Bihar: बिहार सरकार से NCBC ने 18 जातियों पर मांगी जानकारी, केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग पर विचार
बिहार में18 जातियों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल कराने की मांग तेज हो गई है। एनसीबीसी ने इन जातियों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति पर राज्य सरकार से विस्तृत जानकारी मांगी है। आयोग ने जनसुनवाई के बाद यह कदम उठाया है।

विस्तार
बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में अब एक महीने से भी कम का समय शेष रह गया है। राजनीतिक पार्टियां जहां एक ओर चुनवी रण में अपनी-अपनी दावेदारी साबित करने में लगी हुई है। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने बिहार सरकार से उन 18 जातियों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति की पूरी जानकारी मांगी है, जिन्हें राज्य सरकार केंद्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची में शामिल कराना चाहती है।

यह कदम आयोग द्वारा पटना में हुई एक जनसुनवाई के बाद उठाया गया है। इस सुनवाई में एनसीबीसी के अध्यक्ष हंसराज अहीर और सदस्य भुवन भूषण कमल ने राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों और विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी।
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राज्य सरकार से मांगी 18 जातियों की जानकारी
एनसीबीसी अध्यक्ष हंसराज अहीर ने बताया कि हमने राज्य सरकार से इन 18 जातियों पर ताजा और पूरी जानकारी देने को कहा है। जरूरत पड़ी तो अगले एक महीने में फिर से बैठक हो सकती है। हालांकि राज्य सरकार ने आयोग को बताया है कि अभी डाटा एकत्र किया जा रहा है और इसे पूरा करने के लिए थोड़ा और समय चाहिए। बता दें कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग एक वैधानिक संस्था है, जो जातियों को ओबीसी सूची में शामिल या बाहर करने पर केंद्र सरकार को सलाह देती है।
बिहार सरकार जिन जातियों को केंद्रीय सूची में शामिल करना चाहती है, उनमें से कुछ जैसे चिप्पी, सई और इटफरोश/गधेरी पहले से ही सूची में हैं, लेकिन अब उनके छोटे उप-समूहों को अलग से मान्यता देने की मांग की गई है। अन्य प्रस्तावित जातियों में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के लोग शामिल हैं, जैसे कि बठाम वैश्य, ब्याहुत कलवार, मोदक/मैरा, सैन्यथवार, समरी वैश्य, सुर्जापुरी मुस्लिम, इब्राहीमी।
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दूसरे राज्यों से भी आ रहे ऐसे प्रस्ताव- अहीर
आयोग के अध्यक्ष अहीर ने यह भी बताया कि दूसरे राज्यों से भी ऐसे प्रस्ताव आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने पहले महाराष्ट्र से आई 15 जातियों और उप-जातियों को भी केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी। बिहार की यह मांग राज्य में 2023 में हुई जातीय सर्वेक्षण के बाद सामने आई है, जिसमें पाया गया था कि राज्य की 27% आबादी ओबीसी है, जबकि 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) से आती है।