'हम हंसते-हंसते रोते हैं... यही हमारी भाई दूज की परंपरा है', चित्रांगदा सिंह ने भाई के साथ बॉन्डिंग पर की बात
Chitrangda Singh Exclusive Interview: भाई-बहन के त्योहार भैया दूज पर अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह ने अपने भाई दिग्विजय सिंह से जुड़े किस्से शेयर किए। अभिनेत्री ने कहा कि यह पर्व उनके लिए बेहद खास है।
विस्तार
दिवाली और भाई दूज की असली खूबसूरती सिर्फ रौशनी या मिठाई में नहीं, बल्कि उन पलों में होती है जो हमेशा दिल में रच बस जाते हैं। अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह के लिए ये त्योहार हर साल उन्हें उनकी बचपन की गलियों में ले जाते हैं, जहां हर दीया और हंसी हमेशा के लिए याद बन जाती है।
'पूजा के बाद सब बाहर निकल आते थे, पूरा मोहल्ला एक परिवार बन जाता था'
अमर उजाला से बातचीत के दौरान, अभिनेत्री ने कहा, 'हर दिवाली मेरे बचपन की कोई ना कोई याद जरूर ले आती है। हम सब पूजा के बाद बाहर निकल आते थे। पूरा मोहल्ला जैसे एक परिवार बन जाता था। बच्चे हाथ में पटाखे लेकर भागते, बड़ों की बातें चलती रहतीं और कुछ रॉकेट उड़ने से पहले ही गिर जाते थे। लेकिन सबसे मजेदार बात ये थी कि सब लोग उन गिरते हुए रॉकेटों पर भी उतना ही हंसते थे। वो हंसी, वो शोर, वो साथ होना, वही असली दिवाली थी'।
मां जब मिठाइयां बनाती थीं, घर की खुशबू ही दिवाली थी
दिवाली की तैयारी का जिक्र होते ही उनकी यादें रसोई के आसपास घूमने लगती हैं। उन्होंने कहा, 'मां जब मिठाइयां बनाना शुरू करती थीं तो घर की खुशबू बदल जाती थी। मां कहती थीं कि मेहमानों के लिए बचा कर रखो, लेकिन मैं कहां रुकती थी। वो रसोई, वो मिठाइयों की महक, वही मेरी दिवाली थी। सजना-धजना मजेदार था, लेकिन मेहमान आने से पहले मिठाई चखने का मजा कुछ और ही था'।
'मैं थोड़ा इमोशनल हो जाती हूं और भाई हमेशा ऐसे दिखाता है जैसे उसे फर्क नहीं पड़ता'
भाई दूज की बात आते ही उनकी आवाज में एक अपनापन उतर आता है। 'भाई दूज मेरे लिए बहुत भावुक दिन होता है। हर साल वही होता है, मैं थोड़ा इमोशनल हो जाती हूं और मेरा भाई हमेशा ऐसे दिखाता है जैसे उसे कुछ फर्क नहीं पड़ता। फिर मैं रोने लगती हूं, वो मुझे हंसाता है और हम दोनों हंसते-हंसते रोने लगते हैं। ये हमारा अपना तरीका है, कुछ कहे बिना सब कुछ कह देने का'। वो हंसते हुए एक किस्सा याद करती हैं, जो आज भी उनके चेहरे पर मुस्कान बिखेर देता है। उन्होंने कहा, 'एक बार उसने गिफ्ट देने की जगह बस एक नोट दिया था। उस पर लिखा था, जो चाहिए बाद में बोल देना। मैं इतनी हंसी कि बस... यही तो भाई हैं, इमोशंस अपने अंदाज में दिखाते हैं।'
'कभी एक कॉल भी पूरा त्योहार बना देती है'
दिवाली के कई साल ऐसे भी रहे जब काम की वजह से वो घर से दूर थीं, लेकिन त्योहार की भावना उन्होंने कभी फीकी नहीं पड़ने दी। इस बारे में उन्होंने कहा, 'कई बार शूट की वजह से मैं बाहर रही। लेकिन मैं जहांभी होती थी, दीये जरूर जलाती थी। थोड़ा सजती थी, मिठाई बनाती थी और घर वालों से वीडियो कॉल करती थी। स्क्रीन पर उनके चेहरे देखते ही लगता था कि मैं घर पर ही हूं। कभी-कभी एक कॉल भी पूरा त्योहार बन जाता है'।
'कभी एक कॉल भी पूरा त्योहार बना देती है'
दिवाली के कई साल ऐसे भी रहे जब काम की वजह से वो घर से दूर थीं, लेकिन त्योहार की भावना उन्होंने कभी फीकी नहीं पड़ने दी। इस बारे में उन्होंने कहा, 'कई बार शूट की वजह से मैं बाहर रही। लेकिन मैं जहांभी होती थी, दीये जरूर जलाती थी। थोड़ा सजती थी, मिठाई बनाती थी और घर वालों से वीडियो कॉल करती थी। स्क्रीन पर उनके चेहरे देखते ही लगता था कि मैं घर पर ही हूं। कभी-कभी एक कॉल भी पूरा त्योहार बन जाता है'।