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Supreme Court: यस बैंक के एटी-1 बॉन्ड को बट्टे खाते में डालने का मामला अलग बेंच के पास, RBI व अन्य की है अपील
बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कुमार विवेक
Updated Wed, 22 Jan 2025 01:59 PM IST
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सार
Supreme Court on AT-1 Bonds: अतिरिक्त टियर 1 (एटी-1) बॉन्ड बैंकों की ओर से अपने पूंजी आधार को बढ़ाने के लिए जारी किए जाने वाले स्थायी बॉन्ड होते हैं। ये उच्च ब्याज दरों वाले पारंपरिक बॉन्ड की तुलना में अधिक जोखिम भरे होते हैं। अगर बैंक संकट में है तो आरबीआई बैंक से उन्हें रद्द करने के लिए कह सकता है। इसी से जुड़े एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ भारतीय रिजर्व बैंक व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। आइए इस बारे में और जानें।

सुप्रीम कोर्ट (फाइल)
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एटी-1 बॉन्ड (अतिरिक्त टियर-1 बॉन्ड) पर भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य की याचिकाओं को एक दूसरी पीठ को भेज दिया। याचिका में बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें यस बैंक के प्रशासक की ओर से बेलआउट के तहत 8,415 करोड़ रुपये के बॉन्ड को बट्टा खाते में डालने के फैसले को रद्द कर दिया गया था।

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अतिरिक्त टियर 1 (एटी-1) बैंकों की ओर से अपने पूंजी आधार को बढ़ाने के लिए जारी किए जाने वाले स्थायी बॉन्ड होते हैं। ये उच्च ब्याज दरों वाले पारंपरिक बॉन्ड की तुलना में अधिक जोखिम भरे होते हैं। अगर बैंक संकट में है तो आरबीआई बैंक से उन्हें रद्द करने के लिए कह सकता है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर चार याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करेगी। बिना कोई कारण बताए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इन याचिकाओं पर अब एक सप्ताह बाद न्यायमूर्ति एएस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई करेगी। तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली पीठ ने 3 मार्च, 2023 को उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ आरबीआई और अन्य की आरे से दायर चार याचिकाओं पर एक्सिस ट्रस्टी सर्विसेज लिमिटेड को नोटिस जारी किया था।
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शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के उस आदेश के लागू होने पर रोक को भी बढ़ा दिया था, जिसमें मार्च 2020 में बेलआउट के हिस्से के रूप में 8,415 करोड़ रुपये के एटी -1 बॉन्ड को बट्टे खाते में डालने के यस बैंक प्रशासक के फैसले को रद्द कर दिया गया था। 3 मार्च, 2023 को पहली सुनवाई के बाद मामलों को पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया। उच्च न्यायालय ने 20 जनवरी, 2023 को यस बैंक के 14 मार्च, 2020 के बांडों को बट्टे खाते में डालने के निर्णय को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि प्रशासक के पास ऐसा निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने एटी-1 बांड निवेशकों को आश्वासन दिया था कि वह उनके सामने आ रही वित्तीय परेशानी का कोई न कोई समाधान निकालने की कोशिश करेगी। इससे पहले एक्सिस ट्रस्टी सर्विसेज लिमिटेड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा था कि निवेश की गई धनराशि उनकी बिना किसी गलती के “शून्य” हो गई है।
रोहतगी ने कहा था, "बैंक के शीर्ष अधिकारियों ने ही बैंक को डुबोया...हमारा पैसा शून्य हो गया...हम टाटा-बिड़ला नहीं हैं। हम संस्थागत निवेशक हैं। कुछ लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई निवेश की। हमने क्या गलत किया? हमें क्यों भुगतना चाहिए।"
आरबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और यस बैंक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा था कि एटी-1 बांड को बट्टे खाते में डालने का निर्णय होने के बाद पीएसयू बैंकों ने बेलआउट पर सहमति जताई और यस बैंक में धन डाला। यस बैंक ने कहा था कि ये गैर-परिवर्तनीय, सतत बांड हैं जिन पर 9.5 प्रतिशत की दर से उच्च ब्याज मिल रहा है तथा बैंक को बचाने के लिए इन्हें बट्टे खाते में डाला जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह बॉन्ड धारकों के लिए कुछ समाधान खोजने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्ति का उपयोग कर सकती है।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने यस बैंक प्रशासक के फैसले को रद्द करते हुए कहा था कि उसका फैसला स्थगित रहेगा, इसलिए केंद्रीय बैंक और यस बैंक इसके खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील कर सकते हैं। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जारी यस बैंक की अंतिम पुनर्निर्माण योजना में एटी-1 बांड को बंद करना शामिल नहीं है। फैसले में कहा गया था, "केंद्र सरकार की ओर से स्वीकृत अंतिम योजना में एटी-1 बांड को बट्टे खाते में डालने का कोई खंड या प्रावधान नहीं था।"
उच्च न्यायालय ने आगे कहा था कि जब आरबीआई ने बैंक के पुनर्गठन के लिए मसौदा योजना तैयार की थी, तो उसने सुझाव और आपत्तियां आमंत्रित की थीं और ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ताओं ने एटी-1 बांड को बट्टे खाते में डालने पर आपत्ति जताई थी और यहां तक कि उन्हें शेयरों में परिवर्तित करने का सुझाव भी दिया था। हालांकि, उच्च न्यायालय ने अपने आदेश पर छह सप्ताह की अवधि के लिए रोक लगा दी थी।
उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिकाओं में नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरीज लिमिटेड और सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज के खिलाफ निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे बांडों को बट्टे खाते में डालने के विवादित निर्णय के अनुसरण में उठाए गए किसी भी लेखांकन, प्रविष्टियों, नोटिंग, बट्टे खाते में डालने, निरस्तीकरण या ऐसे किसी भी कदम के प्रभाव को उलटने के लिए कदम उठाएं।