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Manipur Politics: मणिपुर में सियासी हलचल, बीरेन सिंह ने राज्यपाल को लिखा पत्र, कहा- कानून से हो रहा खिलवाड़
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंफाल
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Thu, 26 Jun 2025 12:16 PM IST
सार
मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने आरोप लगाया है कि राज्य विधानसभा द्वारा हिल एरिया गवर्नेंस से जुड़े नियमों में जानबूझकर बदलाव किए गए हैं। इससे नए गांव बसाने और मुखिया नियुक्त करने का रास्ता खुल गया है, जिनकी कोई कानूनी या परंपरागत मान्यता नहीं है। उन्होंने राज्यपाल से इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की है।
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बीरेन सिंह
- फोटो : ANI
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विस्तार
मणिपुर में पहाड़ी इलाकों की प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर एक बार फिर विवाद गहराता नजर आ रहा है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने बड़ा आरोप लगाते हुए कहा है कि मणिपुर विधानसभा द्वारा प्रकाशित पहाड़ी इलाकों की गवर्नेंस के नियमों में जानबूझकर बदलाव किए गए हैं। उन्होंने कहा कि इस बदलाव की वजह से अवैध तरीके से नए गांव घोषित किए जा रहे हैं और परंपरा तथा कानून को दरकिनार कर नए गांव मुखिया या प्रमुख नियुक्त किए जा रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री ने बुधवार को राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने दावा किया कि संसद द्वारा पारित और भारत सरकार के गजट में प्रकाशित असली अधिसूचना और मणिपुर विधानसभा की नियमावली में प्रकाशित संस्करण में बड़ा अंतर है। सिंह ने कहा कि यह बदलाव प्रशासनिक और राजनीतिक दृष्टि से बेहद गंभीर परिणाम ला सकता है।
एन बीरेन सिंह ने पत्र में क्या कहा?
एन बीरेन सिंह ने पत्र में विस्तार से बताया कि भारत सरकार की गजट अधिसूचना में 'मुखिया या प्रधान के उत्तराधिकार की नियुक्ति' लिखा है, जबकि मणिपुर विधानसभा द्वारा प्रकाशित नियमों में इसे बदलकर 'मुखिया या प्रधान की नियुक्ति या उत्तराधिकार' कर दिया गया। उनके मुताबिक, 'ऑफ' शब्द को हटाकर 'और' जोड़ने से प्रावधान की पूरी व्याख्या ही बदल गई है। इससे अब परंपरागत उत्तराधिकार के बजाय नए मुखिया या प्रमुख की सीधी नियुक्ति का रास्ता खुल गया है।
ये भी पढ़ें: 'जीवन की सबसे बड़ी गलती थी कांग्रेस', अमर उजाला संवाद में बोले रवि किशन
पूर्व मुख्यमंत्री ने जांच की मांग की
सिंह ने आरोप लगाया कि इस बदलाव के बाद मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में तेजी से नए गांव घोषित किए जा रहे हैं, जिनमें से कई का ऐतिहासिक या परंपरागत अस्तित्व ही नहीं रहा है। उन्होंने इसे न सिर्फ परंपराओं के खिलाफ बल्कि प्रशासनिक रूप से भी खतरनाक करार दिया। पूर्व मुख्यमंत्री ने इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की है ताकि यह पता लगाया जा सके कि नियमों में यह बदलाव कब और किसके आदेश पर किया गया।
ये भी पढ़ें: कुल्लू और धर्मशाला में दो की मौत और 11 लापता; 2000 सैलानी फंसे।
एन बीरेन सिंह का सुझाव
एन बीरेन सिंह ने यह भी सुझाव दिया कि एक व्यापक ऑडिट कराया जाए जिससे यह सामने आ सके कि इस संशोधित प्रावधान के बाद कितने नए गांव घोषित किए गए और कितने नए मुखिया या प्रमुख नियुक्त किए गए। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया ने मणिपुर की पहाड़ी इलाकों की शासन व्यवस्था में गंभीर असंतुलन पैदा कर दिया है। गौरतलब है कि मणिपुर में लंबे समय से पहाड़ी इलाकों में मुखिया प्रणाली को लेकर विवाद रहा है। वर्ष 1967 में राज्य सरकार ने विरासत आधारित मुखिया प्रणाली को खत्म करने के लिए कानून पारित किया था और राष्ट्रपति ने भी इस पर मुहर लगाई थी। हालांकि, सामाजिक संगठनों का कहना है कि यह कानून कभी लागू नहीं किया गया।
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पूर्व मुख्यमंत्री ने बुधवार को राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने दावा किया कि संसद द्वारा पारित और भारत सरकार के गजट में प्रकाशित असली अधिसूचना और मणिपुर विधानसभा की नियमावली में प्रकाशित संस्करण में बड़ा अंतर है। सिंह ने कहा कि यह बदलाव प्रशासनिक और राजनीतिक दृष्टि से बेहद गंभीर परिणाम ला सकता है।
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एन बीरेन सिंह ने पत्र में क्या कहा?
एन बीरेन सिंह ने पत्र में विस्तार से बताया कि भारत सरकार की गजट अधिसूचना में 'मुखिया या प्रधान के उत्तराधिकार की नियुक्ति' लिखा है, जबकि मणिपुर विधानसभा द्वारा प्रकाशित नियमों में इसे बदलकर 'मुखिया या प्रधान की नियुक्ति या उत्तराधिकार' कर दिया गया। उनके मुताबिक, 'ऑफ' शब्द को हटाकर 'और' जोड़ने से प्रावधान की पूरी व्याख्या ही बदल गई है। इससे अब परंपरागत उत्तराधिकार के बजाय नए मुखिया या प्रमुख की सीधी नियुक्ति का रास्ता खुल गया है।
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पूर्व मुख्यमंत्री ने जांच की मांग की
सिंह ने आरोप लगाया कि इस बदलाव के बाद मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में तेजी से नए गांव घोषित किए जा रहे हैं, जिनमें से कई का ऐतिहासिक या परंपरागत अस्तित्व ही नहीं रहा है। उन्होंने इसे न सिर्फ परंपराओं के खिलाफ बल्कि प्रशासनिक रूप से भी खतरनाक करार दिया। पूर्व मुख्यमंत्री ने इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की है ताकि यह पता लगाया जा सके कि नियमों में यह बदलाव कब और किसके आदेश पर किया गया।
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एन बीरेन सिंह का सुझाव
एन बीरेन सिंह ने यह भी सुझाव दिया कि एक व्यापक ऑडिट कराया जाए जिससे यह सामने आ सके कि इस संशोधित प्रावधान के बाद कितने नए गांव घोषित किए गए और कितने नए मुखिया या प्रमुख नियुक्त किए गए। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया ने मणिपुर की पहाड़ी इलाकों की शासन व्यवस्था में गंभीर असंतुलन पैदा कर दिया है। गौरतलब है कि मणिपुर में लंबे समय से पहाड़ी इलाकों में मुखिया प्रणाली को लेकर विवाद रहा है। वर्ष 1967 में राज्य सरकार ने विरासत आधारित मुखिया प्रणाली को खत्म करने के लिए कानून पारित किया था और राष्ट्रपति ने भी इस पर मुहर लगाई थी। हालांकि, सामाजिक संगठनों का कहना है कि यह कानून कभी लागू नहीं किया गया।