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चिदंबरम ने लांघी थी सीमा, पीएमओ समेत सभी वरिष्ठ अफसरों ने साध ली थी चुप्पी

जितेंद्र भारद्वाज, अमर उजाला Published by: Harendra Chaudhary Updated Fri, 23 Aug 2019 10:04 PM IST
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INX Media Case: P Chidambaram misused powers, senior finance ministry officials knew about that
गुरुवार को पेशी के दौरान पी. चिदंबरम - फोटो : PTI
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तत्कालीन यूपीए सरकार के दौरान वित्तमंत्री पी. चिदंबरम कितने पावरफुल थे, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब वे फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) में अपनी सीमा लांघ रहे थे, तो वह केस आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति के समक्ष था। बाकायदा एक-दो नहीं, बल्कि कई फाइलें कैबिनेट समिति के पास पहुंची थीं। इतना कुछ होने पर भी कोई पी.चिदंबरम को नहीं रोक पाया। आरोप है कि चिदंबरम के पास 600 करोड़ रुपए तक के ही विदेशी निवेश के प्रोजेक्ट को मंजूरी देने का अधिकार था, लेकिन उन्होंने नियमों से परे जाकर एयरसेल-मैक्सिस डील केस में 3500 करोड़ रुपये की एफडीआई के प्रपोजल को मंजूरी प्रदान कर दी थी।
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पीएमओ तक पहुंच गई थी खबर

जांच एजेंसी के सूत्र बताते हैं कि उक्त एफडीआई को मंजूरी देने की सूचना आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति के अलावा पीएमओ तक भी चली गई थी। हो सकता है कि चिदंबरम की रिमांड खत्म होने के बाद जब अदालत के समक्ष सीबीआई अपना पक्ष रखे, तो उसमें केस से जुड़े पूर्व नौकरशाहों के अहम दस्तावेज भी देखने को मिल सकते हैं। यह संभावना भी है कि केस में नए गवाह भी सामने आ जाएं।
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वरिष्ठ अधिकारियों को थी जानकारी

जांच एजेंसी के सूत्र बताते हैं कि तत्कालीन वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी इस बात से परिचित थे कि 600 करोड़ रुपए से ज्यादा के विदेशी निवेश प्रोजेक्ट को मंजूरी दी जा रही है। चिदंबरम ने इस संबंध में वित्त मंत्रालय के सचिव, ज्वाइंट डायरेक्टर और बोर्ड के सदस्यों से बातचीत की थी। चूंकि वे संबंधित कंपनी के विदेशी निवेश को तय सीमा से बाहर जाकर मंजूरी देने का मन बना चुके थे, इसलिए किसी ने भी उनके प्रस्ताव पर ना-नुकर करने का साहस नहीं दिखाया।

सभी ने साधी चुप्पी

2006 में 3500 करोड़ रुपये की एफडीआई वाली एयरसेल-मैक्सिस डील को पी. चिदंबरम की मंजूरी मिल गई। बताया जाता है कि यह सूचना कैबिनेट कमेटी ऑन इकोनॉमिक अफेयर्स, सेबी और डायरेक्टर ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस से होती हुई पीएमओ तक बात पहुंच गई थी। इनमें से किसी ने भी डील पर सवाल नहीं उठाया। इसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। एक साल बाद 2007 में आईएनएक्स मीडिया को 305 करोड़ रुपए के विदेशी फंड लेने की एफआईपीबी मंजूरी देने में कथित रूप से अनियमित्ताएं सामने आ गई।

सुब्रमण्यम स्वामी ने किया था खुलासा

साल 2015 में जब सुब्रमण्यम स्वामी ने कार्ति चिदंबरम की विभिन्न कंपनियों के बीच हुए वित्तीय लेनदेन का खुलासा किया, तो इस मामले से भी पर्दा उठ गया। स्वामी ने सार्वजनिक तौर पर पी. चिदंबरम पर यह आरोप लगा दिया कि उन्होंने बतौर वित्तमंत्री रहते हुए अपने बेटे कार्ति चिदंबरम को एयरसेल-मैक्सिस डील के जरिए फायदा लेने में मदद की है। इसके लिए न केवल दस्तावेजों की प्रक्रिया रोकी गई, बल्कि कुछ समय के लिए अधिग्रहण प्रक्रिया को भी नियंत्रित कर दिया गया। यह सब इसलिए किया गया ताकि कार्ति चिदंबरम को अपनी कंपनियों के शेयरों की कीमतें बढ़ाने का वक्त मिल जाए।

पूर्व नौकरशाह बन सकते हैं गवाह

चिदंबरम की रिमांड अवधि पूरी होने के बाद सीबीआई इस केस से जुड़े कई नए तथ्यों का खुलासा कर सकती है। इनमें चिदंबरम के साथ कम कर चुके वित्त मंत्रालय के पूर्व नौकरशाह इस केस में जांच एजेंसी की मदद करने के लिए तैयार हैं। एजेंसी के मुताबिक, ये नौकरशाह एयरसेल-मैक्सिस और आईएनएक्स मीडिया केस में कई अहम दस्तावेज मुहैया कराएंगे या फिर गवाही के लिए भी सामने आ सकते हैं।

कार्ति चिदंबरम का रोल है अहम

कैबिनेट कमेटी ऑन इकोनॉमिक अफेयर्स को कब और किसने इस मामले की रिपोर्ट भेजी थी, यह खुलासा होने की भी संभावना है। कार्ति चिदंबरम पर आरोप है कि 2007 में ही उन्होंने एयरसेल-मैक्सिस और आईएनएक्स मीडिया के लिए गलत तरीके से फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड की मंजूरी ली थी।

कंसल्टेशन फी को एफआईपीबी से मंजूरी

सबसे पहले प्रवर्तन निदेशालय को एयरसेल-मैक्सिस सौदे की जांच में कुछ ठोस सबूत हाथ लगे थे। इसी आधार पर सीबीआई ने 15 मई 2017 को आईएनएक्स मीडिया मामले में एफआईआर दर्ज की थी। ईडी ने जब मनी लांड्रिंग निरोधक कानून (पीएमएलए) के तहत मामला दर्ज अपनी जांच आगे बढ़ाई, तो मालूम चला कि एएससीपीएल को सात बड़ी कंपनियों से परामर्श शुल्क के तौर पर जो राशि मिली है, उसे वित्त मंत्रालय से एफआईपीबी के रूप में मंजूरी प्राप्त हो चुकी है।

मिले घूस में दिए 10 लाख के वाउचर्स

सीबीआई ने अपनी एफआईआर में आरोप लगाया है कि कार्ति चिदंबरम ने मॉरिशस से निवेश प्राप्त करने के लिए एफआईपीबी की शर्तों के उल्लंघन की जांच को प्रभावित करने के लिए अपने दबाव का इस्तेमाल किया था। छापे के दौरान जांच एजेंसी ने घूस के लिए दिए गए 10 लाख रुपये के वाउचर्स भी जब्त किए थे।  
          
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