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सारंडा सेंचुरी विवाद: आदिवासी संगठनों ने उपायुक्त को राज्यपाल के नाम का सौंपा ज्ञापन, 25 को नाकेबंदी का एलान
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: राहुल कुमार
Updated Wed, 15 Oct 2025 11:02 AM IST
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सारंडा विस्थापन के खिलाफ प्रदर्शन
- फोटो : अमर उजाला
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सारंडा सेंचुरी मामले में पुनर्विचार की मांग को लेकर बुधवार को कोल्हान क्षेत्र के विभिन्न आदिवासी संगठनों ने उपायुक्त को राज्यपाल के नाम एक ज्ञापन सौंपा। संगठनों ने 25 अक्तूबर को पूरे कोल्हान में आर्थिक नाकेबंदी करने का एलान किया है।
आदिवासी संगठनों ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जिस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय में लड़ रहे हैं, वह सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि जनजीवन से जुड़ी लड़ाई है। सारंडा जंगल क्षेत्र के निवासी अपने अधिकारों और अस्तित्व की रक्षा के लिए सड़क पर उतर चुके हैं।
संगठनों के नेताओं ने कहा कि सारंडा क्षेत्र में रह रहे लोगों पर किसी भी तरह की आंच नहीं आने दी जाएगी। मुख्यमंत्री की मुख्य चिंता भी वहीं है जंगल और उसके मूल निवासियों की सुरक्षा। उन्होंने कहा, हम विरासत में मिले विवादों को सुलझा रहे हैं। हमारी लड़ाई इस बात की है कि जिन्होंने जंगल को लगाया और बचाया, उन्हें नियम-कानूनों के नाम पर परेशान न किया जाए।
मुख्यमंत्री की ओर से जारी संदेश में कहा गया है कि सरकार सारंडा क्षेत्र के लोगों के अधिकार की रक्षा की शर्त पर ही कोर्ट में जा रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि “खनिज संसाधनों को कुछ समय के लिए नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन लोगों के अधिकार से कोई समझौता नहीं होगा।”
संगठनों ने कहा कि यह सिर्फ सारंडा के लोगों की नहीं, बल्कि पूरे झारखंड की लड़ाई है। जब तक आदिवासियों के अधिकारों की गारंटी नहीं होती, आंदोलन जारी रहेगा।

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आदिवासी संगठनों ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जिस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय में लड़ रहे हैं, वह सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि जनजीवन से जुड़ी लड़ाई है। सारंडा जंगल क्षेत्र के निवासी अपने अधिकारों और अस्तित्व की रक्षा के लिए सड़क पर उतर चुके हैं।
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संगठनों के नेताओं ने कहा कि सारंडा क्षेत्र में रह रहे लोगों पर किसी भी तरह की आंच नहीं आने दी जाएगी। मुख्यमंत्री की मुख्य चिंता भी वहीं है जंगल और उसके मूल निवासियों की सुरक्षा। उन्होंने कहा, हम विरासत में मिले विवादों को सुलझा रहे हैं। हमारी लड़ाई इस बात की है कि जिन्होंने जंगल को लगाया और बचाया, उन्हें नियम-कानूनों के नाम पर परेशान न किया जाए।
मुख्यमंत्री की ओर से जारी संदेश में कहा गया है कि सरकार सारंडा क्षेत्र के लोगों के अधिकार की रक्षा की शर्त पर ही कोर्ट में जा रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि “खनिज संसाधनों को कुछ समय के लिए नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन लोगों के अधिकार से कोई समझौता नहीं होगा।”
संगठनों ने कहा कि यह सिर्फ सारंडा के लोगों की नहीं, बल्कि पूरे झारखंड की लड़ाई है। जब तक आदिवासियों के अधिकारों की गारंटी नहीं होती, आंदोलन जारी रहेगा।