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Supreme Court: 'जाल पहले बिछाया गया और FIR बाद में दर्ज की गई..', कोर्ट में बोले तेलंगाना CM रेवंत रेड्डी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: निर्मल कांत
Updated Wed, 15 Oct 2025 05:19 PM IST
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सुप्रीम कोर्ट (फाइल)
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि 2015 के नकदी के बदले वोट मामले में एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) की ओर से जाल बिछाने की योजना पूरी तरह गैरकानूनी थी, क्योंकि यह बिना किसी प्राथमिकी के की गई थी।
रेड्डी उस समय तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) में थे। उन पर आरोप था ताकि वह 31 मई 2015 के दिन 50 लाख रुपये की रिश्वत दे रहे थे, ताकि एक नामित विधायक एल्विस स्टीफेंसन तेदेपा के उम्मीदवार वेम नरेंद्र रेड्डी का समर्थन करें।
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी रेवंत रेड्डी की ओर से कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने कहा, मामला यह है कि जाल पहले बिछाया गया और प्राथमिकी बाद में दर्ज की गई। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत इस तरह की जांच शुरू नहीं हो सकती। उन्होंने यह भी दलील दी कि उन पर आरोप भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 12 के तहत लगाए गए हैं, जबकि 2015 में यह धारा केवल रिश्वत लेने वालों पर लागू थी, न कि देने वालों पर।
रोहतगी ने कहा कि अगर धारा 7, 11 और 12 लागू भी होती हैं, तो वे सिर्फ उन कामों पर लागू होती हैं जो कोई सरकारी कर्मचारी अपनी सरकारी ड्यूटी के तहत करता है। लेकिन किसी अधिकारी का वोट देना या चुनाव में हिस्सा लेना, कानून के अनुसार सरकारी ड्यूटी नहीं माना जाता। मामले पर सुनवाई अधूरी रही और कल भी जारी रहेगी। मामले में रेवंत रेड्डी के अलावा अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया था, जिन्हें बाद में जमानत दी गई।
2015 में जुलाई में एसीबी ने रेवंत रेड्डी और अन्य पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत आरोपपत्र दाखिल किया था। उस समय एसीबी ने दावा किया था कि उनके पास ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग सहित ठोस सबूत हैं और 50 लाख रुपये की अग्रिम राशि बरामद की गई थी।

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रेड्डी उस समय तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) में थे। उन पर आरोप था ताकि वह 31 मई 2015 के दिन 50 लाख रुपये की रिश्वत दे रहे थे, ताकि एक नामित विधायक एल्विस स्टीफेंसन तेदेपा के उम्मीदवार वेम नरेंद्र रेड्डी का समर्थन करें।
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वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी रेवंत रेड्डी की ओर से कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने कहा, मामला यह है कि जाल पहले बिछाया गया और प्राथमिकी बाद में दर्ज की गई। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत इस तरह की जांच शुरू नहीं हो सकती। उन्होंने यह भी दलील दी कि उन पर आरोप भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 12 के तहत लगाए गए हैं, जबकि 2015 में यह धारा केवल रिश्वत लेने वालों पर लागू थी, न कि देने वालों पर।
रोहतगी ने कहा कि अगर धारा 7, 11 और 12 लागू भी होती हैं, तो वे सिर्फ उन कामों पर लागू होती हैं जो कोई सरकारी कर्मचारी अपनी सरकारी ड्यूटी के तहत करता है। लेकिन किसी अधिकारी का वोट देना या चुनाव में हिस्सा लेना, कानून के अनुसार सरकारी ड्यूटी नहीं माना जाता। मामले पर सुनवाई अधूरी रही और कल भी जारी रहेगी। मामले में रेवंत रेड्डी के अलावा अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया था, जिन्हें बाद में जमानत दी गई।
2015 में जुलाई में एसीबी ने रेवंत रेड्डी और अन्य पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत आरोपपत्र दाखिल किया था। उस समय एसीबी ने दावा किया था कि उनके पास ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग सहित ठोस सबूत हैं और 50 लाख रुपये की अग्रिम राशि बरामद की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जज श्रीधरन को इलाहाबाद स्थानांतरित करने की सिफारिश की
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट केजज अतुल श्रीधरन को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के बजाय इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की सिफारिश की है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता में 14 अक्तूबर को हुई कॉलेजियम की बैठक में यह फैसला लिया गया। इस बैठक में सरकार की ओर से पूर्व में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में स्थानांतरण की सिफारिश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया था। अगस्त में कॉलेजियम ने जज श्रीधरन को छत्तीसगढ़ में स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट केजज अतुल श्रीधरन को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के बजाय इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की सिफारिश की है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता में 14 अक्तूबर को हुई कॉलेजियम की बैठक में यह फैसला लिया गया। इस बैठक में सरकार की ओर से पूर्व में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में स्थानांतरण की सिफारिश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया था। अगस्त में कॉलेजियम ने जज श्रीधरन को छत्तीसगढ़ में स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी।
कई राज्यों ने रक्षा भूमि पर कब्जा किया है; इन्हें हटाने के प्रयास जारी: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया
केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कई राज्य सरकारों, उनकी संस्थाओं और अन्य लोगों ने देशभर में रक्षा भूमि पर कब्जा कर रखा है और इन अतिक्रमणों को हटाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की बेंच ने केंद्र द्वारा गठित उच्च स्तरीय स्वतंत्र समिति से कहा कि वह रक्षा भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए उठाए गए कदमों की निगरानी करे और दो सप्ताह में अपनी अंतरिम रिपोर्ट दाखिल करे।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पीठ को बताया कि यह समिति साइट पर जाकर अतिक्रमण की पहचान कर रही है, लेकिन इसमें कुछ विरोध का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए अदालत से कुछ दिशानिर्देश और सहायता की आवश्यकता है। एनजीओ 'कॉमन कॉज' की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि समिति को माइक्रो लेवल यानी जमीनी स्तर पर जाकर जांच करनी होगी। यह जनहित याचिका 2014 में पूरे देश में रक्षा भूमि पर अवैध कब्जे की जांच की मांग को लेकर दायर की गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में एक स्वतंत्र नियामक संस्था की जरूरत है।
इस पर पीठ ने कहा कि चाहे जो भी संस्था बनाई जाए, उसे स्थानीय राजस्व अधिकारियों और कानून-व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों की मदद लेनी ही होगी। बेंच ने कहा, एक बार अंतरिम रिपोर्ट दाखिल हो जाए, तो हम देखेंगे कि क्या निर्देश दिए जा सकते हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 10 नवंबर तय की।
केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कई राज्य सरकारों, उनकी संस्थाओं और अन्य लोगों ने देशभर में रक्षा भूमि पर कब्जा कर रखा है और इन अतिक्रमणों को हटाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की बेंच ने केंद्र द्वारा गठित उच्च स्तरीय स्वतंत्र समिति से कहा कि वह रक्षा भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए उठाए गए कदमों की निगरानी करे और दो सप्ताह में अपनी अंतरिम रिपोर्ट दाखिल करे।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पीठ को बताया कि यह समिति साइट पर जाकर अतिक्रमण की पहचान कर रही है, लेकिन इसमें कुछ विरोध का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए अदालत से कुछ दिशानिर्देश और सहायता की आवश्यकता है। एनजीओ 'कॉमन कॉज' की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि समिति को माइक्रो लेवल यानी जमीनी स्तर पर जाकर जांच करनी होगी। यह जनहित याचिका 2014 में पूरे देश में रक्षा भूमि पर अवैध कब्जे की जांच की मांग को लेकर दायर की गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में एक स्वतंत्र नियामक संस्था की जरूरत है।
इस पर पीठ ने कहा कि चाहे जो भी संस्था बनाई जाए, उसे स्थानीय राजस्व अधिकारियों और कानून-व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों की मदद लेनी ही होगी। बेंच ने कहा, एक बार अंतरिम रिपोर्ट दाखिल हो जाए, तो हम देखेंगे कि क्या निर्देश दिए जा सकते हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 10 नवंबर तय की।