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SC: ट्रांसजेंडरों से भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, केंद्र को समान अवसर नीति बनाने के दिए निर्देश

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: लव गौर Updated Fri, 17 Oct 2025 10:01 PM IST
सार

Supreme Court on Transgenders: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडरों के साथ हो रहे भेदभाव पर चिंता जताई है। इसी के साथ केंद्र सरकार को समान अवसर नीति बनाने का निर्देश दिया है। 

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Expressing concern over discrimination against transgenders Supreme Court directed Centre
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) - फोटो : ANI
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विस्तार
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सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडरों के साथ हो रहे भेदभाव पर चिंता जताई है। साथ ही अदालत ने केंद्र सरकार के रवैये पर निशारा व्यक्त की।  शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को समान अवसर नीति बनाने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में 2019 में कानून बनने के बावजूद ट्रांसजेंडरों के साथ हो रहे भेदभाव पर चिंता व्यक्त की। वहीं अदालत ने केंद्र को एक सलाहकार समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के तीन महीने के भीतर 'समान अवसर नीति' बनाने का निर्देश दिया है।
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SC ने केंद्र और राज्यों की आलोचना की 
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिकार (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम,2019 और ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिकार (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 अब निष्क्रिय हो गए हैं। पीठ ने केंद्र को फटकार लगाते हुए कहा कि संबंधित नियमों को "क्रूरतापूर्वक समाप्त कर दिया गया है", और केंद्र और राज्यों ने उनके प्रति "घोर उदासीन" रवैया अपनाया है।
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पीठ ने कहा, "यह समुदाय भेदभाव और हाशिए पर धकेले जाने का सामना कर रहा है, स्वास्थ्य सेवा, आर्थिक अवसरों की कमी और गैर-समावेशी शैक्षिक नीतियों ने उनके संघर्षों को और बढ़ा दिया है।" भेदभाव पर निराशा व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा कि 2014 में नालसा मामले में इस न्यायालय के फैसले के 10 साल से भी ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद, जिसके कारण संसद को 2019 में एक कानून बनाना पड़ा, ट्रांसजेंडर समुदाय को अपनी शिकायतों के निवारण के लिए मुख्यतः उच्च न्यायालयों और इस न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार का सहारा लेना पड़ता है।

रोजगार और पेशेवर क्षेत्रों में भेदभाव का शिकार
रोजगार और पेशेवर क्षेत्रों में भेदभाव पर पीठ ने कहा कि 2019 के अधिनियम और 2020 के नियमों के लागू होने के बावजूद ट्रांसजेंडर समुदाय को रोजगार और पेशेवर क्षेत्रों में प्रवेश में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पीठ ने कहा, "'तीसरे लिंग' के विकल्प के अभाव जैसी व्यवस्थागत बाधाएं संगठित कार्यबल में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रवेश को असंभव बना देती हैं। अगर उन्हें नौकरी पर भी रखा जाता है, तो उनसे अपनी पहचान छिपाने की अपेक्षा की जाती है, जो अनुच्छेद 21 के तहत किसी के सम्मान के अधिकार का घोर उल्लंघन है।"

शीर्ष अदालत ने एक ट्रांसजेंडर महिला द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाया। वह नौकरी में अपने साथ हुए भेदभाव और अपमान से व्यथित थी, जिसके कारण कथित तौर पर उत्तर प्रदेश और गुजरात के दो निजी स्कूलों से उसकी पढ़ाई छूट गई थी। अदालत ने केंद्र, उत्तर प्रदेश और गुजरात सरकारों और गुजरात के स्कूल को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता को उसके साथ हुए भेदभाव के लिए 50-50 हजार रुपए का भुगतान करें।

सलाहकार समिति का गठन
इतना ही नहीं पीठ ने ट्रांसजेंडर समुदाय की चिंताओं को दूर करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश आशा मेनन की अध्यक्षता में एक सलाहकार समिति का गठन किया और कहा, "इस मुद्दे पर एक समर्पित समिति द्वारा अधिक गहन अध्ययन की आवश्यकता है, जो एक व्यवहार्य समान अवसर नीति की सिफारिश करने के लिए पूरी तरह सक्षम हो, जिसे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लागू किया जाना चाहिए, साथ ही ट्रांसजेंडर समुदाय के जीवन को प्रभावित करने वाले अन्य पहलुओं पर व्यावहारिक सुझाव भी दे।"

पीठ ने पैनल को फैसले की तारीख से छह महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट और/या मसौदा नीति तैयार करने को कहा और केंद्र को निर्देश दिया कि वह "समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट और/या मसौदा नीति प्रस्तुत करने की तारीख से तीन महीने के भीतर अपनी समान अवसर नीति लागू करे"। पीठ ने कहा कि यदि किसी प्रतिष्ठान की अपनी कोई नीति नहीं है, तो केंद्र द्वारा लागू की जाने वाली नीति ऐसे प्रतिष्ठान पर लागू होगी।
 
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