Assam: तेजपुर विवि में बनाया गया पोर्टेबल टीबी जांच मशीन, ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों में मिलेगी सहूलियत
तेजपुर विवि के शोधकर्ताओं ने स्मार्टफोन आधारित पोर्टेबल टीबी जांच उपकरण किया विकसित किया है। इसे ग्रामीण और दूर दराज के क्षेत्रों के हिसाब से किया गया है डिजाइन किया गया है।
विस्तार
तेजपुर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम ने स्मार्टफोन का उपयोग करके टीबी का पता लगाने के लिए एक किफायती और पोर्टेबल उपकरण विकसित किया है। भौतिकी विभाग के प्रो. पवित्र नाथ और उनकी टीम द्वारा विकसित यह नया उपकरण विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में उपयोग के लिए डिजाइन किया गया है, जहां उन्नत चिकित्सा सुविधाएं आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।
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विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर शंभू नाथ सिंह ने कहा कि सबसे पहले मैं पूरी टीम को बधाई देता हूं। उन्होंने कहा कि इस नवाचार में टीबी के खिलाफ लड़ाई में, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, बड़ा प्रभाव डालने की क्षमता है।
नया उपकरण क्यों है खास?
यह नया उपकरण इसलिए खास है क्योंकि इसमें किसी तरह के केमिकल आदि की जरूरत नहीं होती है। यह टीबी बैक्टीरिया की प्राकृतिक चमक का उपयोग करके पता लगाता है। इस उपकरण में परीक्षण की सटीकता में सुधार के लिए एक अंतर्निहित हीटिंग सिस्टम है और इसे स्मार्टफोन का उपयोग करके संचालित किया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह काफी किफायती है क्योंकि इसकी कीमत ₹25,000 से कम है। इसका वजन 300 ग्राम से भी कम होने के कारण इसे कहीं भी आसानी से ले जाया जा सकता है। यह सीमित स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे वाले स्थानों के लिए उपयुक्त उपकरण है।
नया उपकरण टीबी परीक्षण को सरल और सुलभ बनाएगा
टीबी यानी क्षय रोग भारत में एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है। इसके रोकथाम के लिए शीघ्र और सटीक निदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत का राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम वर्तमान में टीबी की जांच के लिए एलईडी फ्लोरोसेंस माइक्रोस्कोपी का प्रयोग करता है। WHO द्वारा अनुशंसित मानक परीक्षण पद्धति के लिए महंगी मशीनों और प्रशिक्षित तकनीशियन की जरूरत होती है, जो कई ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं हैं। यह नया उपकरण टीबी परीक्षण को सरल और अधिक सुलभ बनाकर इस समस्या का समाधान कर सकता है।
कैसे करता है काम?
प्रो. नाथ ने बताया कि यह उपकरण ऑटोफ्लोरोसेंस के सिद्धांत के अनुसार काम करता है, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (एमटीबी) कोशिकाओं सहित कुछ सूक्ष्मजीव कोशिकाओं का एक प्राकृतिक गुण है। यह प्रकाश की विशिष्ट तरंगदैर्ध्य द्वारा उत्तेजित होने पर फ्लोरोसेंस संकेत उत्सर्जित करते हैं। नवाचार सेंसर प्रणाली के भीतर एक हीटिंग तत्व के एकीकरण में निहित है। जीवाणु नमूने का तापमान बढ़ाकर, यह प्रणाली एमटीबी कोशिकाओं से प्राकृतिक प्रतिदीप्ति संकेत को बढ़ाती है। इससे बिना दाग या रंगों के उपयोग के ट्रेस-स्तर पर पता लगाना संभव हो जाता है।
ये हैं प्रमुख विशेषताएं
- पोर्टेबल और बैटरी से संचालित, जिससे बिना बिजली वाले क्षेत्रों में भी इसका उपयोग संभव है।
- कम लागत पर जांच, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए फायदेमंद होगी।
- रियल-टाइम रिपोर्टिंग और डेटा शेयरिंग, जिससे हेल्थ वर्कर्स मरीजों का तुरंत इलाज शुरू कर सकें।

दल में शामिल हैं ये शोधार्थी
शोध दल में भौतिकी विभाग के शोधार्थी बिप्रव छेत्री और चुनुरंजन दत्त, अणुजीव विज्ञान व जैव प्रौद्योगिकी विभाग के डॉ. जे. पी. शइकिया, श्री शांतनु गोस्वामी, प्रोफेसर पवित्र नाथ और लैबडिग इनोवेशन एंड सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के अभिजीत गोगोई शामिल हैं। टीम द्वारा इस उपकरण के लिए एक पेटेंट आवेदन (भारतीय पेटेंट आवेदन संख्या 202431035472) दाखिल किया गया है। इसके निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय पत्रिका बायोसेंसर्स एंड बायोइलेक्ट्रॉनिक्स में प्रकाशित हुए हैं।
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