एक अधूरा सवेरा
धीरे-धीरे… खिसक रहा है
आज समंदर
थोड़ी जल्दबाज़ी में है
वह उछलकर...
चूम लेना चाहता है
उसके लाल-लाल होंठों को
अंतिम बार।
पहाड़ के पीछे छुपा सूरज
अब और
ऊपर आ चुका है।
शहर
अख़बार के पन्नों पर
धीरे-धीरे...
अपनी आँखें खोल रहा है।
अरसे बाद
फुलुआ की माई
फिर निकल पड़ी है
जलावन की तलाश में।
कचरे वाली गाड़ी
रोज की तरह गा रही है...
गाड़ी वाला आया है
तू कचरा निकाल।
आँख मलता हुआ बचपन
खड़ा है...
पीली बस के इंतज़ार में।
रुखिया आज फिर
खेला रही है
तेतरी माता को
देर रात से ही,
सुगन भगत कह रहा है
यह लोकतंत्र की हत्या है!
ठीक उसी वक़्त
किसी चैनल पर
एक बाबा
यह बता रहे हैं कि
आपका आज का दिन कैसा होगा?
मंटू को बस तलाश है
एक अदद गुलाब की
उस पीली छतरी वाली
गोरी लड़की के लिए।
अब सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच
सिर्फ़ एक पहाड़ है
एक नंगा पहाड़!
जहाँ न गुलाब है,
न समंदर
न ही पीली छतरी वाली
वह गोरी लड़की।
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