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CG में अनोखी परंपरा: हर साल दी जाती है सैकड़ों बकरों की बलि, रायगढ़ से 30 KM दूर है ये मंदिर, जानें इतिहास

अमर उजाला नेटवर्क, रायगढ़ Published by: अनुज कुमार Updated Tue, 07 Oct 2025 08:27 AM IST
सार

रायगढ़ के कर्मागढ़ में मानकेश्वरी मंदिर में शरद पूर्णिमा पर बैगा के शरीर में देवी का आगमन होता है, जहां सैकड़ों बकरों की बलि दी जाती है। नवरात्र से शुरू होने वाली इस प्राचीन परंपरा में हजारों श्रद्धालु मन्नतें मांगने और मेले के माहौल में शामिल होने पहुंचते हैं।

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Hundreds of goats are sacrificed on Sharad Purnima at the Mankeshwari Temple in Karmagadh.
कर्मागढ़ के मानकेश्वरी मंदिर में मेला - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में रियासतकालीन से चली आ रही परम्परा आज भी कर्मागढ़ के मानकेश्वरी मंदिर में जारी है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर यहां सैकड़ों बकरों की बलि दी जाती है। इस दौरान यहां हजारों की भीड़ उमड़ती है और मेले सा माहौल बनता है।


रायगढ़ जिला मुख्यालय से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर स्थित है कर्मागढ़ गांव जो की जंगलों से घिरा हुआ है। कर्मागढ़ मंदिर में नवरात्र के दौरान ही यहां आस्था का ज्योत प्रज्ज्वलित होती है, जो शरद पूर्णिमा के दूसरे दिन समाप्त होती है। इस दौरान यहां बलि की भी परंपरा है। सदियों से चली आ रही परम्परा के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन आयोजित पूजा अर्चना के दौरान यहां के बैगा के शरीर में मां मानकेशरी देवी का प्रभाव होता है जो बकरो की बली को ग्रहण करती हैं। 
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कहा जाता है की मंदिर में रायगढ़ राजपरिवार की कुलदेवी मां मानकेश्वरी देवी आज भी अपने चैतन्य रुप में विराजमान है, जहां माता समय-समय पर अपने भक्तों को अपनी शक्ति अवगत कराती है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर सोमवार की सुबह से ही कर्मागढ़ गाँव में लोगों की भारी भीड़ रही, जहां कई लोग मन्नते पूरी होने के बाद बकरा लेकर मंदिर परिसर पहुंचे थे तो सैकड़ो की संख्या में अन्य लोग भी मन्नत मांगने माता के दरबार में शीश झुकाने पहुंचे थे, इस दौरान यहां सुबह से लेकर देर रात तक जहाँ हजारों की संख्या में भीड़ रही बल्कि हर साल की भांति इस साल भी यहां मेले सा माहौल रहा।  इसी दौरान मधुमक्खियों के अलावा जंगली कीटों ने अंग्रेजो पर हमला कर दिया। जिसमें अंग्रेज पराजित होकर लौट गए और उन्होंने भविष्य में रायगढ़ स्टेट को स्वतंत्र घोषित कर दिया। 

हर साल दी जाती है सैकड़ों बकरों की बलि
समिति के सदस्यों ने बताया कि मां मानकेश्वरी देवी बैगा के ऊपर सवार होती है और जो झंडा लेकर बैगा के पीछे चलता है उसके ऊपर भीमसेन सवार होता है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर यहां विशेष पूजा अर्चना होती है, जिसमें शामिल होने के रायगढ़ कई जिलों के अलावा पड़ोसी राज्य ओडिशा से भी भारी संख्या की तादाद में लोग यहां पहुंचते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु यहां अपनी मन्नतें मांगते हैं और मन्नत पूरी होने के अगले साल बाद वे यहां बकरा लेकर पहुंचते है और फिर यहां बकरे की बलि दी जाती है। सुबह से देर रात तक पूजा पाठ के दौरान तकरीबन सौ से अधिक बकरो की बलि दी जाती है।
 

पूरे क्षेत्र में विख्यात है मंदिर
यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु भी बताते हैं कि प्रतिवर्ष यहां नवरात्र के समय पूजा अर्चना की जाती है और मन्नते मांगी जाती है। यह मंदिर पूरे क्षेत्र में विख्यात मंदिर में से एक है। रायगढ़ क राज परिवार के द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी। तब से यह परंपरा चली आ रही है।

अंगूठी का है विशेष महत्व
यहां की मान्यता अनुसार बलि पूजा से पूर्व विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है और निशा पूजन के दौरान राजपरिवार से बैगा को एक अंगूठी पहनाई जाती है। वह अंगूठी इतनी ढीली होती है कि वह बैगा अंगुली के नाप में नहीं आती, लेकिन शरद पूर्णिमा के दिन जब बलपूजा के दौरान वह अंगूठी बैगा के हाथों में इस कदर कस जाती है कि जैसे वह अंगूठी उन्हीं के नाप की बनाई गई हो। इससे पता चलता है कि माता का वास बैगा के शरीर में हो गया है। 

 

क्या है यहां का इतिहास

बताया जाता है कि लगभग 1700 ईसवी में हिमगिरि (ओड़िसा) रियासत का राजा जो युद्ध में पराजित हो गया था, जिसके बाद उसे जंजीरों में बांधकर मानकेश्वरी के जंगल में छोड़ दिया गया। जंजीरों में जकड़ा राजा भटकते हुए कर्मागढ़ में पहुंचा, जहां उन्हें देवी मां ने दर्शन देकर बंधन मुक्त किया। इसी तरह सन 1780 में एक घटना हुई। जब ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अंग्रेज ने कठोर लगान वसूलने के लिए रायगढ़ और हिमगिरि पर हमला कर दिया। इस दौरान युद्ध कर्मागढ के जंगली मैदान पर हुआ था। इसी दौरान मधुमक्खियों के अलावा जंगली कीटों ने अंग्रेजो पर हमला कर दिया। जिसमें अंग्रेज पराजित होकर लौट गए और उन्होंने भविष्य में रायगढ़ स्टेट को स्वतंत्र घोषित कर दिया। 

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