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दिल्ली में कृत्रिम बारिश की तैयारी: प्रदूषण कम करने के लिए कितनी कारगर है यह तकनीक, पहले कहां-कहां हुआ प्रयोग?

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Tue, 28 Oct 2025 04:30 PM IST
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सार

दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने से जुड़ी पूरी योजना क्या है? इसे कैसे और किस तकनीक के जरिए कराया जाएगा? यह तकनीक कितनी प्रभावी है और इसकी चुनौतियां क्या हैं? दुनिया के किन देशों में कृत्रिम बारिश कराई जा चुकी है और इसका नतीजा क्या रहा है? आइये जानते हैं...

Delhi Artificial Rains Cloud Seeding Pollution Control IIT Kanpur IMD Pune Experiment explained
दिल्ली में कृत्रिम वर्षा की तैयारी। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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भारत में पहली बार कृत्रिम बारिश कराए जाने की तैयारियां पूरी हो गई हैं। दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का पहला परीक्षण हो गया है। आज बुराड़ी और करोल बाग इलाके में कानपुर से आए विमान ने क्लाउड सीडिंग की। अधिकारियों ने मंगलवार को बताया कि बुराड़ी और करोल बाग इलाकों सहित दिल्ली के कुछ हिस्सों में क्लाउड-सीडिंग का पहला परीक्षण किया गया है। अब बारिश का इंतजार किया जा रहा है।


ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने से जुड़ी पूरी योजना क्या है? इसे कैसे और किस तकनीक के जरिए कराया जाएगा? यह तकनीक कितनी प्रभावी है और इसकी चुनौतियां क्या हैं? दुनिया के किन देशों में कृत्रिम बारिश कराई जा चुकी है और इसका नतीजा क्या रहा है? आइये जानते हैं...
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पहले जानें- कब से चल रही दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने की कवायद?
दिल्ली में बीते कई साल से प्रदूषण का प्रकोप दर्ज किया जा रहा है। खासकर मानसून सीजन के खत्म होने और ठंड के मौसम के दौरान दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक काफी ऊपर रहा है। दिल्ली की हवा में पीएम 2.5 और पीएम 10 (पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर) कणों की संख्या 300-450 के बीच पहुंच चुकी है। यह दूषित हवा श्वास नली के जरिए लोगों के शरीर में घुसकर उन्हें बुरी तरह प्रभावित करता है। इन परिस्थितियों के मद्देनजर दिल्ली में लोगों की सुरक्षा के लिए सरकार को ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रैप) लागू किया है। प्रदूषण को कम करने और लोगों को बचाने की इस योजना को प्रदूषण की गंभीरता के आधार पर चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाता है।

दिल्ली में वायु प्रदूषण की इसी समस्या से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा कराने की योजना बनाई गई। हालांकि, इसके बारे में पहली बार जिक्र आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार के दौरान किया गया था। 2023 में दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्र सरकार को एक चिट्ठी लिखकर मांग की थी कि क्षेत्र में कृत्रिम वर्षा कराने की अनुमति दी जाए। राय ने आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों और केंद्रीय एजेंसियो के अधिकारियों की एक बैठक भी बुलाने की मांग की थी। 

अब जानें- दिल्ली में कृत्रिम वर्षा कराने की योजना क्या है?
दिल्ली में इस साल भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही प्रदूषण खत्म करने के लिए कृत्रिम वर्षा को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई थीं। खुद दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इससे जुड़े एलान किए। पहले भी दिल्ली में कृत्रिम बारिश के ट्रायल पर चर्चाएं हुईं, हालांकि दिवाली के बाद लगातार खराब होती वायु गुणवत्ता के चलते कृत्रिम बारिश कराने का फैसला अब लिया गया।

कृत्रिम बारिश क्या है और यह कराई कैसे जाती है?


 

कृत्रिम बारिश के बारे में इसकी रासायनिक प्रक्रिया को समझना बेहद जरूरी है। 
  1. जब असक्रिय बादलों पर केमिकल डाला जाता है तो वातावरण में मौजूद जलीय वाष्प (वॉटर वेपर्स) छोटे-छोटे कणों के आसपास जमा हो जाते हैं और बूंदों के तौर पर इकट्ठा होते हैं। यानी यह नमक के कण इन बूंदों के लिए एक अतिरिक्त न्यूक्लियस (केंद्र) का काम करते हैं। 
  2. इस न्यूक्लियस की खासियत यह होती है कि यह एक के बाद एक वाष्प को बूंदों के तौर पर अपने पास इकट्ठा कर लेता है। यह बूंदें जैसे-जैसे बढ़ती हैं और भारी होती हैं, वैसे ही इनका टकराव बढ़ता है। इसी कारण बादल सक्रिय होते हैं और बारिश होती है।

इस पूरी प्रक्रिया में एक बाद गौर करने वाली यह भी है कि क्लाउड सीडिंग से बारिश पैदा नहीं की जाती, बल्कि बादलों की सक्रियता को बढ़ाया जाता है। इस सक्रियता को इस हद तक बढ़ाना होता है कि इसमें मौजूद बूंदें बड़ी हो जाएं और पृथ्वी पर बारिश हो। अगर यह बूंदें छोटी रह जाती हैं तो या तो बादल सक्रिय नहीं होगा या फिर बूंदें गिरने के दौरान ऊपरी वायुमंडल में ही भाप बनकर उड़ जाएंगी। 

इतना ही नहीं कृत्रिम बारिश हर माहौल में नहीं कराई जा सकती। इसके लिए खास तरह के बादल और बादलों का किसी क्षेत्र पर घेराव भी जरूरी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, कृत्रिम बारिश के लिए जिन भी बादलों को सक्रिय करना है, उनमें पहले से ही कुछ नमी यानी जलीय वाष्प मौजूद होना चाहिए। इसके अलावा जिस क्षेत्र पर बारिश कराई जानी है, वहां अच्छी खासी संख्या में बादलों का होना और इनका बड़े द्रव्यमान में होना भी एक शर्त है।

दिल्ली में कैसे कराई जाएगी कृत्रिम वर्षा?
अधिकारियों के अनुसार, विमान ने कानपुर से दिल्ली के लिए उड़ान भरी और केमिकल का छिड़काव किया। पिछले हफ्ते भी बुराड़ी के ऊपर एक परीक्षण उड़ान को अंजाम दिया गया था। परीक्षण के दौरान, कृत्रिम वर्षा कराने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड यौगिकों की थोड़ी मात्रा विमान से छोड़ी गई। हालांकि, क्लाउड सीडिंग के लिए आमतौर पर आवश्यक 50 प्रतिशत की तुलना में 20 प्रतिशत से भी कम वायुमंडलीय नमी के कारण, वर्षा नहीं हो सकी।

प्रदूषण पर अप्रत्यक्ष प्रभाव
क्लाउड सीडिंग सीधे तौर पर प्रदूषण फैलाने वाले कणों को हटाती नहीं है, लेकिन वर्षा के माध्यम से यह हवा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में योगदान दे सकती है। जब वर्षा होती है, तो हवा में निलंबित धूल, पराग कण और अन्य प्रदूषक कण पानी की बूंदों के साथ मिलकर नीचे गिर जाते हैं। इस प्रकार, वर्षा हवा को स्वच्छ करने का कार्य करती है। यह विशेष रूप से उन शहरों या औद्योगिक क्षेत्रों के लिए फायदेमंद हो सकता है जहाँ वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है।

 
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