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SC: प्राथमिक शिक्षक भर्ती विवाद में कर्नाटक HC का आदेश बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने KSAT को फैसला लेने को कहा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: पवन पांडेय
Updated Fri, 17 Oct 2025 05:11 PM IST
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सार
12 अक्तूबर 2023 को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एकल न्यायाधीश का आदेश रद्द कर दिया और सभी पक्षों को केएसएटी जाने का निर्देश दिया। साथ ही, सरकार को अंतिम सूची के आधार पर नियुक्तियां करने की छूट दी, बशर्ते जाति और आय प्रमाणपत्रों की वैधता जांची जाए। जस्टिस जेके महेश्वरी और जस्टिस विजय विश्नोई की पीठ ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सही ठहराया है।

Supreme Court
- फोटो : PTI
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती विवाद को कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (केएसएटी) के पास भेजने का रास्ता साफ कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि ऐसे सेवा संबंधी मामलों में हाईकोर्ट को सीधे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब ट्रिब्यूनल के पास पूरा अधिकार मौजूद हो।
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क्या है मामला?
कर्नाटक लोक शिक्षा विभाग ने 21 मार्च 2022 को 15000 ग्रेजुएट प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी। ये नियुक्तियां कक्षा 6 से 8 तक के लिए 35 शैक्षिक जिलों में की जानी थीं। लिखित परीक्षा मई 2022 में हुई और 18 नवंबर को एक अस्थायी चयन सूची जारी की गई। लेकिन कुछ विवाहित महिला उम्मीदवारों को ओबीसी कोटे से बाहर कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने जाति व आय प्रमाणपत्र अपने पिता के नाम से लगाए थे, पति के नाम से नहीं। नतीजा यह हुआ कि उन्हें ओबीसी कोटे की बजाय सामान्य मेरिट सूची में डाल दिया गया।
कैसे अदालत तक पहुंचा मामला?
इन उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 30 जनवरी 2023 को एकल न्यायाधीश ने उम्मीदवारों के पक्ष में फैसला दिया, चयन सूची रद्द की और सरकार को निर्देश दिया कि इन महिलाओं को ओबीसी कोटे में माना जाए। इसके बाद 27 फरवरी 2023 को नई अस्थायी सूची जारी हुई, जिसमें पहले चयनित 451 उम्मीदवार बाहर हो गए। 8 मार्च को अंतिम चयन सूची प्रकाशित की गई। 451 प्रभावित उम्मीदवारों ने इस नई सूची को चुनौती दी। 12 अक्तूबर 2023 को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एकल न्यायाधीश का आदेश रद्द कर दिया और सभी पक्षों को केएसएटी जाने का निर्देश दिया। साथ ही, सरकार को अंतिम सूची के आधार पर नियुक्तियां करने की छूट दी, बशर्ते जाति और आय प्रमाणपत्रों की वैधता जांची जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस विजय विश्नोई की पीठ ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किसी मामले का निपटारा सेवा ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र में आता है तो हाईकोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। पीठ ने कहा, 'जहां कोई प्रभावी वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो, वहां हाईकोर्ट को रिट याचिका स्वीकार नहीं करनी चाहिए। वर्तमान मामला ऐसा नहीं है जिसमें कोई अपवाद बनता हो।' अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि 18 नवंबर 2022 की अस्थायी सूची में जिन उम्मीदवारों के नाम थे, उन्हें कोई 'पक्का अधिकार' हासिल नहीं हुआ था। इसलिए उस सूची को बहाल करने की मांग टिकाऊ नहीं है।
यह भी पढ़ें - Politics: निवेश को लेकर कर्नाटक-आंध्र के IT मंत्रियों में छिड़ी जुबानी जंग, इशारों में साधा एक-दूसरे पर निशाना
सुप्रीम कोर्ट ने 500 आरक्षित पदों को केएसएटी के अंतिम निर्णय के अनुरूप भरने का निर्देश दिया। साथ ही केएसएटी से कहा कि वह इस मामले में दायर आवेदन पर छह महीने के भीतर फैसला देने की पूरी कोशिश करे। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि उसने केवल 'याचिका की स्वीकार्यता' पर निर्णय दिया है, न कि उम्मीदवारों के दावे के असली मुद्दे पर।

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क्या है मामला?
कर्नाटक लोक शिक्षा विभाग ने 21 मार्च 2022 को 15000 ग्रेजुएट प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी। ये नियुक्तियां कक्षा 6 से 8 तक के लिए 35 शैक्षिक जिलों में की जानी थीं। लिखित परीक्षा मई 2022 में हुई और 18 नवंबर को एक अस्थायी चयन सूची जारी की गई। लेकिन कुछ विवाहित महिला उम्मीदवारों को ओबीसी कोटे से बाहर कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने जाति व आय प्रमाणपत्र अपने पिता के नाम से लगाए थे, पति के नाम से नहीं। नतीजा यह हुआ कि उन्हें ओबीसी कोटे की बजाय सामान्य मेरिट सूची में डाल दिया गया।
कैसे अदालत तक पहुंचा मामला?
इन उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 30 जनवरी 2023 को एकल न्यायाधीश ने उम्मीदवारों के पक्ष में फैसला दिया, चयन सूची रद्द की और सरकार को निर्देश दिया कि इन महिलाओं को ओबीसी कोटे में माना जाए। इसके बाद 27 फरवरी 2023 को नई अस्थायी सूची जारी हुई, जिसमें पहले चयनित 451 उम्मीदवार बाहर हो गए। 8 मार्च को अंतिम चयन सूची प्रकाशित की गई। 451 प्रभावित उम्मीदवारों ने इस नई सूची को चुनौती दी। 12 अक्तूबर 2023 को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एकल न्यायाधीश का आदेश रद्द कर दिया और सभी पक्षों को केएसएटी जाने का निर्देश दिया। साथ ही, सरकार को अंतिम सूची के आधार पर नियुक्तियां करने की छूट दी, बशर्ते जाति और आय प्रमाणपत्रों की वैधता जांची जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस विजय विश्नोई की पीठ ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किसी मामले का निपटारा सेवा ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र में आता है तो हाईकोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। पीठ ने कहा, 'जहां कोई प्रभावी वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो, वहां हाईकोर्ट को रिट याचिका स्वीकार नहीं करनी चाहिए। वर्तमान मामला ऐसा नहीं है जिसमें कोई अपवाद बनता हो।' अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि 18 नवंबर 2022 की अस्थायी सूची में जिन उम्मीदवारों के नाम थे, उन्हें कोई 'पक्का अधिकार' हासिल नहीं हुआ था। इसलिए उस सूची को बहाल करने की मांग टिकाऊ नहीं है।
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सुप्रीम कोर्ट ने 500 आरक्षित पदों को केएसएटी के अंतिम निर्णय के अनुरूप भरने का निर्देश दिया। साथ ही केएसएटी से कहा कि वह इस मामले में दायर आवेदन पर छह महीने के भीतर फैसला देने की पूरी कोशिश करे। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि उसने केवल 'याचिका की स्वीकार्यता' पर निर्णय दिया है, न कि उम्मीदवारों के दावे के असली मुद्दे पर।