिर बात-बात पर,
पैनी दृष्टि, गोल तोंद लिए सूक्तियों का इक भण्डार
नये-नये उदाहरण देता, न्यायधीश फिर मंच सजाता
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