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चुनावी किस्से: पहली लोकसभा में अंबेडकर से कृपलानी तक हारे, पहले मतदाता ने चार महीने किया था नतीजे का इंतजार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: जयदेव सिंह
Updated Mon, 26 Feb 2024 06:33 PM IST
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आम चुनाव 1951-52 में जवाहर लाल नेहरू
- फोटो :
Amar Ujala
विस्तार
एक और चुनावी किस्से के साथ हम फिर हाजिर हैं। पिछले किस्से में किए वादे के मुताबिक आज सबसे पहले बात उस जगह की जहां नेहरू भी चुनाव प्रचार करने नहीं जा सके। वो जगह थी हिमाचल प्रदेश की चिनी तहसील। यहां के मतदाताओं ने देश में सबसे पहले 25 अक्तूबर 1951 को वोट डाला था। 25 अक्तूबर की सुबह छह बजे शुरू हुआ मतदान 27 अक्तूबर तक जारी रहा। महासू जिले की चिनी तहसील के साथ ही चंबा जिले की पांगी तहसील में भी 25 अक्तूबर से मतदान की प्रक्रिया शुरू हुई जो 2 नवंबर तक जारी रही। इस दौरान इन दोनों तहसील के 20 हजार मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इसके लिए 11 पोलिंग स्टेशन बनाए गए थे। इन दो तहसील के अलावा बाकी हिमाचल प्रदेश में मतदान की प्रक्रिया 19 नवंबर से शुरू हुई। इन मतदाताओं को वोट डालने के बाद नतीजे के लिए महीनों इंतजार करना पड़ा, क्योंकि देश के बाकी मतदाताओं ने जनवरी-फरवरी 1952 में मतदान किया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सर्दियां आने पर बर्फबारी की वजह से यह घाटी शेष दुनिया के पूरी तरह कट जाती थी।
पहले आम चुनाव में 17 करोड़ से ज्यादा मतदाता थे
अब बात मतदान और उससे जुड़े कुछ किस्सों की कर लेते हैं। देश के पहले आम चुनाव में 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 मतदाता थे। इनमें से 10 करोड़ 59 लाख 50 हजार 83 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। सबसे ज्यादा 80.5 फीसदी मतदान केरल की कोट्टायम सीट पर हुआ। देश के कई आम चुनावों तक नतीजों में भले एक ही पार्टी का वर्चस्व दिखता हो, लेकिन पहले चुनाव से ही इसमें विविधता आ चुकी थी। पहले ही आम चुनाव में 10-20 नहीं पूरी 53 पार्टियों ने हिस्सा लिया था। इनमें से 14 राष्ट्रीय पार्टियां थीं। अकेले कांग्रेस को इस चुनाव में 44.99% वोट मिले। 15.90% वोट निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गए। कांग्रेस के अलावा सिर्फ सोशलिस्ट पार्टी को ही 10 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। सोशलिस्ट पार्टी को 10.59% वोट मिला, किसान मजदूर प्रजा पार्टी को 5.79 फीसदी जबकि जनसंघ को 3.06 फीसदी वोट से संतोष करना पड़ा।
यह भी पढ़ें चुनावी किस्से: 40 हजार किमी यात्रा, 300 सभाएं, विशेष रेलगाड़ियां चलाई गईं, ऐसा था 1951-52 में नेहरू का प्रचार
अब बात मतदान और उससे जुड़े कुछ किस्सों की कर लेते हैं। देश के पहले आम चुनाव में 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 मतदाता थे। इनमें से 10 करोड़ 59 लाख 50 हजार 83 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। सबसे ज्यादा 80.5 फीसदी मतदान केरल की कोट्टायम सीट पर हुआ। देश के कई आम चुनावों तक नतीजों में भले एक ही पार्टी का वर्चस्व दिखता हो, लेकिन पहले चुनाव से ही इसमें विविधता आ चुकी थी। पहले ही आम चुनाव में 10-20 नहीं पूरी 53 पार्टियों ने हिस्सा लिया था। इनमें से 14 राष्ट्रीय पार्टियां थीं। अकेले कांग्रेस को इस चुनाव में 44.99% वोट मिले। 15.90% वोट निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गए। कांग्रेस के अलावा सिर्फ सोशलिस्ट पार्टी को ही 10 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। सोशलिस्ट पार्टी को 10.59% वोट मिला, किसान मजदूर प्रजा पार्टी को 5.79 फीसदी जबकि जनसंघ को 3.06 फीसदी वोट से संतोष करना पड़ा।
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मतदाता सूची बनाते कर्मी
- फोटो :
Election Commission of India
मतदान करने पहुंचे हर तबके के लोग
लोकतंत्र के इस पहले उत्सव में कई अद्भुत तस्वीरें सामने आई थीं। हिमाचल प्रदेश में एक नौजवान महिला मीलों चलकर अपनी बीमार मां के साथ मतदान करने पहुंची। ओडिशा में आदिवासी समुदाय के लोग हाथों में तीर-धनुष लेकर मतदान के लिए पहुंचे। जंगल में स्थित एक मतदान केंद्र पर 70 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ। कहीं, 90 साल तो कहीं 95 साल के बुजुर्ग भी वोट डालने मतदान केंद्र पहुंचे। मदुरई में तो 110 साल के बुजुर्ग के वोट डालने की तस्वीरें उस वक्त मीडिया में छाई रहीं।
रामचंद्र गुहा अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखते हैं कि महाराष्ट्र में एक 90 साल के बुजुर्ग मतदान करने पहुंचे। उन्होंने विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाला, लेकिन लोकसभा उम्मीदवार को वोट डालने से पहले उनका निधन हो गया। इसी तरह आठ हजार वर्ग मील में फैले मिजोरम में महज 113 मतदान केंद्र थे। यहां के लोग कई-कई दिन तक मीलों का सफर करके मतदान केंद्र पहुंचे। इस दौरान ये लोग दुरूह जंगलों, पहाड़ों से गुजरते। रात में आग जलाकर उसके चारो ओर पारंपरिक नृत्य करते। कई दिनों के सफर के बाद ये लोग मतदान केंद्र पहुंचे और अपना वोट डाला।
लोकतंत्र के इस पहले उत्सव में कई अद्भुत तस्वीरें सामने आई थीं। हिमाचल प्रदेश में एक नौजवान महिला मीलों चलकर अपनी बीमार मां के साथ मतदान करने पहुंची। ओडिशा में आदिवासी समुदाय के लोग हाथों में तीर-धनुष लेकर मतदान के लिए पहुंचे। जंगल में स्थित एक मतदान केंद्र पर 70 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ। कहीं, 90 साल तो कहीं 95 साल के बुजुर्ग भी वोट डालने मतदान केंद्र पहुंचे। मदुरई में तो 110 साल के बुजुर्ग के वोट डालने की तस्वीरें उस वक्त मीडिया में छाई रहीं।
रामचंद्र गुहा अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखते हैं कि महाराष्ट्र में एक 90 साल के बुजुर्ग मतदान करने पहुंचे। उन्होंने विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाला, लेकिन लोकसभा उम्मीदवार को वोट डालने से पहले उनका निधन हो गया। इसी तरह आठ हजार वर्ग मील में फैले मिजोरम में महज 113 मतदान केंद्र थे। यहां के लोग कई-कई दिन तक मीलों का सफर करके मतदान केंद्र पहुंचे। इस दौरान ये लोग दुरूह जंगलों, पहाड़ों से गुजरते। रात में आग जलाकर उसके चारो ओर पारंपरिक नृत्य करते। कई दिनों के सफर के बाद ये लोग मतदान केंद्र पहुंचे और अपना वोट डाला।
चुनाव प्रचार करतीं पार्टियां
- फोटो :
Election Commission of India
489 लोकसभा सीटों में से 364 कांग्रेस ने जीतीं
मतदाताओं की तरह का ही उत्साह और संघर्ष मतदान कराने वाले अधिकारों का भी था। रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि चुनाव तैयारियों की कार्यशाला में हिस्सा लेने के लिए एक अधिकारी ने छह दिन की मुश्किल यात्रा की। इसी तरह एक अधिकारी चार दिन की खच्चर की सवारी करके पहुंचा। सुदूरवर्ती इलाकों में मतदान करवाने के लिए मतदान अधिकारी जूट की बड़ी-बड़ी थैलियों में मतदान सामाग्री लेकर गए थे। फरवरी के आखिरी सप्ताह में महीनों से चल रही मतदान की प्रक्रिया पूरी हो गई। इसके बाद नतीजों की बारी थी। नतीजे आए तो 489 लोकसभा सीटों में से 364 कांग्रेस के खाते में गईं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को 16 सीटें मिलीं, सोशलिस्ट पार्टी के 12, किसान मजदूर प्रजा पार्टी के नौ तो जनसंघ के तीन उम्मीदवार जीतने में सफल रहे।
मतदाताओं की तरह का ही उत्साह और संघर्ष मतदान कराने वाले अधिकारों का भी था। रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि चुनाव तैयारियों की कार्यशाला में हिस्सा लेने के लिए एक अधिकारी ने छह दिन की मुश्किल यात्रा की। इसी तरह एक अधिकारी चार दिन की खच्चर की सवारी करके पहुंचा। सुदूरवर्ती इलाकों में मतदान करवाने के लिए मतदान अधिकारी जूट की बड़ी-बड़ी थैलियों में मतदान सामाग्री लेकर गए थे। फरवरी के आखिरी सप्ताह में महीनों से चल रही मतदान की प्रक्रिया पूरी हो गई। इसके बाद नतीजों की बारी थी। नतीजे आए तो 489 लोकसभा सीटों में से 364 कांग्रेस के खाते में गईं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को 16 सीटें मिलीं, सोशलिस्ट पार्टी के 12, किसान मजदूर प्रजा पार्टी के नौ तो जनसंघ के तीन उम्मीदवार जीतने में सफल रहे।
भीमराव अंबेडकर चुनाव हार गए
लोकसभा के साथ हुए विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस का परचम लहराया। देशभर की 3,280 विधानसभा सीटों में 2,247 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली। हर चुनाव की तरह देश के पहले चुनाव में भी कई बड़े चेहरों की जीत से ज्यादा कुछ कद्दावर नेताओं की हार चर्चा में रही। इनमें सबसे बड़ा नाम देश के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर था। अंबेडकर बॉम्बे शहर उत्तर सीट से हार गए। अंबेडकर को उनके पुराने सहयोगी और कांग्रेस उम्मीदवार नारायण काजरोलकर ने 14,561 वोट से हराया था। किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाने वाले जेबी कृपलानी भी फैजाबाद सीट से चुनाव हार गए। हालांकि, उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी नई दिल्ली सीट पर जीत दर्ज करने में सफल रहीं। उन्होंने कांग्रेस की मनमोहिनी सहगल को 7,671 वोट से हराया था। ऐसा नहीं था कि सिर्फ विरोधी दलों के नेताओं को ही इस चुनाव में चौंकाने वाली हार मिली। प्रचंड जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस के कई दिग्गजों को भी हार का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस के 28 मंत्री इस चुनाव में हार गए। चुनाव हारने वालों में राजस्थान के मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास, मोरारजी देसाई जैसे नेता शामिल थे।
इन चुनावों से पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने कहा था कि हिन्दुस्तान मानवजाति के इतिहास का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक प्रयोग करने जा रहा है। इन चुनाव के बाद ये कहा जा सकता था कि इस प्रयोग में हम पूरी तरह सफल हुए थे।
लोकसभा के साथ हुए विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस का परचम लहराया। देशभर की 3,280 विधानसभा सीटों में 2,247 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली। हर चुनाव की तरह देश के पहले चुनाव में भी कई बड़े चेहरों की जीत से ज्यादा कुछ कद्दावर नेताओं की हार चर्चा में रही। इनमें सबसे बड़ा नाम देश के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर था। अंबेडकर बॉम्बे शहर उत्तर सीट से हार गए। अंबेडकर को उनके पुराने सहयोगी और कांग्रेस उम्मीदवार नारायण काजरोलकर ने 14,561 वोट से हराया था। किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाने वाले जेबी कृपलानी भी फैजाबाद सीट से चुनाव हार गए। हालांकि, उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी नई दिल्ली सीट पर जीत दर्ज करने में सफल रहीं। उन्होंने कांग्रेस की मनमोहिनी सहगल को 7,671 वोट से हराया था। ऐसा नहीं था कि सिर्फ विरोधी दलों के नेताओं को ही इस चुनाव में चौंकाने वाली हार मिली। प्रचंड जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस के कई दिग्गजों को भी हार का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस के 28 मंत्री इस चुनाव में हार गए। चुनाव हारने वालों में राजस्थान के मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास, मोरारजी देसाई जैसे नेता शामिल थे।
इन चुनावों से पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने कहा था कि हिन्दुस्तान मानवजाति के इतिहास का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक प्रयोग करने जा रहा है। इन चुनाव के बाद ये कहा जा सकता था कि इस प्रयोग में हम पूरी तरह सफल हुए थे।