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Police Commemoration Day: चीन की फौज से मुकाबले की कहानी, हॉट स्प्रिंग के CRPF जांबाज सोनम वांग्याल की जुबानी

डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: राहुल कुमार Updated Tue, 21 Oct 2025 08:55 AM IST
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सार

हर वर्ष '21 अक्तूबर' को देश में 'पुलिस संस्मरण दिवस' मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1959 में हुए एक घटना के बाद हुई थी। आईटीबीएफ के डीएसपी 'करमसिंह', ने चीन की फौज के सामने मिट्टी हाथ में उठा कर कहा था, ये जमीन हमारी है। इसके बाद चीन की फौज की तरफ से एक पत्थर फेंका गया। बतौर वांग्याल, जब चीन के सैनिकों की इस हरकत का विरोध किया गया तो उनके सैनिकों ने चारों तरफ से फायरिंग शुरू कर दी।

Police Commemoration Day CRPF braveheart Sonam Wangyal tells story of his encounter with Chinese army
सोनम वांग्याल - फोटो : PTI
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विस्तार
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1959 के दौरान लद्दाख में 16,300 फुट की ऊंचाई पर चीन की सेना ने भारतीय इलाके में घुसपैठ की थी। चीन की सेना को लड़ाई का बहाना चाहिए था, इसलिए उन्होंने एक 'पत्थर' का बहाना बना लिया। आईटीबीएफ के डीएसपी 'करमसिंह', ने चीन की फौज के सामने मिट्टी हाथ में उठा कर कहा था, ये जमीन हमारी है। इसके बाद चीन की फौज की तरफ से एक पत्थर फेंका गया। बतौर वांग्याल, जब चीन के सैनिकों की इस हरकत का विरोध किया गया तो उनके सैनिकों ने चारों तरफ से फायरिंग शुरू कर दी। इस कायराना हमले में भारत के दस जवान शहीद हो गए थे। भारत के उन्हीं शहीदों के सम्मान में हर वर्ष '21 अक्तूबर' को देश में 'पुलिस संस्मरण दिवस' मनाया जाता है। 

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चीनी सैनिकों के धोखे की बात सामने आते ही 'हॉट स्प्रिंग' के जांबाज सोनम वांग्याल का मन कड़वाहट से भर जाता है। सीआरपीएफ से रिटायर्ड और उस मिशन के एकमात्र जीवित नायक सोनम वांग्याल से कई वर्ष पहले अमर उजाला डॉट कॉम ने बातचीत की थी। बता दें कि 1965 में मात्र 25 साल की आयु में 'वांग्याल' एवरेस्ट विजेता बने थे। लेह में रह रहे सोनम ने बताया था कि 1959 में चीनी सैनिकों ने लेह-लद्दाख के कई इलाकों में घुसपैठ की थी। भले ही भारतीय नायकों की संख्या मुट्ठीभर रही थी, लेकिन उन्होंने चीन की फौज का जमकर मुकाबला किया था। 
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1962 की लड़ाई से पहले 1959 में चीन के सैनिकों ने लेह-लद्दाख के कई इलाकों में घुसपैठ की थी। मुट्ठीभर जवानों को होट स्प्रिंग पर चौकी स्थापित करने का आदेश मिला। भारतीय जवान चौकी स्थापित करने में तो कामयाब हो गए, लेकिन अपने लापता साथियों की तलाश के दौरान सैकड़ों चीनी सैनिकों ने उन्हें निशाने पर ले लिया। दर्जनभर जवानों को धोखे से मार डाला। जो बच गए उन्हें हिरासत में ले लिया गया। 

सितम्बर 1959 में वांग्याल के दस्ते को होट स्प्रिंग, जिसके निकट चीन की फौज पहुंच चुकी थी, पर चौकी स्थापित करने का आदेश मिला। 70 जवानों की दो टुकड़ी बनाई गई। एक का नेतृत्व आईटीबीएफ के डीएसपी करमसिंह और दूसरी टुकड़ी की कमान एसपी त्यागी को सौंपी गई। चौकी को चीनी कब्जे से मुक्त करा लिया गया, लेकिन सोनम सहित दर्जनभर जवान पकड़े गए। कुछ दिन बाद सोनम वांग्याल और उनके साथी, चुशुल एयरपोर्ट के निकट रिहा कर दिए गए। 

बाद में पता चला कि आईटीबीएफ के डीएसपी करमसिंह की टुकड़ी के सात जवान जवान बेस कैंप पर नहीं पहुंचे। 20 अक्तूबर को डीएसपी कर्मसिंह के नेतृत्व में सोनम सहित करीब दो दर्जन जवान अपने लापता साथियों की तलाश में निकल पड़े। उन्हें रास्ते में चीनी सैनिकों और उनके घोड़ों के चिन्ह दिखाई दिए। इससे पहले कि वे कोई रणनीति बनाते, एकाएक चीनी सैनिकों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। करमसिंह ने मिट्टी हाथ में उठाकर कहा, यह जमीन हमारी है। चीनी सैनिकों ने भी वैसा ही किया। खास बात है कि अगले दिन दोपहर तक यह खेल चलता रहा। 

लड़ाई का बहाना एक पत्थर बना, जिसे चीनी फौज के कमांडर ने फेंका था। जब हमने विरोध किया तो हम पर चारों तरफ से फायरिंग शुरू कर दी गई। बर्फ में हमारे हथियार जवाब दे चुके थे। उस लड़ाई में हमारे दस जवान शहीद हुए और डीएसपी करमसिंह सहित कई सिपाही चीनी सैनिकों की गिरफ्त में आ गए। सिपाही मक्खन लाल जो कि उस वक्त घायल हुआ था, आज तक वापस नहीं लौटा। अन्य जवानों को बाद में रिहा कर दिया गया, मगर उनमें मक्खन नहीं था। बतौर वांग्याल, आज भी जब उसकी याद आती है तो मन भर उठता है। 

हमारे जवान चीन की फौज के साथ बहादुरी से लड़े थे। 21 अक्तूबर 1959 का दिन और 16,300 फुट की ऊंचाई पर भारतीय इलाके में घुसपैठ करने वाली चीन की फौज ने हमारे जवानों को धोखे से मार डाला था। उस वक्त लद्दाख में कई फुट बर्फ पड़ी थी। बतौर वांग्याल, मैं अकेला था। मेरे सामने दस जवानों के शव पड़े थे। शवों को लाने के लिए मैंने लकड़ी और तिरपाल का स्ट्रेचर बनाया। भारतीय जवानों के शवों को घोड़ों की मदद से खींचते हुए सिलुंग नाले के रास्ते होट स्प्रिंग (लेह में चीनी सैनिकों के कब्जे से मुक्त कराई गई भारतीय चौकी) तक लाया। शव इतने क्षत-विक्षत हो चुके थे कि उन्हें आगे ले जाना मुश्किल था। नतीजा, वहीं पर लकड़ियां एकत्रित की। वांग्याल ने बर्फ में ही अपने साथियों का अंतिम संस्कार कर दिया।

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