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कच्चातिवू पर फिर सियासत: 'चुनाव प्रचार के दौरान मुद्दा उठाना गैर जिम्मेदाराना', PM मोदी पर कांग्रेस का हमला
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: काव्या मिश्रा
Updated Mon, 10 Jun 2024 10:12 AM IST
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सार
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि कच्चातिवू मुद्दे को याद कीजिए, जिसे चुनाव प्रचार के दौरान एक तिहाई प्रधानमंत्री ने गढ़ा था।

पीएम मोदी पर कांग्रेस का हमला
- फोटो : एएनआई
विस्तार
देश में एक बार फिर कच्चातिवु द्वीप को लेकर राजनीति गर्मा गई है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कच्चातिवू का मुद्दा उठाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसा है। सबसे पुरानी पार्टी ने सोमवार को कहा कि इस मुद्दे को उठाने से श्रीलंका और भारत के रिश्ते बिगड़ सकते हैं। साथ ही उनसे पूछा कि क्या वह और उनके साथी पड़ोसी देश के साथ बड़ा डर पैदा करने के लिए माफी मांगेंगे।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने यह भी कहा कि इस मुद्दे को उठाना बेहद गैर जिम्मेदाराना और इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करना है।
चुनाव प्रचार के दौरान जयशंकर ने किया था दावा
तमिलनाडु में चुनाव प्रचार के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दावा किया था कि कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने कच्चातिवु द्वीप को लेकर उदासीनता दिखाई जैसे कि उन्हें इसकी परवाह नहीं थी और इसके विपरीत कानूनी विचारों के बावजूद उन्होंने भारतीय मछुआरों के अधिकारों को छोड़ दिया। उनका कहना था कि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे प्रधानमंत्रियों ने समुद्री सीमा समझौते के तहत 1974 में श्रीलंका को दिए गए कच्चातिवु को छोटा द्वीप और छोटी चट्टान करार दिया था और कहा था कि यह मुद्दा अचानक नहीं उठा है। हमेशा एक जीवंत मामला था।
मोदी ने साझा की थी एक मीडिया रिपोर्ट
जयशंकर का बयान तब सामने आया था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि उसने बेरहमी से कच्चातिवु को छोड़ दिया था। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर रिपोर्ट साझा की थी। उन्होंने पोस्ट कर कहा था, 'आंखें खोलने और चौंकाने वाला सच सामने आया है। नए तथ्यों से पता चलता है कि कांग्रेस ने किस तरह बेरहमी से कच्चातिवु को छोड़ दिया। इसने हर भारतीय को नाराज कर दिया है। हम कांग्रेस पर कभी भरोसा नहीं कर सकते। भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 सालों से काम करने का तरीका रहा है।'
एक तिहाई प्रधानमंत्री ने गढ़ा था कच्चातिवू मुद्दा: कांग्रेस
अब कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि शपथ ग्रहण समारोह में श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे भी मौजूद थे। उन्होंने कहा, 'कच्चातिवू मुद्दे को याद कीजिए, जिसे चुनाव प्रचार के दौरान एक तिहाई प्रधानमंत्री ने गढ़ा था। वहीं तमिलनाडु में समर्थन जुटाने के लिए उनके भाजपा सहयोगियों ने इस मुद्दे को उठाया था। यह बेहद गैर जिम्मेदाराना और इतिहास को गंभीर रूप से तोड़-मरोड़कर पेश करने वाला कदम था।'
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि हालांकि, तमिलनाडु के लोगों ने इसका करारा जवाब दिया है। लेकिन पीएम के ऐसे कदम से श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के पटरी से उतरने का खतरा है। उन्होंने पूछा कि लेकिन क्या मोदी और उनके सहयोगी हमारे पड़ोसी के साथ इतना बड़ा डर पैदा करने के लिए माफी मांगेंगे, खासकर जब वह नेबरहुड फर्स्ट नीति का दावा करते हैं?
इस मुद्दे पर भाजपा पर पलटवार करते हुए विपक्षी नेताओं ने उस समय 2015 के आरटीआई जवाब का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया था कि 1974 और 1976 के समझौतों में भारत के क्षेत्र का अधिग्रहण या हस्तांतरण शामिल नहीं था और पूछा कि क्या मोदी सरकार के रुख में बदलाव चुनावी राजनीति के लिए था।
14 करोड़ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के लाभों से वंचित
कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश को बताना चाहिए कि जनगणना कब कराई जाएगी। साथ ही मांग की कि संविधान में निहित सामाजिक न्याय को सही अर्थ देने के लिए ओबीसी के रूप में वर्गीकृत समुदायों की जनसंख्या के आंकड़े भी उपलब्ध कराए जाएं।
जयराम रमेश ने कहा कि केंद्र सरकार हर 10 साल में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए आवश्यक देशव्यापी जनगणना करवाती है। पिछले रिकॉर्ड के हिसाब से जनगणना 2021 में होना था। लेकिन नरेंद्र मोदी ने इसे अबतक नहीं करवाया है। 2021 में जनगणना न होने का एक दुष्परिणाम यह है कि कम से कम 14 करोड़ भारतीय राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के लाभ से वंचित हो रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा, एक तिहाई प्रधानमंत्री को जल्द से जल्द देश को बताना होगा कि अपडेटेड जनगणना कब कराई जाएगी। 1951 से दशकीय जनगणना ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या पर डाटा दिया है। अपडेटेड जनगणना में ओबीसी के रूप में वर्गीकृत समुदायों की जनसंख्या पर भी डाटा दिया जाना चाहिए। ऐसा होने से हमारे गणतंत्र के संविधान में निहित सामाजिक न्याय को सही अर्थ मिलेगा। संविधान को हाल ही में देश के लोगों ने नरेंद्र मोदी, उनके चीयरलीडर्स और उनके लिए ढोल पीटने वालों के हमलों से बचाया है।
क्या थी आरटीआई में जानकारी?
तमिलनाडु भाजपा प्रमुख के अन्नामलाई ने आरटीआई दायर कर कच्चातिवु के बारे में पूछा था। आरटीआई सामने आने पर पता चला कि सन् 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके ने एक समझौता किया था। इसके तहत कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को औपचारिक रूप से सौंप दिया गया था। बताया गया है कि इंदिरा गांधी ने तमिलनाडु में लोकसभा अभियान को देखते हुए यह समझौता किया था। संसद के आधिकारिक दस्तावेजों और रिकॉर्ड से पता चलता है कि किस तरह अस्थिर भारत पाक जलडमरूमध्य में द्वीप पर नियंत्रण की लड़ाई एक छोटे देश से हार गया, जो इसे छीनने के लिए प्रतिबद्ध था।
मुझे इसे छोड़ने में कोई संकोच नहीं: नेहरू
इतना ही नहीं रिपोर्ट में इस मुद्दे पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की टिप्पणियों का भी हवाला दिया गया है। बताया गया है कि नेहरू ने कहा था कि उन्हें द्वीप पर दावा छोड़ने में कोई संकोच नहीं होगा। उन्होंने कहा था, 'मैं इस छोटे से द्वीप को कोई महत्व नहीं देता हूं और मुझे इसके लिए अपने दावों को छोड़ने में कोई संकोच नहीं होगा।' नेहरू ने लिखा था कि मुझे यह पसंद नहीं है कि यह अनिश्चित काल के लिए लंबित रहे और संसद में इस मुद्दे को फिर से उठाया जाए।
ये द्वीप कहां है?
कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में एक छोटा सा द्वीप है, जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। 285 एकड़ हरित क्षेत्र 1976 तक भारत का था। हालांकि, श्रीलंका और भारत के बीच एक विवादित क्षेत्र है, जिस पर आज श्रीलंका हक जताता है। दरअसल, साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने समकक्ष श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ 1974-76 के बीच चार समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। इन्हीं समझौते के तहत कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया।
कच्चातिवू द्वीप का इतिहास क्या है?
कच्चातिवू द्वीप का निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था। यह कभी 17वीं शताब्दी में मदुरई के राजा रामानद के अधीन था। ब्रिटिश शासनकाल में यह द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आया। 1921 में श्रीलंका और भारत दोनों ने मछली पकड़ने के लिए भूमि पर दावा किया और विवाद अनसुलझा रहा। आजादी के बाद इसे भारत का हिस्सा माना गया।
कच्चातिवू द्वीप क्या महत्व है?
यह द्वीप सामरिक महत्व का था और इसका उपयोग मछुआरे करते थे। हालांकि इस द्वीप पर श्रीलंका लगातार दावा जताता रहा। यह मुद्दा तब उभरा जब भारत-श्रीलंका ने समुद्री सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए। साल 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच इस द्वीप के बारे में बातचीत हुई। इन्हीं दो बैठकों में कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया।
तब शर्त यह रखी गई कि भारतीय मछुआरे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे और द्वीप में बने चर्च में भारत के लोगों को बिना वीजा के जाने की अनुमति होगी। समझौतों ने भारत और श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा चिह्नित कर दी। हालांकि इस समझौते का तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने तीखा विरोध किया था।
श्रीलंका में अलगाववादी समूह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के सक्रिय वर्षों के दौरान, श्रीलंकाई सरकार ने सैन्य अभियानों के मुद्दों को उठाते हुए पानी में श्रीलंकाई मछुआरों की आसान आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया था। 2009 में, श्रीलंका ने पाक जलडमरूमध्य में अपनी समुद्री सीमा की कड़ी सुरक्षा शुरू कर दी। 2010 में एलटीटीई के साथ संघर्ष की समाप्ति के साथ श्रीलंकाई मछुआरों ने फिर से पाक खाड़ी में अपना आंदोलन शुरू कर दिया और अपने खोए हुए क्षेत्र को दोबारा हासिल कर लिया।
भारत में इस द्वीप को लेकर विवाद क्या है?
तमिलनाडु की तमाम सरकारें 1974 के समझौते को मानने से इनकार करती रहीं और श्रीलंका से द्वीप को दोबारा प्राप्त करने की मांग उठाती रहीं। 1991 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा समझौते के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया जिसके जरिए द्वीप को पुनः प्राप्त करने की मांग की गई थी।
2008 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं और कच्चातिवु समझौतों को रद्द करने की अपील की। उन्होंने कहा था कि श्रीलंका को कच्चातिवु उपहार में देने वाले देशों के बीच दो संधियां असंवैधानिक हैं। इसके अलावा साल 2011 में जयललिता ने एक बार फिर से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया।
मई 2022 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पीएम मोदी की मौजूदगी में एक समारोह में मांग की थी कि कच्चातिवु द्वीप को भारत में पुनः प्राप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि पारंपरिक तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकार अप्रभावित रहें, इसलिए इस संबंध में कार्रवाई करने का यह सही समय है।
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कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने यह भी कहा कि इस मुद्दे को उठाना बेहद गैर जिम्मेदाराना और इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करना है।
चुनाव प्रचार के दौरान जयशंकर ने किया था दावा
तमिलनाडु में चुनाव प्रचार के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दावा किया था कि कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने कच्चातिवु द्वीप को लेकर उदासीनता दिखाई जैसे कि उन्हें इसकी परवाह नहीं थी और इसके विपरीत कानूनी विचारों के बावजूद उन्होंने भारतीय मछुआरों के अधिकारों को छोड़ दिया। उनका कहना था कि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे प्रधानमंत्रियों ने समुद्री सीमा समझौते के तहत 1974 में श्रीलंका को दिए गए कच्चातिवु को छोटा द्वीप और छोटी चट्टान करार दिया था और कहा था कि यह मुद्दा अचानक नहीं उठा है। हमेशा एक जीवंत मामला था।
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मोदी ने साझा की थी एक मीडिया रिपोर्ट
जयशंकर का बयान तब सामने आया था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि उसने बेरहमी से कच्चातिवु को छोड़ दिया था। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर रिपोर्ट साझा की थी। उन्होंने पोस्ट कर कहा था, 'आंखें खोलने और चौंकाने वाला सच सामने आया है। नए तथ्यों से पता चलता है कि कांग्रेस ने किस तरह बेरहमी से कच्चातिवु को छोड़ दिया। इसने हर भारतीय को नाराज कर दिया है। हम कांग्रेस पर कभी भरोसा नहीं कर सकते। भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 सालों से काम करने का तरीका रहा है।'
एक तिहाई प्रधानमंत्री ने गढ़ा था कच्चातिवू मुद्दा: कांग्रेस
अब कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि शपथ ग्रहण समारोह में श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे भी मौजूद थे। उन्होंने कहा, 'कच्चातिवू मुद्दे को याद कीजिए, जिसे चुनाव प्रचार के दौरान एक तिहाई प्रधानमंत्री ने गढ़ा था। वहीं तमिलनाडु में समर्थन जुटाने के लिए उनके भाजपा सहयोगियों ने इस मुद्दे को उठाया था। यह बेहद गैर जिम्मेदाराना और इतिहास को गंभीर रूप से तोड़-मरोड़कर पेश करने वाला कदम था।'
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि हालांकि, तमिलनाडु के लोगों ने इसका करारा जवाब दिया है। लेकिन पीएम के ऐसे कदम से श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के पटरी से उतरने का खतरा है। उन्होंने पूछा कि लेकिन क्या मोदी और उनके सहयोगी हमारे पड़ोसी के साथ इतना बड़ा डर पैदा करने के लिए माफी मांगेंगे, खासकर जब वह नेबरहुड फर्स्ट नीति का दावा करते हैं?
इस मुद्दे पर भाजपा पर पलटवार करते हुए विपक्षी नेताओं ने उस समय 2015 के आरटीआई जवाब का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया था कि 1974 और 1976 के समझौतों में भारत के क्षेत्र का अधिग्रहण या हस्तांतरण शामिल नहीं था और पूछा कि क्या मोदी सरकार के रुख में बदलाव चुनावी राजनीति के लिए था।
14 करोड़ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के लाभों से वंचित
कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश को बताना चाहिए कि जनगणना कब कराई जाएगी। साथ ही मांग की कि संविधान में निहित सामाजिक न्याय को सही अर्थ देने के लिए ओबीसी के रूप में वर्गीकृत समुदायों की जनसंख्या के आंकड़े भी उपलब्ध कराए जाएं।
जयराम रमेश ने कहा कि केंद्र सरकार हर 10 साल में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए आवश्यक देशव्यापी जनगणना करवाती है। पिछले रिकॉर्ड के हिसाब से जनगणना 2021 में होना था। लेकिन नरेंद्र मोदी ने इसे अबतक नहीं करवाया है। 2021 में जनगणना न होने का एक दुष्परिणाम यह है कि कम से कम 14 करोड़ भारतीय राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के लाभ से वंचित हो रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा, एक तिहाई प्रधानमंत्री को जल्द से जल्द देश को बताना होगा कि अपडेटेड जनगणना कब कराई जाएगी। 1951 से दशकीय जनगणना ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या पर डाटा दिया है। अपडेटेड जनगणना में ओबीसी के रूप में वर्गीकृत समुदायों की जनसंख्या पर भी डाटा दिया जाना चाहिए। ऐसा होने से हमारे गणतंत्र के संविधान में निहित सामाजिक न्याय को सही अर्थ मिलेगा। संविधान को हाल ही में देश के लोगों ने नरेंद्र मोदी, उनके चीयरलीडर्स और उनके लिए ढोल पीटने वालों के हमलों से बचाया है।
क्या थी आरटीआई में जानकारी?
तमिलनाडु भाजपा प्रमुख के अन्नामलाई ने आरटीआई दायर कर कच्चातिवु के बारे में पूछा था। आरटीआई सामने आने पर पता चला कि सन् 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके ने एक समझौता किया था। इसके तहत कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को औपचारिक रूप से सौंप दिया गया था। बताया गया है कि इंदिरा गांधी ने तमिलनाडु में लोकसभा अभियान को देखते हुए यह समझौता किया था। संसद के आधिकारिक दस्तावेजों और रिकॉर्ड से पता चलता है कि किस तरह अस्थिर भारत पाक जलडमरूमध्य में द्वीप पर नियंत्रण की लड़ाई एक छोटे देश से हार गया, जो इसे छीनने के लिए प्रतिबद्ध था।
मुझे इसे छोड़ने में कोई संकोच नहीं: नेहरू
इतना ही नहीं रिपोर्ट में इस मुद्दे पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की टिप्पणियों का भी हवाला दिया गया है। बताया गया है कि नेहरू ने कहा था कि उन्हें द्वीप पर दावा छोड़ने में कोई संकोच नहीं होगा। उन्होंने कहा था, 'मैं इस छोटे से द्वीप को कोई महत्व नहीं देता हूं और मुझे इसके लिए अपने दावों को छोड़ने में कोई संकोच नहीं होगा।' नेहरू ने लिखा था कि मुझे यह पसंद नहीं है कि यह अनिश्चित काल के लिए लंबित रहे और संसद में इस मुद्दे को फिर से उठाया जाए।
ये द्वीप कहां है?
कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में एक छोटा सा द्वीप है, जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। 285 एकड़ हरित क्षेत्र 1976 तक भारत का था। हालांकि, श्रीलंका और भारत के बीच एक विवादित क्षेत्र है, जिस पर आज श्रीलंका हक जताता है। दरअसल, साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने समकक्ष श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ 1974-76 के बीच चार समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। इन्हीं समझौते के तहत कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया।
कच्चातिवू द्वीप का इतिहास क्या है?
कच्चातिवू द्वीप का निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था। यह कभी 17वीं शताब्दी में मदुरई के राजा रामानद के अधीन था। ब्रिटिश शासनकाल में यह द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आया। 1921 में श्रीलंका और भारत दोनों ने मछली पकड़ने के लिए भूमि पर दावा किया और विवाद अनसुलझा रहा। आजादी के बाद इसे भारत का हिस्सा माना गया।
कच्चातिवू द्वीप क्या महत्व है?
यह द्वीप सामरिक महत्व का था और इसका उपयोग मछुआरे करते थे। हालांकि इस द्वीप पर श्रीलंका लगातार दावा जताता रहा। यह मुद्दा तब उभरा जब भारत-श्रीलंका ने समुद्री सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए। साल 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच इस द्वीप के बारे में बातचीत हुई। इन्हीं दो बैठकों में कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया।
तब शर्त यह रखी गई कि भारतीय मछुआरे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे और द्वीप में बने चर्च में भारत के लोगों को बिना वीजा के जाने की अनुमति होगी। समझौतों ने भारत और श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा चिह्नित कर दी। हालांकि इस समझौते का तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने तीखा विरोध किया था।
श्रीलंका में अलगाववादी समूह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के सक्रिय वर्षों के दौरान, श्रीलंकाई सरकार ने सैन्य अभियानों के मुद्दों को उठाते हुए पानी में श्रीलंकाई मछुआरों की आसान आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया था। 2009 में, श्रीलंका ने पाक जलडमरूमध्य में अपनी समुद्री सीमा की कड़ी सुरक्षा शुरू कर दी। 2010 में एलटीटीई के साथ संघर्ष की समाप्ति के साथ श्रीलंकाई मछुआरों ने फिर से पाक खाड़ी में अपना आंदोलन शुरू कर दिया और अपने खोए हुए क्षेत्र को दोबारा हासिल कर लिया।
भारत में इस द्वीप को लेकर विवाद क्या है?
तमिलनाडु की तमाम सरकारें 1974 के समझौते को मानने से इनकार करती रहीं और श्रीलंका से द्वीप को दोबारा प्राप्त करने की मांग उठाती रहीं। 1991 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा समझौते के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया जिसके जरिए द्वीप को पुनः प्राप्त करने की मांग की गई थी।
2008 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं और कच्चातिवु समझौतों को रद्द करने की अपील की। उन्होंने कहा था कि श्रीलंका को कच्चातिवु उपहार में देने वाले देशों के बीच दो संधियां असंवैधानिक हैं। इसके अलावा साल 2011 में जयललिता ने एक बार फिर से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया।
मई 2022 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पीएम मोदी की मौजूदगी में एक समारोह में मांग की थी कि कच्चातिवु द्वीप को भारत में पुनः प्राप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि पारंपरिक तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकार अप्रभावित रहें, इसलिए इस संबंध में कार्रवाई करने का यह सही समय है।