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चुनावी किस्से: एक परंपरा के चलते पहले चुनाव में कटे 28 लाख महिलाओं के नाम, हर उम्मीदवार के लिए थी अलग मतपेटी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: जयदेव सिंह
Updated Sun, 04 Feb 2024 07:28 PM IST
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चुनाव में लगे अधिकारी
- फोटो :
Election Commission of India
विस्तार
साल 1950, एक देश जो साढ़े ढाई साल पहले आजाद हुआ, एक देश जो करीब सवा महीने पहले गणतंत्र बना, वो अब चुनाव में जा रहा था। इस देश ने अपने संविधान की रचना में कई पश्चिम के देशों के संविधान की बहुत सी बातों को लिया, लेकिन उनके रास्ते को नहीं चुना। पश्चिम के देशों में जहां पहले कुछ शक्तिशाली तबकों को ही वोट देने का आधिकार था, लंबे समय तक इन देशों में कामगारों और महिलाओं को मतदान का अधिकार नहीं मिला था। लेकिन नया-नया गणतंत्र बना 25 करोड़ की आबादी वाला यह देश सीधे तौर पर अपने जन प्रतिनिधियों को चुनने जा रहा था। इस मुल्क की जनता अपने हुक्मरानों को चुनने वाली थी। वो जनता जिसमें 85 फीसदी आबादी पढ़ी-लिखी नहीं थी। बात हिन्दुस्तान की हो रही है।
पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन
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PIB
सुकुमार सेन पहले मुख्य चुनाव आयुक्त बने
साल 1950 का मार्च का महीना था जब भारत में पहले चुनाव आयुक्त की नियुक्ति हुई थी। इससे पहले चुनाव आयोग का गठन हो चुका था। सुकुमार सेन मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए। उसके अगले ही महीने जनप्रतिनिधि कानून संसद में पारित कर दिया गया। इस कानून को पेश करते हुए संसद में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ये उम्मीद जाहिर की कि साल 1951 के बसंत तक चुनाव करवा लिए जाएंगे। चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने नेहरू को कुछ दिन इंतजार करने को कहा था। शायद सुकुमार सेन जानते थे कि जो काम वो करने जा रहे हैं वो कितना बड़ा और मुश्किल होने वाला है।
साल 1950 का मार्च का महीना था जब भारत में पहले चुनाव आयुक्त की नियुक्ति हुई थी। इससे पहले चुनाव आयोग का गठन हो चुका था। सुकुमार सेन मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए। उसके अगले ही महीने जनप्रतिनिधि कानून संसद में पारित कर दिया गया। इस कानून को पेश करते हुए संसद में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ये उम्मीद जाहिर की कि साल 1951 के बसंत तक चुनाव करवा लिए जाएंगे। चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने नेहरू को कुछ दिन इंतजार करने को कहा था। शायद सुकुमार सेन जानते थे कि जो काम वो करने जा रहे हैं वो कितना बड़ा और मुश्किल होने वाला है।
मतदाता
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Election Commission of India
चुनाव को लेकर सुकुमार के सामने कई चुनौतियां
बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले उस शख्स को भी थोड़ा जान लेते हैं, जिसके जिम्मे चुनाव करवाने का यह मुश्किल काम था। देश के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन का जन्म 1899 में हुआ था और उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज और लंदन यूनीवर्सिटी में पढ़ाई की थी। लंदन यूनीवर्सिटी में उन्हें गोल्ड मेडल भी मिला था। उसके बाद उन्होंने 1921 में इंडियन सिविल सर्विस ज्वाइन कर ली और कई जिलों में बतौर न्यायाधीश उन्होंने अपनी सेवाएं दीं। बाद में वे पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव भी बने।
पश्चिम बांगल के मुख्य सचिव से देश के चुनाव आयुक्त बने सुकुमार सेन के सामने कई चुनौतियां थीं। पहली चुनौती तो 17 करोड़ 60 लाख मतदाताओं का पंजीकरण था। उनकी पहचान करना, उनका नाम लिखना भी बड़ी चुनौती थी, क्योंकि इनमें से 85 फीसदी न तो पढ़ सकते थे और न ही लिख सकते थे।
बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले उस शख्स को भी थोड़ा जान लेते हैं, जिसके जिम्मे चुनाव करवाने का यह मुश्किल काम था। देश के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन का जन्म 1899 में हुआ था और उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज और लंदन यूनीवर्सिटी में पढ़ाई की थी। लंदन यूनीवर्सिटी में उन्हें गोल्ड मेडल भी मिला था। उसके बाद उन्होंने 1921 में इंडियन सिविल सर्विस ज्वाइन कर ली और कई जिलों में बतौर न्यायाधीश उन्होंने अपनी सेवाएं दीं। बाद में वे पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव भी बने।
पश्चिम बांगल के मुख्य सचिव से देश के चुनाव आयुक्त बने सुकुमार सेन के सामने कई चुनौतियां थीं। पहली चुनौती तो 17 करोड़ 60 लाख मतदाताओं का पंजीकरण था। उनकी पहचान करना, उनका नाम लिखना भी बड़ी चुनौती थी, क्योंकि इनमें से 85 फीसदी न तो पढ़ सकते थे और न ही लिख सकते थे।
चुनाव में उम्मीदवार
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प्रतीक चिह्न और मतदानपत्र से लेकर मतपेटी तक कई चुनौतियां
मतदाताओं का पंजीकरण तो चुनौतियों की शुरुआत मात्र थी। बड़ी समस्या यह थी कि अधिकांश मतदाता पढ़े-लिखे नहीं थे। ऐसे मतदाताओं के लिए पार्टी प्रतीक चिह्न, मतदानपत्र और मतपेटी कैसे बनाई जाए? मतदान केंद्र का चयन कैसे हो, मतदान अधिकारी की नियुक्ति कैसे होगी, मतदान अधिकारी कौन होंगे? एक और बात देश के आम चुनावों के साथ ही उस वक्त सभी राज्यों की विधानसभाओं के लिए भी चुनाव होने थे। इन सभी चुनौतियों पर सुकुमार सेन के साथ विभिन्न राज्यों में मुख्य चुनाव अधिकारी भी काम कर रहे थे, जिनमें से अधिकांश अमूमन आईसीएस ऑफिसर ही थे।
मतदाताओं का पंजीकरण तो चुनौतियों की शुरुआत मात्र थी। बड़ी समस्या यह थी कि अधिकांश मतदाता पढ़े-लिखे नहीं थे। ऐसे मतदाताओं के लिए पार्टी प्रतीक चिह्न, मतदानपत्र और मतपेटी कैसे बनाई जाए? मतदान केंद्र का चयन कैसे हो, मतदान अधिकारी की नियुक्ति कैसे होगी, मतदान अधिकारी कौन होंगे? एक और बात देश के आम चुनावों के साथ ही उस वक्त सभी राज्यों की विधानसभाओं के लिए भी चुनाव होने थे। इन सभी चुनौतियों पर सुकुमार सेन के साथ विभिन्न राज्यों में मुख्य चुनाव अधिकारी भी काम कर रहे थे, जिनमें से अधिकांश अमूमन आईसीएस ऑफिसर ही थे।
ऐसे बने थे मतपत्र
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करीब 4,500 सीटों पर हुए थे चुनाव
आखिरकार, 1952 के शुरुआती महीनों में चुनाव करवाया जाना तय हुआ, हालांकि कुछ दुरूह और सुदूरवर्ती जिलों में इस काम को पहले अंजाम दिया जाना था। लेखक रामचंद्र गुहा अपनी किताब इंडिया आफ्टर गांधी में लिखते हैं कि कुल मिलाकर 4,500 सीटों पर चुनाव होने थे जिसमें करीब 500 संसद के लिए थे और बाकी राज्यों की विधानसभाओं के थे। इस चुनाव में 2,24,000 मतदान केंद्र बनाए गए और वहां 20 लाख इस्पात की मतपेटियां भेजी गईं। इन पेटियों को बनाने में 8200 टन इस्पात खर्च हुआ। छह महीने के अनुबंध पर 16,500 क्लर्क बहाल किए गए ताकि मतदाता सूची को क्षेत्रवार ढंग से टाइप किया जा सके और उसका मिलान किया जा सके। मतदान पत्रों को छापने में करीब 3,80,000 कागज के रिम इस्तेमाल किए गए।
आखिरकार, 1952 के शुरुआती महीनों में चुनाव करवाया जाना तय हुआ, हालांकि कुछ दुरूह और सुदूरवर्ती जिलों में इस काम को पहले अंजाम दिया जाना था। लेखक रामचंद्र गुहा अपनी किताब इंडिया आफ्टर गांधी में लिखते हैं कि कुल मिलाकर 4,500 सीटों पर चुनाव होने थे जिसमें करीब 500 संसद के लिए थे और बाकी राज्यों की विधानसभाओं के थे। इस चुनाव में 2,24,000 मतदान केंद्र बनाए गए और वहां 20 लाख इस्पात की मतपेटियां भेजी गईं। इन पेटियों को बनाने में 8200 टन इस्पात खर्च हुआ। छह महीने के अनुबंध पर 16,500 क्लर्क बहाल किए गए ताकि मतदाता सूची को क्षेत्रवार ढंग से टाइप किया जा सके और उसका मिलान किया जा सके। मतदान पत्रों को छापने में करीब 3,80,000 कागज के रिम इस्तेमाल किए गए।
चुनाव में लगे अधिकारी
- फोटो :
Election Commission of India
चुनाव में लगे 56,000 पीठासीन अधिकारी
चुनाव कार्य को संपादित करने के लिए 56,000 पीठासीन अधिकारियों का चुनाव किया गया और इनकी सहायता के लिए 2,80,000 सहायक बहाल किए गए। इस चुनाव में सुरक्षा के लिए 2,24,000 पुलिस के जवानों को बहाल किया गया, ताकि हिंसा और मतदान केंद्रों पर गड़बड़ियों को रोका जा सके।
चुनाव कार्य को संपादित करने के लिए 56,000 पीठासीन अधिकारियों का चुनाव किया गया और इनकी सहायता के लिए 2,80,000 सहायक बहाल किए गए। इस चुनाव में सुरक्षा के लिए 2,24,000 पुलिस के जवानों को बहाल किया गया, ताकि हिंसा और मतदान केंद्रों पर गड़बड़ियों को रोका जा सके।
ऐसे पहुंचे थे मतपत्र
- फोटो :
Election Commission of India
ऐसे पहुंचे थे मतपत्र
यह चुनाव और इसमें हिस्सा ले रहे मतदाता लगभग 10 लाख वर्गमील में फैले हुए थे। चुनाव का इलाका विशाल और विविधता से भरा हुआ था। कहीं-कहीं तो यह बहुत ही दुरूह भी था। किसी सुदूर पहाड़ी गांव के मामले में आनन-फानन में नदी पर विशेष तौर पर पुल बनाया गया। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पर चुनाव करवाने के लिए नावों या स्टीमरों से मतपत्रों को मतदान केंद्रों तक पहुंचाया गया।
यह चुनाव और इसमें हिस्सा ले रहे मतदाता लगभग 10 लाख वर्गमील में फैले हुए थे। चुनाव का इलाका विशाल और विविधता से भरा हुआ था। कहीं-कहीं तो यह बहुत ही दुरूह भी था। किसी सुदूर पहाड़ी गांव के मामले में आनन-फानन में नदी पर विशेष तौर पर पुल बनाया गया। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पर चुनाव करवाने के लिए नावों या स्टीमरों से मतपत्रों को मतदान केंद्रों तक पहुंचाया गया।
मतदाता सूची बनाते कर्मी
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Election Commission of India
परंपरा की वजह से मतदाता सूची से कट गए 28 लाख महिलाओं के नाम
दूसरी समस्या भौगोलिक के बदले सामाजिक थी। उत्तर भारत की महिलाएं अपना नाम लिखवाने से हिचकती थीं। इसके बदले वे किसी की मां या किसी की पत्नी के रूप में अपना नाम दर्ज कराना चाहती थीं। सुकुमार सेन अतीत के इस परंपरा को देखकर झुंझला उठे। उन्होंने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया कि 'इस तरह के मतदाताओं का ब्यौरा लिखने की जगह कड़ाई से मतदाता का नाम दर्ज' करें। इस प्रक्रिया में कम से कम 28 लाख महिलाओं का नाम मतदाता सूची से काट दिया गया। उनके नाम काटे जाने से हुए हंगामें को सेन ने 'अच्छा' ही माना क्योंकि इससे अगले चुनावों के पहले तक इस पूर्वाग्रह से मुक्त होने में मदद मिलती और तब तक महिलाओं को उनके अपने नाम से मतदाता सूची में दर्ज कर लिया जाता।
दूसरी समस्या भौगोलिक के बदले सामाजिक थी। उत्तर भारत की महिलाएं अपना नाम लिखवाने से हिचकती थीं। इसके बदले वे किसी की मां या किसी की पत्नी के रूप में अपना नाम दर्ज कराना चाहती थीं। सुकुमार सेन अतीत के इस परंपरा को देखकर झुंझला उठे। उन्होंने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया कि 'इस तरह के मतदाताओं का ब्यौरा लिखने की जगह कड़ाई से मतदाता का नाम दर्ज' करें। इस प्रक्रिया में कम से कम 28 लाख महिलाओं का नाम मतदाता सूची से काट दिया गया। उनके नाम काटे जाने से हुए हंगामें को सेन ने 'अच्छा' ही माना क्योंकि इससे अगले चुनावों के पहले तक इस पूर्वाग्रह से मुक्त होने में मदद मिलती और तब तक महिलाओं को उनके अपने नाम से मतदाता सूची में दर्ज कर लिया जाता।
कांग्रेस की चुनावी रैली में बैलों की जोड़ूी
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Photo Division
ऐसे हुईं देश के पहले आम चुनाव की तैयारियां
जहां पश्चिमी लोकतंत्रों में मतदाता साक्षरता और विकास होने की वजह से राजनीतिक दलों को नाम से पहचान जाते थे, वहीं भारत में मतदाताओं को समझाने के लिए तस्वीरों का सहारा लिया गया। ये चुनाव चिह्न आम लोगों के दैनिक जीवन से संबंधित थे और इसलिए मतदाताओं की समझ में आने के लायक थे। जैसे किसी पार्टी के लिए दो जोड़ी बैल, दूसरे के लिए एक झोपड़ी, तीसरे के लिए एक हाथी और चौथे के लिए मिट्टी के दीये को चुनाव चिह्न के तौर पर मान्यता दी गई थी। ये तो बात हुई देश के पहले आम चुनाव की तैयारियों की। जब चुनाव हुए उस वक्त भी कई दिलचस्प घटनाएं हुईं। उन दिलचस्प किस्सों की भी बात अगली कड़ी होगी।
जहां पश्चिमी लोकतंत्रों में मतदाता साक्षरता और विकास होने की वजह से राजनीतिक दलों को नाम से पहचान जाते थे, वहीं भारत में मतदाताओं को समझाने के लिए तस्वीरों का सहारा लिया गया। ये चुनाव चिह्न आम लोगों के दैनिक जीवन से संबंधित थे और इसलिए मतदाताओं की समझ में आने के लायक थे। जैसे किसी पार्टी के लिए दो जोड़ी बैल, दूसरे के लिए एक झोपड़ी, तीसरे के लिए एक हाथी और चौथे के लिए मिट्टी के दीये को चुनाव चिह्न के तौर पर मान्यता दी गई थी। ये तो बात हुई देश के पहले आम चुनाव की तैयारियों की। जब चुनाव हुए उस वक्त भी कई दिलचस्प घटनाएं हुईं। उन दिलचस्प किस्सों की भी बात अगली कड़ी होगी।