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चुनावी किस्से: 1951-52 में सिनेमाघरों में बताते थे कैसे करें मतदान, जेपी का भाषण सुन मंत्रमुग्ध हो जाते थे लोग

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: जयदेव सिंह Updated Mon, 12 Feb 2024 07:38 PM IST
सार
चुनावी किस्से: देश में 1951-52 में राज्यों की विधानसभाओं के साथ पहले आम चुनाव हुए थे। आज मतदान के लिए लोगों को जागरुक करने के कई साधन हैं। हालांकि, पहले चुनाव के लिए लोगों को फिल्म और रेडियो के जरिए जागरुक किया गया था। पढ़ते हैं चुनावी किस्से में इसके बारे में...
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Chunavi Kisse: how people were introduced for polling in first lok sabha election
1951-52 आम चुनाव - फोटो : Amar Ujala

विस्तार
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देश में चुनाव तारीखों का एलान अभी नहीं हुआ है, लेकिन माहौल चुनावी हो चुका है। गठबंधन बनने और टूटने लगे हैं। हर कोई अपने समीकरण साधने में लगा है। इन सब के बीच एक नए चुनावी किस्से के साथ हम फिर से हाजिर हैं। पिछले चुनावी किस्से में हमने देश के पहले चुनाव की तैयारियों की बात की थी। आज बात उस पहले चुनाव के कुछ रोचक पहलुओं की करते हैं। 




देश के पहले चुनाव में कई प्रयोग हुए थे। ऐसा ही एक प्रयोग था चुनाव में इस्तेमाल की गई मतपेटियों का। आज के दौर में आप ईवीएम से वोट डालते हैं। ईवीएम से पहले जिन्होंने वोट डाला है वो जानते हैं कि कैसे एक मतपत्र पर सभी उम्मीदवारों के नाम और चुनाव चिह्न दिए होते थे, इनमें से अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम और चुनाव चिह्न के आगे मतदाता को मुहर लगानी होती थी। इसके बाद मतपत्र को मोड़कर मतपेटी में डालना होता था। स्थानीय निकाय के चुनावों में कई जगह अभी भी इसी तरह से मतदान होता है, लेकिन देश के पहले चुनाव में इन दोनों ही तरीकों से मतदान नहीं हुआ था। 

मतपेटी
मतपेटी - फोटो : Election Commission of India
हर मतपेटी पर एक पार्टी का चुनाव निशान
उस चुनाव में चुनाव आयोग ने बहुउद्देशीय मतपेटी का इस्तेमाल किया था। इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं। दरअसल, उस चुनाव में एक मतदान केंद्र पर इस्पात की कई पेटियां रखी गई थीं। हर पेटी पर एक पार्टी का चुनाव चिह्न अंकित था। कहने का मतलब अगर किसी सीट पर 10 उम्मीदवार खड़े हैं तो वहां के हर मतदान केंद्र पर 10-10 मतपेटियां रखी गई थीं। हर मत पेटी पर एक उम्मीदवार का चुनाव चिह्न अंकित था। इस तरह से लाइन से रखी 10 मतपेटियों पर 10 उम्मीदवारों के चुनाव चिह्न अंकित थे। मतदान केंद्र पर पहुंचा मतदाता अपनी पसंद से उम्मीदवार के चुनाव चिह्न वाली मतपेटी में आसानी से अपना मतपत्र मुहर लगाने के बाद डाल सकता था। 

एक और बात जब देश में पहली बार चुनाव हो रहे थे तब लोकसभा के साथ सभी राज्यों की विधानसभाओं के भी चुनाव हो रहे थे। ऐसे में लोकसभा की तरह ही विधानसभा सीट पर खड़े उम्मीदवारों के लिए भी मतपेटियों की एक लाइन अलग से मतदान केंद्र पर रखी गई थीं। जहां मतदाता को अपना वोट डालना था। इस तरह अगर किसी विधानसभा सीट पर 10 उम्मीदवार हैं, उससे संबंधित लोकसभा सीट पर भी 10 उम्मीदवार थे तो कुल 20-20 मतपेटियां उससे संबंधित हर मतदान केंद्र पर रखी गईं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस चुनाव में मतदान सामाग्री को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना और उससे संभालना किताना मुश्किल और मेहनत का काम था। ये सबकुछ इसलिए किया गया क्योंकि उस वक्त देश की 85 फीसदी आबादी अशिक्षित थी। मतपत्र को पढ़ने में असमर्थ मतदाता गलती नहीं कर दे इसलिए हर चुनाव चिह्न की एक मतपेटी रखी गई। 

लोगों को जागरुक करने के लिए दिखाई गईं फिल्में
लोगों को जागरुक करने के लिए दिखाई गईं फिल्में - फोटो : Election Commission of India
पहला चुनाव के लिए लोगों को जागरुक करना बड़ी चुनौती थी
एक समस्या और थी फर्जी मतदान की, इसे रोकने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने एक स्याही का आविष्कार किया, यह स्याही  मतदाता की उंगली पर लगाई जानी थी। इसे इस तरह से तैयार किया गया था कि लगने के बाद यह एक सप्ताह तक मिटाई नहीं जा सकती थी। आज भी यह विशेष स्याही वोट डालने वाले मतदाताओं की उंगली पर लगाई जाती है। देश के पहले चुनाव के दौरान इस स्याही की 3,89,816 छोटी बोतलें इस्तेमाल में लाई गई थीं।

आज भी हर चुनाव से पहले चुनाव आयोग अलग-अलग तरह के जागरुकता अभियान चलाता है, लेकिन जब पहला चुनाव हुआ था तब लोगों को जागरुक करना बहुत बड़ी चुनौती थी। 1951 में चुनाव आयोग सालभर लोगों को फिल्म और रेडियो के माध्यम से जागरुक करता रहा। देशभर के तीन हजार सिनेमाघरों में मतदान प्रक्रिया पर एक डॉक्युमेंट्री दिखाई गई। इसमें न सिर्फ वोट डालने के बारे में बताया गया बल्कि, मतदाताओं के क्या कर्तव्य हैं यह भी दिखाया गया। इसके साथ ही ऑल इंडिया रेडियो के द्वारा कई कार्यक्रम किए गए। इनके जरिए भी मतदाताओं को जागरुक किया गया। इन संदेशों में संविधान, वयस्क मताधिकार का उद्देश्य, मतदाता सूची की तैयारी से लेकर मतदान प्रक्रिया तक की जानकारी दी जाती थी।

चुनाव प्रचार करतीं पार्टियां
चुनाव प्रचार करतीं पार्टियां - फोटो : Election Commission of India
चुनाव में कांग्रेस के सामने नई पार्टियों की भरमार 
देश के पहले चुनाव में भी काफी विविधता थी। पुराने चुनाव नतीजे भले कांग्रेस के वर्चस्व की कहानी कहते हैं, लेकिन देश के पहले चुनाव में भी राजनीतिक दलों और नेताओं में गजब की विविधता थी। सत्ताधारी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सामने मैदान में कई नई पार्टियां खड़ी थीं जो कुछ महान नेताओं द्वारा बनाई गई थीं।

वामपंथ की ओर झुकाव रखने वाली प्रमुख पार्टी थी जेबी कृपलानी की कृषक मजदूर प्रजा पार्टी और जयप्रकाश नारायण की सोशलिस्ट पार्टी। वहीं दक्षिणपंथ की ओर झुका जनसंघ भी चुनाव मैदान में था, इसके संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक समय पंडित नेहरू की केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री रहे थे। उसी तरह उस जमाने की अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले महान वकील बीआर अंबेडकर भी केंद्र सरकार में मंत्री रहे थे, उन्होंने भी चुनाव के वक्त अनुसूचित जाति महासंघ को मजबूत करने के लिए सरकार से इस्तीफा दे दिया था। अपने चुनावी भाषणों में उन्होंने निचली जातियों के विकास पर बहुत कम ध्यान देने के लिए सरकार की तीखी आलोचना की थी।  

पार्टियों की इस सूची में कई क्षेत्रीय पार्टियां भी शामिल थीं। इनमें मद्रास की द्रविड़ कड़गम, पंजाब में अकाली दल और बिहार में झारखंड पार्टी जैसी पार्टियां शामिल थीं। द्रविड़ कड़गम तमिल गौरव को बढ़ावा देने की नीति पर चुनाव लड़ रही थी, इसी तरह अकाली दल सिखों की बात करने वाली पार्टी थी तो झारखंड पार्टी बिहार से अलग आदिवासियों के लिए एक अलग प्रांत की की मांग कर रही थी। 

वामपंथी पार्टी के कुछ अलग हुए धड़े भी चुनाव मैदान में थे, इसी तरह हिंदू महासभा और रामराज्य परिषद नाम के दो हिंदूवादी दल भी चुनाव लड़ रहे थे। इन सभी पार्टियों के नेताओं ने सालों तक राजनीतिक आंदोलनों में हिस्सा लिया था। इनमें से कुछ राष्ट्रवादी उद्देश्यों के लिए तो कुछ कम्युनिस्ट आंदोलनों में जेल जा चुके थे। 

जयप्रकाश नारायण
जयप्रकाश नारायण - फोटो : PIB
एसपी मुखर्जी और जयप्रकाश जैसे वक्ताओं के भाषण सुन लोग हो जाते थे मंत्रमुग्ध
रामचंद्र गुहा अपनी किताब इंडिया आफ्टर गांधी में इन चुनाव के बारे में लिखते हैं, ‘एसपी मुखर्जी और जयप्रकाश नारायण जैसे नेता लाजबाब वक्ता थे। उनके भाषण सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे और उनके तर्क मानने पर मजबूर हो जाते थे। चुनावों से पहले राजनीति शास्त्री रिचर्ड पार्क ने लिखा कि 'दुनिया के किसी भी देश में प्रमुख राजनीतिक पार्टियों और नेताओं ने चुनावी रणनीति, चुनावी मुद्दों के नाटकीय प्रदर्शन, राजनैतिक भाषण कला और राजनीतिक मनोविज्ञान पर अपने अधिकार का इतना जबर्दस्त प्रदर्शन नहीं किया है जितना भारत में हुआ है।'

चुनाव के दौरान बड़ी-बड़ी जनसभाएं हो रहीं थीं, पार्टियां और प्रत्याशी घर-घर जाकर प्रचार कर रहे थे। दृश्य-श्रव्य माध्यमों का भी भरपूर इस्तेमाल हो रहा था। चुनाव प्रचार जब उफान पर था तो हर जगह पर्चे और पार्टी के प्रतीक चिह्न लगा दिए गए। चुनाव प्रचार का यह शोर जब थमा तब शुरू हुई चुनाव की प्रक्रिया। इस प्रक्रिया की भी बड़ी रोचक कहानी है। देश के पहले चुनाव के दौरान मतदान से लेकर मतगणना तक का किस्सा अगली कड़ी में जानेंगे।

चुनावी किस्से का पहला एपिसोड यहां देखें : एक परंपरा के चलते पहले चुनाव में कटे 28 लाख महिलाओं के नाम
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