Haryana: क्या दुष्यंत चौटाला फिर वापस आएंगे भाजपा में? क्या जीत पाएंगे हरियाणा के जाटों का भरोसा?
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विस्तार
हरियाणा में मुख्यमंत्री के बदलने के साथ ही सियासी तूफान मच गया। मनोहर लाल खट्टर की जगह पर नायब सिंह सैनी को नया मुख्यमंत्री बनाया गया है। यह पूरी सियासी तूफान तब उठा जब लोकसभा चुनावों से पहले जजपा के दुष्यंत चौटाला गठबंधन से अलग हो गए। इस पूरे घटनाक्रम के साथ ही हरियाणा में सियासी चर्चाएं हो रहीं हैं कि भाजपा ने सियासी रणनीति के तहत ही यह बड़ा दांव चला है। कांग्रेस के नेताओं की दलील है कि भाजपा और जजपा की मिली भगत है। चुनावों के बाद फिर दोनों दल एक साथ आ जाएंगे और दुष्यंत चौटाला भाजपा के साथ जुड़े रहेंगे। हालांकि सियासी गलियारों में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या बीते पांच सालों में दुष्यंत चौटाला ने जाटों का भरोसा जीता है, जिसके दम पर जाटों के ध्रुवीकरण की बात कही जा रही है।
हरियाणा में मंगलवार दोपहर को हुए बड़े सियासी उठा पटक के बाद राजनीति की कई परिभाषाएं निकलकर सामने आने लगीं। सियासी जानकारों की मानें, तो हरियाणा में राजनीतिक उठापटक के बाद पूरी सियासत अब 'जाट वर्सेस अन्य जातियों' की होती हुई दिख रही है। जानकार तो यह भी मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने जो सियासी दांव चला है, उसमें जाट वोटरों के बीच में ध्रुवीकरण होने का बड़ा प्लेटफॉर्म तैयार हो गया है। हरियाणा के सियासी गलियारों में कहा यही जा रहा है कि अगर जाट वोट बैंक में सेंधमारी होती है, तो भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक रूप से इसका लाभ मिल सकता है। सियासी विश्लेषक अरविंद धीमान कहते हैं कि अभी जो नैरेटिव तय किया जा रहा है, उससे भारतीय जनता पार्टी में न सिर्फ पिछड़ों की सियासत को आगे किया है। बल्कि जजपा को मैदान में अकेले छोड़कर जाट वोटों के ध्रुवीकरण की पूरी सियासी फील्डिंग सजा दी है।
इन्ही सियासी आंकलन के आधार पर कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी को घेरा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कहते हैं कि भाजपा ने जजपा के साथ एक बड़ा सियासी समझौता किया है। इस सियासी समझौते के चलते भारतीय जनता पार्टी ने जातिगत समीकरणों को निशाना बनाया है। कांग्रेस पार्टी के नेता दीपेंद्र हुड्डा कहते हैं कि जिस तरीके से हरियाणा में मंगलवार को सियासी घटनाक्रम सामने आया है, इसका अंदेशा पहले से ही लगाया जा रहा था। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने सोची समझी रणनीति के तहत जाट वोट बैंक में ध्रुवीकरण करने के लिए यह पूरी सियासी फील्डिंग सजाई है। कांग्रेस पार्टी के नेता दीपेंद्र हुड्डा का मानना है कि जिस तरह से सोची समझी रणनीति के तहत दुष्यंत चौटाला भारतीय जनता पार्टी से अलग हुए हैं। ठीक उसी तरह चुनावों के बाद वह एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ जाएंगे। क्योंकि दुष्यंत चौटाला महज जाट वोटों को बरगलाने के लिए ही भाजपा से अलग हुए हैं। हालांकि दीपेंद्र का मानना है कि हरियाणा के जाट भारतीय जनता पार्टी और दुष्यंत चौटाला की सियासत को समझ गए हैं।
वहीं सियासी जानकारों का भी मानना है कि हरियाणा में जो घटनाक्रम हुआ है, उसके जातिगत समीकरणों के आधार पर कई मायने निकलते हैं। राजनीतिक विश्लेषक धीमान कहते हैं कि अगर इस लोकसभा चुनाव में जजपा भारतीय जनता पार्टी के साथ जाती है, तो उसका राजनीतिक नुकसान होता। अगर वह अलग से सियासी मैदान में उतरेगी, तो जाट वोट बैंक में सेंधमारी हो सकती है। जाट वोट बैंक के ध्रुवीकरण से भारतीय जनता पार्टी को फायदा हो सकता है। इसके अलावा नए मुख्यमंत्री के साथ भारतीय जनता पार्टी ने ओबीसी की सियासत को भी मजबूती से साधा है। वह कहते हैं कि हरियाणा में अब पूरी सियासत जाट वर्सेज गैर-जाट वोटों पर आकर टिक गई है। ऐसे में कांग्रेस, जजपा और आईएनएलडी के महत्वपूर्ण जाट वोट बैंक में सेंधमारी की संभावनाएं बढ़ गई हैं।
हरियाणा सरकार के परिवार पहचान पत्र के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में पिछड़ों की आबादी तकरीबन 31 फीसदी और अनुसूचित जाति 21 फीसदी के करीब है। जबकि प्रदेश में तकरीबन 25 फीसदी के करीब जाट वोट हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि अगर भारतीय जनता पार्टी गैर जाट वोटरों पर अपनी सियासत को आगे बढ़ाती है, तो इसका उसे फायदा हो सकता है। राजनीतिक जानकार सीपी त्यागी कहते हैं कि हरियाणा में एक नैरेटिव चल रहा था कि मुख्यमंत्री और जाटों के बीच दूरी बढ़ गई है। ऐसे में जाट वोट बैंक में ध्रुवीकरण और पिछड़ी जाति के चेहरे को मुख्यमंत्री बनाना सियासी रूप से भाजपा के लिए उर्वरा लग रहा है। त्यागी का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी में जिस तरीके से सुभाष बराला पर बड़ा दांव लगाया है, वह जाटों के सियासी समीकरण में भी फिट बैठ रहा है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी कुछ हद तक जाट वोट बैंक में अपनी भागीदारी बढ़ाने की भी कोशिशों में लगी है।
हालांकि सियासी गलियारों में एक चर्चा इस बात की भी हो रही है कि क्या दुष्यंत चौटाला का जाटों में अभी भी कोई जादू बरकरार है या नहीं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और हरियाणा के पूर्व मंत्री करण दलाल कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने जातिगत समीकरणों के लिहाज से जो राजनीति की है, वह अब सफल नहीं होने वाली है। उनका कहना है कि दुष्यंत चौटाला ने तो अपनी राजनीति उसी वक्त खत्म कर ली थी, जब वह भारतीय जनता पार्टी की सरकार में शामिल हुए थे। करण दलाल का कहना है कि दुष्यंत चौटाला किसी भी राजनीतिक दल के मोहरे बन कर चुनाव में आएं, उसका कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। रही बात भारतीय जनता पार्टी की तो उसने हमेशा विकास की बात छोड़कर देश को जातीयता में बांटा है। समूचे हरियाणा ने इस बात को बीते कुछ वर्षों में बखूबी समझ लिया है। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी इतनी घबराई है कि उसने अपना पूरा मंत्रिमंडल और मुख्यमंत्री तक बदल दिया।