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चुनावी किस्से: 40 हजार किमी यात्रा, 300 सभाएं, विशेष रेलगाड़ियां चलाई गईं, ऐसा था 1951-52 में नेहरू का प्रचार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: जयदेव सिंह
Updated Mon, 19 Feb 2024 06:47 PM IST
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आम चुनाव 1951-52 में प्रचार करते जवाहर लाल नेहरू
- फोटो :
Amar Ujala
विस्तार
1951 का सितंबर खत्म हो रहा था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के विरोधियों के हमले बढ़ रहे थे। नए-नए राजनीतिक दल अस्तिव में आ रहे थे। ऐसा ही एक दल 21 सितंबर 1951 को नई दिल्ली में अस्तित्व में आया। वैदिक मंत्रोचार और राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम के गायन के साथ इस पार्टी जनसंघ के पहले सत्र की शुरुआत हुई। कभी नेहरू के सहयोगी रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके संस्थापक थे। मुखर्जी के साथ ही जेबी कृपलानी, जय प्रकाश नारायण से लेकर भीमराव अंबेडकर तक चुनाव मैदान में उतर चुके थे। सभी के निशाने पर नेहरू थे। महीना खत्म होते-होते नेहरू चुनाव प्रचार में लग गए। उन्होंने लुधियाना से अपने चुनाव अभियान का आगाज किया।
40 हजार किमी से अधिक की चुनावी यात्रा
अपने पहले ही चुनावी भाषण में नेहरू ने सांप्रदायिक संगठनों की निंदा की। नेहरू बिहार पहुंचे तो उन्होंने जातिवाद के दानव की आलोचना की, अंबाला की रैली में उन्होंने महिलाओं से पर्दा प्रथा को त्यागने का आह्वान किया। उस वक्त की मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि नेहरू ने नौ हफ्ते के अपने चुनाव अभियान में पूरे देश का एक छोर से दूसरे छोर तक का तूफानी दौरा किया। कहते हैं इस दौरान उन्होंने 40 हजार किलोमीटर से अधिक की यात्रा की। इसमें हवाई, रेल और सड़क तीनों तरह की यात्राएं थीं। इतना ही नहीं उन्होंने चुनाव प्रचार के लिए करीब डेढ़ सौ किलोमीटर की नाव यात्रा भी की थी।
अपने पहले ही चुनावी भाषण में नेहरू ने सांप्रदायिक संगठनों की निंदा की। नेहरू बिहार पहुंचे तो उन्होंने जातिवाद के दानव की आलोचना की, अंबाला की रैली में उन्होंने महिलाओं से पर्दा प्रथा को त्यागने का आह्वान किया। उस वक्त की मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि नेहरू ने नौ हफ्ते के अपने चुनाव अभियान में पूरे देश का एक छोर से दूसरे छोर तक का तूफानी दौरा किया। कहते हैं इस दौरान उन्होंने 40 हजार किलोमीटर से अधिक की यात्रा की। इसमें हवाई, रेल और सड़क तीनों तरह की यात्राएं थीं। इतना ही नहीं उन्होंने चुनाव प्रचार के लिए करीब डेढ़ सौ किलोमीटर की नाव यात्रा भी की थी।
आम चुनाव 1951-52 में प्रचार करते जवाहर लाल नेहरू
- फोटो :
Election Commission of India
नेहरू ने तीन सौ जनसभाएं की
'जवाहर लाल नेहरू, ए बायोग्राफी' में फ्रैंक मॉरिस लिखते हैं कि अपने चुनाव अभियान के दौरान नेहरू 'जितनी देर सो नहीं पाए उससे ज्यादा वक्त उन्होंने यात्रा करने में व्यतीत कर दिया और जितनी देर उन्होंने यात्रा में बिताया उससे ज्यादा वक्त उन्होंने भाषण दिया।' उन्होंने तीन सौ जनसभाओं को संबोधित किया और सड़क के किनारे भी हजारों-लाखों लोगों से संवाद स्थापित किया। सीधे तौर पर उनके भाषण को दो करोड़ लोगों ने सुना जबकि उतनी ही संख्या में लोगों ने उन्हें देखा। नेहरू को लेकर लोगों में ऐसी लोकप्रियता थी कि जब उनकी कार सड़क से गुजरती थी तो लोग सड़कों पर उमड़ पड़ते थे। जिन लोगों ने नेहरू को देखा और उनका भाषण सुना उनमें श्रमिक, खेतिहर मजदूर, किसान, बच्चे, चरवाहे सब शामिल थे। सभी जातियों की महिलाएं उन्हें सुनने के लिए आती थीं। यहां तक कि उन्हें सुनने के लिए उनके विरोधी भी आते थे।
'जवाहर लाल नेहरू, ए बायोग्राफी' में फ्रैंक मॉरिस लिखते हैं कि अपने चुनाव अभियान के दौरान नेहरू 'जितनी देर सो नहीं पाए उससे ज्यादा वक्त उन्होंने यात्रा करने में व्यतीत कर दिया और जितनी देर उन्होंने यात्रा में बिताया उससे ज्यादा वक्त उन्होंने भाषण दिया।' उन्होंने तीन सौ जनसभाओं को संबोधित किया और सड़क के किनारे भी हजारों-लाखों लोगों से संवाद स्थापित किया। सीधे तौर पर उनके भाषण को दो करोड़ लोगों ने सुना जबकि उतनी ही संख्या में लोगों ने उन्हें देखा। नेहरू को लेकर लोगों में ऐसी लोकप्रियता थी कि जब उनकी कार सड़क से गुजरती थी तो लोग सड़कों पर उमड़ पड़ते थे। जिन लोगों ने नेहरू को देखा और उनका भाषण सुना उनमें श्रमिक, खेतिहर मजदूर, किसान, बच्चे, चरवाहे सब शामिल थे। सभी जातियों की महिलाएं उन्हें सुनने के लिए आती थीं। यहां तक कि उन्हें सुनने के लिए उनके विरोधी भी आते थे।
आम चुनाव 1951-52 में प्रचार करते जवाहर लाल नेहरू
- फोटो :
Election Commission of India
जनसभा में लोगों को ले जाने के लिए विशेष रेलगाड़ियां
'द पिलग्रिमेज एंड आफ्टर: द स्टोरी ऑफ हाऊ कांग्रेस फाउट एंड वॉन द जनरल इलेक्शन' में लिखा गया कि लगभग हरेक जगह शहरों में, कस्बों में, गली में सड़क के किनारे, चौक पर लोग रात-रातभर जागकर देश के नेता का इंतजार करते थे। वे जहां भी जाते स्कूल और दुकानें बंद हो जातीं, किसान और उनके साथ काम करने वाले मजदूरों की भी कुछ समय के लिए छुट्टी मिल जाती। नेहरू की जनसभा में लोगों को ले जाने के लिए विशेष रेलगाड़ियां चलाई गईं। कई उत्साही लोग सिर्फ सीढ़ी पर ही नहीं चढ़े, बल्कि वे ट्रेन की छतों तक पर बैठ गए। जनसभा की विशाल भीड़ में कई लोग बेहोश हो गए। हो सकता है यह बातें कुछ बढ़ा चढ़ाकर लिखी गईं हों, लेकिन उस दौर में पंडित नेहरू की लोकप्रियता से कोई इनकार नहीं कर सकता है।
'द पिलग्रिमेज एंड आफ्टर: द स्टोरी ऑफ हाऊ कांग्रेस फाउट एंड वॉन द जनरल इलेक्शन' में लिखा गया कि लगभग हरेक जगह शहरों में, कस्बों में, गली में सड़क के किनारे, चौक पर लोग रात-रातभर जागकर देश के नेता का इंतजार करते थे। वे जहां भी जाते स्कूल और दुकानें बंद हो जातीं, किसान और उनके साथ काम करने वाले मजदूरों की भी कुछ समय के लिए छुट्टी मिल जाती। नेहरू की जनसभा में लोगों को ले जाने के लिए विशेष रेलगाड़ियां चलाई गईं। कई उत्साही लोग सिर्फ सीढ़ी पर ही नहीं चढ़े, बल्कि वे ट्रेन की छतों तक पर बैठ गए। जनसभा की विशाल भीड़ में कई लोग बेहोश हो गए। हो सकता है यह बातें कुछ बढ़ा चढ़ाकर लिखी गईं हों, लेकिन उस दौर में पंडित नेहरू की लोकप्रियता से कोई इनकार नहीं कर सकता है।
आम चुनाव 1951-52 में प्रचार करते जवाहर लाल नेहरू
- फोटो :
Election Commission of India
लोगों ने सुरक्षा घेरे तक को तोड़ दिया था
इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में पंडित नेहरू की चुनावी रैलियों के बारे में बताते हुए वे लिखते हैं, बंबई में पंडित नेहरू की चुनावी सभा थी सुबह से ही लोग सड़कों और चौराहों पर जमा होना शुरू हो गए थे। लोगों में नेहरू को नजरभर देख लेने का गजब का उत्साह था। हर कोई दोपहर में होने वाले उनके भाषण के बारे में बात कर रहा था। नेहरू के प्रति दीवानगी का आलम ये था कि उन्हें देखने के लिए लोगों ने सड़क किनारे लगे सुरक्षा घेरे तक को तोड़ दिया था।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में पंडित नेहरू की चुनावी रैलियों के बारे में बताते हुए वे लिखते हैं, बंबई में पंडित नेहरू की चुनावी सभा थी सुबह से ही लोग सड़कों और चौराहों पर जमा होना शुरू हो गए थे। लोगों में नेहरू को नजरभर देख लेने का गजब का उत्साह था। हर कोई दोपहर में होने वाले उनके भाषण के बारे में बात कर रहा था। नेहरू के प्रति दीवानगी का आलम ये था कि उन्हें देखने के लिए लोगों ने सड़क किनारे लगे सुरक्षा घेरे तक को तोड़ दिया था।
आम चुनाव 1951-52 में प्रचार करते जवाहर लाल नेहरू
- फोटो :
Election Commission of India
जब मशहूर पहलवान ने नेहरू को सोने की चेन भेंट की
गुहा दिल्ली में हुई नेहरू की रैली का जिक्र करते हुए बताते हैं कि जब दिल्ली में नेहरू ने अपना भाषण खत्म किया और मंच से उतरे तो उस जमाने का मशहूर पहलवान मासू सामने आया और उसने उन्हें एक सोने की चेन भेंट की। मासू पहलवान ने कहा कि 'यह तो कुछ भी नहीं है, मैं तो अपनी पूरी जिंदगी आपके लिए और इस देश के लिए कुर्बान कर सकता हूं।' इसी तरह खड़गपुर में नेहरू को सुनने के लिए एक तेलुगु भाषी महिला पहुंच गई। जब नेहरू का भाषण चल रहा था उसी समय उसे प्रसव पीड़ा शुरू हुई। आनन-फानन में आंध्र प्रदेश के कुछ लोगों ने उसके चारों तरफ घेरा बना दिया। सकुशल बच्चे का जन्म हो गया, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि दाई का काम करने वाली महिलाओं का एक कान उनके नायक के भाषण की तरफ ही था। ये उस दौर में पंडित नेहरू की लोकप्रियता का आलम बताने के लिए काफी है।
आज के चुनावी किस्से में हमने बात की उस दौर में हुए चुनाव प्रचार की। तत्कालीन प्रधानमंत्री के प्रति लोगों की दीवानगी की। अगले किस्से में बात करेंगे एक ऐसी जगह जहां नेहरू भी नहीं जा सके। वो जहां-जहां देश में सबसे पहले मतदान हुआ था। कैसे लोग दुरुह जंगल और घाटियों से गुजरकर मतदान करने पहुंचे। देश में लोकतंत्र के पहले उत्सव में किस तरह की तस्वीरों ने सुर्खियां बटोरी थीं।
गुहा दिल्ली में हुई नेहरू की रैली का जिक्र करते हुए बताते हैं कि जब दिल्ली में नेहरू ने अपना भाषण खत्म किया और मंच से उतरे तो उस जमाने का मशहूर पहलवान मासू सामने आया और उसने उन्हें एक सोने की चेन भेंट की। मासू पहलवान ने कहा कि 'यह तो कुछ भी नहीं है, मैं तो अपनी पूरी जिंदगी आपके लिए और इस देश के लिए कुर्बान कर सकता हूं।' इसी तरह खड़गपुर में नेहरू को सुनने के लिए एक तेलुगु भाषी महिला पहुंच गई। जब नेहरू का भाषण चल रहा था उसी समय उसे प्रसव पीड़ा शुरू हुई। आनन-फानन में आंध्र प्रदेश के कुछ लोगों ने उसके चारों तरफ घेरा बना दिया। सकुशल बच्चे का जन्म हो गया, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि दाई का काम करने वाली महिलाओं का एक कान उनके नायक के भाषण की तरफ ही था। ये उस दौर में पंडित नेहरू की लोकप्रियता का आलम बताने के लिए काफी है।
आज के चुनावी किस्से में हमने बात की उस दौर में हुए चुनाव प्रचार की। तत्कालीन प्रधानमंत्री के प्रति लोगों की दीवानगी की। अगले किस्से में बात करेंगे एक ऐसी जगह जहां नेहरू भी नहीं जा सके। वो जहां-जहां देश में सबसे पहले मतदान हुआ था। कैसे लोग दुरुह जंगल और घाटियों से गुजरकर मतदान करने पहुंचे। देश में लोकतंत्र के पहले उत्सव में किस तरह की तस्वीरों ने सुर्खियां बटोरी थीं।