MSME for Bharat: बरेली का जरदोजी और बेंत शिल्प उद्योग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग से मिलेगी वैश्विक पहचान
MSME for Bharat: वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ (ओडीओपी) योजना के तहत हर जिले के खास उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का लक्ष्य है। आइए जानते हैं देश की अर्थव्यवस्था में उत्तर प्रदेश के जिले बरेली के एमएसएमई क्षेत्र की महत्ता के बारे में।

विस्तार
भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) रोजगार सृजन से लेकर नवाचार और क्षेत्रीय विकास तक अहम भूमिका निभा रहे हैं। इन्हीं संभावनाओं को और आगे बढ़ाने के उद्देश्य से अमर उजाला एमएसएमई फॉर भारत कॉन्क्लेव का आयोजन कर रहा है।

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MSME फॉर भारत कॉन्क्लेव की जानकारी
बरेली जिले में 12 सितम्बर को दोपहर 4 से 6 बजे तक अर्बन हार्ट ऑडिटोरियम, में MSME फॉर भारत कॉन्क्लेव आयोजित किया जाएगा। इस कार्यक्रम में उद्योग, व्यापार और विकास के क्षेत्र से जुड़े कई प्रमुख लोग शिरकत करेंगे।
आयोजन में कौन-कौन लोग होंगे शामिल?
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगे जिलाधिकारी अभिनाश सिंह और कमिश्नर सौम्या अग्रवाल।
कॉन्क्लेव के दूसरे सत्र में "कल के MSME" विषय पर चर्चा होगी। इसमें घनश्याम खडेलवाल (चेयरमैन, बीएल एग्रो इंडस्ट्रीज), डॉ. अभिनव अग्रवाल (डायरेक्टर, रामा श्यामा पेपर्स) और डॉ. मनीष शर्मा (सृष्टि पूर्ति वेलनेस प्राइवेट लिमिटेड) अपने विचार साझा करेंगे।
तीसरे सत्र में स्थानीय चुनौतियों और अवसर पर विमर्श होगा। इसमें राजेश गुप्ता (प्रेसिडेंट, चेंबर ऑफ कॉमर्स और इंडस्ट्री समिति), राजीव सिंघल (प्रेसिडेंट, चेंबर ऑफ कॉमर्स वेलफेयर एसोसिएशन), आशुतोष शर्मा (प्रेसिडेंट, लघु भारतीय उद्योग) और मयूर धीरवानी (प्रेसिडेंट, इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन) शामिल होंगे। इस सत्र में MSME सेक्टर की समस्याओं जैसे वित्तीय संसाधनों की कमी, तकनीकी उन्नयन, ब्रांडिंग और मार्केटिंग के अवसर, तथा नीतिगत सुधारों पर गहन चर्चा की जाएगी।
क्या है कॉन्क्लेव का उद्देश्य?
इस कॉन्क्लेव में विशेषज्ञ भविष्य की फंडिंग व्यवस्था, ब्रांडिंग और मार्केटिंग की नई रणनीतियों, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उभरती तकनीकों और नवाचारी वित्तीय विकल्पों पर गहराई से चर्चा करेंगे। महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और भारतीय एमएसएमई को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने के उपाय भी एजेंडे का हिस्सा होंगे।
विशेष ध्यान ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ (ओडीओपी) योजना पर रहेगा, जिसके तहत हर जिले के खास उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का लक्ष्य है। इस संदर्भ में उत्तर प्रदेश का बरेली जिला विशेष महत्व रखता है। कार्यक्रम का उद्देश्य ऐसे उपाय तलाशना है, जिससे बरेली जैसे जिलों के एमएसएमई अपने पारंपरिक उत्पादों को वैश्विक मंच पर मजबूत ब्रांड के रूप में स्थापित कर सकें।
आइए जानते हैं, देश की अर्थव्यवस्था में उत्तर प्रदेश के जिले बरेली के एमएसएमई क्षेत्र की महत्ता के बारे में।
हस्तशिल्प कला के लिए प्रसिद्ध है बरेली
एमएसएमई सेक्टर में बरेली का विशेष योगदान है। यहां जारी-जरदोजी कढ़ाई, कैन फर्नीचर और बांस वर्क्स का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। यह क्षेत्र अपनी पारंपरिक हस्तशिल्प कला के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। सरकारी सहयोग के अंतर्गत ओडीओपी (जारी-जरदोजी ) और हस्तशिल्प क्लस्टर के माध्यम से स्थानीय एमएसएमई इकाइयों को विकास के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
मुख्य एमएसएमई में जी-जरदोजी कारीगर इकाइयां और बेंत शिल्प समूह प्रमुख हैं। यह पारंपरिक डिजाइन और आधुनिक तकनीक का मेल कर गुणवत्ता उत्पाद बना रहे हैं। बरेली की पहचान जारी-जरदोजी एम्ब्रॉयडरी और कैन फर्नीचर के लिए की जाती है।
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हस्तशिल्प उद्योग की चुनौतियां
हालांकि, क्षेत्र की एमएसएमई इकाइयां मध्यस्थता की कमी, कमजोर ब्रांडिंग और वेज इश्यूज जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं। फिर भी, बरेली के एमएसएमई नवाचार व गुणवत्ता को बरकरार रखते हुए स्थानीय संस्कृति को संरक्षित कर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं।
बरेली का पारंपरिक हस्तशिल्प और बेंत फर्नीचर उद्योग आज गंभीर चुनौतियों से गुजर रहा है। यहां के कारीगर अपनी कला और मेहनत के बावजूद उचित मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण बिचौलियों की मजबूत पकड़ और उत्पादों की कमजोर ब्रांडिंग है।
कारीगरों का कहना है कि तैयार माल सीधे बाजार तक नहीं पहुंच पाता। बिचौलिये कम कीमत पर खरीदकर इसे ऊंचे दाम पर बेचते हैं, जिससे असली शिल्पकार को उचित लाभ नहीं मिल पाता। इसके साथ ही, मजदूरी का मुद्दा भी बड़ा संकट बनकर सामने आया है। लंबे समय तक मेहनत करने के बावजूद कारीगरों को न्यूनतम मजदूरी से ज्यादा नहीं मिल रही।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस उद्योग को मजबूत करना है, तो ब्रांडिंग और सीधी मार्केटिंग चैनल विकसित करने होंगे। इसके अलावा, कारीगरों के लिए उचित वेतन सुनिश्चित करना भी जरूरी है, ताकि यह परंपरागत कला जीवित रह सके और वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सके।