सन्नाटे में भी गूँज उठती है,
दिल की बिखरी हुई कहानी,
जब शब्द थककर चुप हो जाएँ,
तो बहता है दर्द—पानी।
इन बूंदों में संचित पीड़ा है,
टूटे अरमानों की रवानी,
हर अश्रु एक गीत सुनाता है,
दुःख बन जाता है मधुर...और पढ़ें
आजकल उम्मीद नही हिचकियों पर।
फिर भी नजर ज़माई खिड़कियों पर।।
तरस आ जाता दे भी देता माँगने पर।
मगर भरोसा कैसे करे ल़डकियों पर।।
कोई पूछे मेरी आँखों में उदासी क्यों?
दिल हार आया जब से बस्तियों पर।।...और पढ़ें
अक्सर उम्मीदों की छांव में,
हम यूं ही बैठे रहते हैं ।
तू ना मिले तो ना ही सही,
पर राह निहारते रहते हैं ।
बहुत हुईं थीं बातें पर,
अभी भी थीं कुछ करने को,
गर ना हो पाईं तुझसे तो क्या,
अब हवाओं से...और पढ़ें
पिता - प्रतिबिम्ब है,
एक आधार है,
शिथिल ज़िन्दगी की जीविका है।
पिता - पराक्रम है,
एक मौन है,
उदासी में मुस्कुराहट है।
पिता - चिराग है,
एक पथ है,
आकांक्षा का अलंकार है।
...और पढ़ें
जैसे उसे क़ुबूल था करना पड़ा मुझे
हर ज़ाविए से ख़ुद को बदलना पड़ा मुझे
यादों की रेल और कहीं जा रही थी फिर
ज़ंजीर खींच कर ही उतरना पड़ा मुझे
हर हादसे के बा'द कोई हादिसा हुआ
हर हादसे के बा...और पढ़ें
आजकल उम्मीद नही हिचकियों पर।
फिर भी नजर ज़माई खिड़कियों पर।।
तरस आ जाता दे भी देता माँगने पर।
मगर भरोसा कैसे करे ल़डकियों पर।।
कोई पूछे मेरी आँखों में उदासी क्यों?
दिल हार आया जब से बस्तियों पर।।...और पढ़ें
हवा की डोर में टूटे हुए तारे पिरोती है
ये तन्हाई अजब लड़की है सन्नाटे में रोती है
मोहब्बत में लगा रहता है अंदेशा जुदाई का
किसी के रूठ जाने से कमी महसूस होती है
ख़मोशी की क़बा पहने है महव-ए-गुफ़्तुगू...और पढ़ें
माना हर शाम खुबसूरत नहीं हो होती
जिंदगी में हर खुशी अपनी नहीं होती
मगर उदासी में जिंदगी का मजा ही कुछ और है।...और पढ़ें
पिता - प्रतिबिम्ब है,
एक आधार है,
शिथिल ज़िन्दगी की जीविका है।
पिता - पराक्रम है,
एक मौन है,
उदासी में मुस्कुराहट है।
पिता - चिराग है,
एक पथ है,
आकांक्षा का अलंकार है।
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आजकल उम्मीद नही हिचकियों पर।
फिर भी नजर ज़माई खिड़कियों पर।।
तरस आ जाता दे भी देता माँगने पर।
मगर भरोसा कैसे करे ल़डकियों पर।।
कोई पूछे मेरी आँखों में उदासी क्यों?
दिल हार आया जब से बस्तियों पर।।...और पढ़ें