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Chunavi Kisse: 2nd lok sabha election in india and related incidents
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चुनावी किस्से: जब मतपेटी में नोट से लेकर अभिनेता की फोटो तक मिली, कोई वोट के साथ डाल गया भद्दी गालियों वाला खत
चुनावी किस्से: 1951-52 के बाद अगले आम चुनाव 1957 में कराए गए। पहले चुनाव की मतपेटियां दूसरे में भी काम आईं। सुकुमार सेन ही दूसरे आम चुनाव के दौरान भी चुनाव आयुक्त थे। पढ़ते हैं चुनावी किस्से में दूसरे चुनाव से जुड़ी रोचक बातें...
देश को आजाद हुए एक दशक होने को थे। भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन हो चुका था। इस पुनर्गठन के दौरान देश ने कई आंदोलनों को देखा। इस दौरान प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को सबसे तीखा विरोध प्रदर्शन बंबई में देखने को मिला। जहां बंबई को महाराष्ट्र में शामिल करने या उससे अलग रखने को लेकर बेहद तल्ख विरोध हुआ। दोनों पक्षों की ओर से दावे प्रतिदावे हुए। इन सबके बीच साल 1957 ने दस्तक दे दी थी। और दस्तक दे दी थी एक और चुनाव ने...ये चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक होने जा रहा था।
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1957 में हुए दूसरे आम चुनाव
दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध के बाद एशिया और अफ्रीका के दर्जनों देश आजाद हुए। इन देशों को साम्राज्यवादी यूरोपीय देशों से आजादी मिली। लेकिन, इनमें से ज्यादातर देशों में कुछ दिन बाद किसी न किसी अधिनायकवादी एकतंत्र में तब्दील हो गए। इन देशों में या तो सेना या फिर स्वतंत्र तानाशाह ये अधिनायकवाद चला रहे थे। इनके साथ ही कुछ देशों में कम्युनिस्ट शासक भी इसी तरह का अधिनायकवाद चला रहे थे। ऐसे में भारत कई अपवादों में से एक था जहां इस तरह के अधिकानयकवाद ने दस्तक नहीं दी थी। देश ने 1952 में हुए चुनाव और उसके बाद कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों ने लोगों द्वारा चुनी गई वोट की सत्ता को ही महत्व दिया था। इसके बाद भी लोकतांत्रिक देशों की सूची में एक सम्मानजनक जगह पाने के लिए दूसरी बार चुनाव कराना बेहद अहम था। ये चुनाव हुए 1957 में…इस बार यह प्रक्रिया करीब तीन हफ्ते चली। पहला चुनाव करवाने वाले सुकुमार सेन ही दूसरे आम चुनाव के दौरान भी देश के चुनाव आयुक्त थे।
1957 आम चुनाव
- फोटो : amar ujala
पहले चुनाव की मतपेटियां दूसरे चुनाव में भी काम आईं
सेन ने पहले चुनाव में मिले अनुभवों का दूसरे चुनाव में बखूबी इस्तेमाल किया। पहले चुनाव के दौरान इस्तेमाल की गई 35 लाख मतपेटियों को सुरक्षित रख लिया गया था। इस वजह दूसरे चुनाव में केवल पांच लाख अतिरिक्त मतपेटियों की ही जरूरत पड़ी। दूसरे लोकसभा चुनाव में देश की करीब 96 फीसदी वयस्क महिलाएं मतदाता सूची में पंजीकृत हो चुकी थीं। पहले चुनाव में बहुत सी महिलाओं के नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं होने का चुनाव किस्सा हम आपको पहले ही सुना चुके हैं। जब सुकुमार सेन ने अपने नाम की जगह किसी की मां, किसी की पत्नी के तौर पर नाम दर्ज कराने की जिद करने वाली लाखों महिलाओं का नाम मतदाता सूची से काटने का आदेश दे दिया था। सुकुमार सेन की दूरदर्शिता की वजह से दूसरे चुनाव में पहले चुनाव के मुकाबले 4.5 करोड़ रुपये की बचत हुई थी।
देश के पहले आम चुनाव में 17 करोड़ 32 लाख से अधिक मतदाता थे। जो दूसरे आम चुनाव तक बढ़कर 19 करोड़ 30 लाख को पार कर गए। इस चुनाव में करीब 50 फीसदी मतदान हुआ। कुल 197 टन कागज की खपत हुई। इस चुनाव में चुनाव आयोग ने मतदान वाले दिन शराब की दुकानें बंद करने का निर्देश दिया। जिससे मतदान केंद्र के इर्दगिर्द असामाजिक तत्व इकट्ठा न हो जाएं। चुनाव में शराब की दुकानें बंद रहने की ये व्यवस्था आज भी लागू है।
1957 आम चुनाव में मतदाता
- फोटो : 1957 आम चुनाव में मतदाता
चुनाव आयुक्त को वोट देने के चाहता था मतदाता
इस सबके बीच इस चुनाव में कई रोचक प्रसंग देखने को मिले। इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब में लिखते हैं कि नई दिल्ली में एक उम्मीदवार इस बात पर अड़ गया कि उसे ‘लॉर्ड जीजस क्राइस्ट’ के नाम पर अपना नामांकन करने दिया जाए। इसी तरह मद्रास जो अब चेन्नई है में एक मतदाता किसी उम्मीदवार को नहीं बल्कि चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को वोट देने के चाहता था। उड़ीसा जो अब ओडिशा कहा जाता है वहां महज ढाई फिट का एक शख्स मतदान करने पहुंचा तो वह अपने साथ एक छोटी से मेज लेकर आया था।
1957 आम चुनाव के चुनाव चिह्न
- फोटो : Election Commission of India
मतपेटियों से नोट या सिक्के भी निकले
जब वोटों की गिनती के लिए मतपेटियां खुलीं तो हर जगह इन मतपेटियों में मतपत्रों के अलावा भी कई चीजें बाहर निकलीं। कहीं उम्मीदवार के नाम पर भद्दी-भद्दी गालियां लिखे हुए कागज बाहर निकले तो कहीं से रुपये के नोट या सिक्के भी बाहर निकले। किसी ने अपने पसंदीदा अभिनेता की तस्वीर मतपेटी में डाल दी थी तो किसी ने किसी नेता के नाम पर पत्र लिख दिया था।
जवाहर लाल नेहरू
- फोटो : Election Commission of India
कांग्रेस को उत्तर में प्रचंड जीत मिली
1957 का चुनाव एक बार फिर नेहरू और उनकी सत्ताधारी पार्टी के लिए जीत लेकर आया। 1952 में जिन विरोधियों ने नेहरू का टिककर मुकाबला किया था उनमें से कई बिखरने लगे थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निधन के बाद जनसंघ का प्रभाव घटने लगा था तो जेपी के सक्रिय राजनीति से दूरी चलते समाजवादी धड़ा भी बिखरने लगा था। जेबी कृपाली की पत्नी तक उनकी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में लौट चुकी थीं। इन बदली परिस्थितियों का फायदा कांग्रेस को उत्तर में मिला। जहां उसे प्रचंड जीत मिली। यहां की जिन 226 सीटों पर कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारे उनमें से 195 पर उसे जीत मिली। इसके चलते लोकसभा में उसकी सीटों की संख्या बढ़कर 371 पहुंच गई। नेहरू ने एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली। इस जीत के बाद भी कांग्रेस के लिए 1957 के नतीजों ने नई चुनौतियों के द्वार खोल दिए थे। ये चुनौती उसे दक्षिण और पूर्वी भारत से मिली थी। पश्चिम से आई खबरों ने भी नेहरू की पार्टी को नई चुनौतियों का आभास करा दिया था। क्या थीं ये चुनौतियां? क्यों दक्षिण में हालात बदल रहे थे? कहां पहली बार रुका था कांग्रेस की जीत का रथ? इन सभी सवालों का जवाब हम आपको देंगे, लेकिन अगले चुनावी किस्से में…।
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