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Astrology: विवाह में देरी के पीछे ये ग्रह होते हैं जिम्मेदार, जानिए कुंडली में विवाह न होने के संकेत

ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला Published by: विनोद शुक्ला Updated Sun, 02 Nov 2025 03:07 PM IST
सार

किसी जातक या जातिका के विवाह में देरी के लिए शनि, मंगल, राहु-केतु और कमजोर शुक्र जिम्मेदार होते हैं। इन ग्रहों की कुंडली में स्थिति से विवाह में रुकावटें आती हैं। 
 

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know the astrology signs of late marriage and which planet is considered getting late married life
कुंडली में विवाह के योग - फोटो : adobe
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विस्तार
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वैदिक ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थितियों और इनसे बनने वाले योगों के आधार पर विवाह के संबंध में भविष्यवाणियां की जाती हैं. जातक की कुंडली का अध्ययन करके एक ज्योतिषी इस निर्णय पर पहुंचता है कि कुंडली में विवाह के योग है या नहीं। विवाह जल्दी होगा या नहीं। कई बार लड़के और लड़कियां सर्वगुण संपन्न होते हैं लेकिन उनके विवाह में होने में कई तरह की अड़चनें आती हैं। आज हम आपको विवाह में देरी या फिर विवाह न होने के कारणों का ज्योतिषीय विश्लेषण करेंगे। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, विवाह में देरी के लिए शनि, राहु-केतु और कुछ अशुभ ग्रह जैसे ग्रह जिम्मेदार होते हैं। लेकिन इसके अलावा कुंडली में कुछ ऐसे योग भी बनते हैं जिनके कारण जातक या जातिका के विवाह में देरी और अड़चनें आती हैं। आइए जानते हैं विवाह में देरी के लिए कौन-कौन से अहम कारण होते हैं। 



कुंडली में विवाह का भाव
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में 12 भाव होते हैं जिसमें से सप्तम भाव विवाह के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। कुंडली का सातवां घर आपके पार्टनर का होता है। कुंडली का सातवां भाव पहले भाव से विपरीत होता है। पहला भाव स्वयं का होता है और उसके सामने का सातवां भाव पार्टनर का होता है। यानि पहला और सातवां भाव एक दूसरे के पूरक होते हैं। ऐसे में जिन जातकों का सप्तम भाव पर अशुभ ग्रहों की द्दष्टि होती है ऐसे जातकों के विवाह में देरी होती है। 
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विवाह के लिए जिम्मेदार ग्रह
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विवाह में देरी के लिए कुछ अशुभ ग्रह जिम्मेदार होते हैं। कुंडली में राहु, शनि, केतु और अष्टमेश कुंडली में विवाह के लिए देरी के योग बनाता है। जब ये ग्रह कुंडली में विवाह से संबंधित ग्रहों या फिर भाव और इनके स्वामियों को प्रभावित करते हैं कुंडली में विवाह के लिए देरी का संकेत है।

वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह को देरी का ग्रह माना जाता है। शनि सभी ग्रहों में सबसे मंद गति से चलने वाले ग्रह होते हैं। ऐसे में कुंडली में विवाह के संबंध में विश्लेषण करते समय कुंडली में शनि की स्थिति को जरूर देखता जाता है। जब कुंडली में मौजूद शनि ग्रह किसी तरह से कुंडली के सप्तम भाव या फिर सप्तम स्थान के स्वामी को प्रभावित करते हैं तो यह आपके विवाह में देरी का संकेत है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिन लोगों का लग्न सिंह और कर्क होता है उनके विवाह में देरी की संभावना होती है। 

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विवाह में देरी के लिए राहु और केतु ग्रह भी जिम्मेदार होते हैं। जब लग्न से सप्तम भाव में राहु या केतु होता है तो जातक का विवाह होने में देरी होती है। कुंडली में राहु-केतु दोष के कारण विवाह में देरी का कारण बनता है। इससे अलावा कुंडली में  मंगल दोष होने पर व्यक्ति के विवाह में अड़चनें आती हैं। 

ज्योतिष में शुक्र ग्रह को शुभ ग्रह माना जाता है और यह विवाह का कारक ग्रह होता है। पुरुष की कुंडली में शुक्र ग्रह पत्नी का कारक होता है। ऐसे में अगर किसी जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह कमजोर है या फिर पीड़ित है तो विवाह में देरी का कारण बनता है। इसके अलावा जिन लोगों के विवाह में देरी हो रही है उसके अष्टम भाव का विश्लेषण कर लेना चाहिए। 

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