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जब भारतीय सेना ने तोड़ दी पाक की कमर
नई दिल्ली/इंटरनेट डेस्क
Updated Sun, 16 Dec 2012 01:28 PM IST
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16 दिसंबर, 1971 भारतीय इतिहास की एक अहम तारीख है। आज ही के दिन पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सैनिकों के आगे घुटने टेक दिए थे।
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भारत ने दुनिया को अपनी ताकत का अहसास कराया और बंग्लादेश के रूप में एक नए मुल्क का जन्म हुआ।
भारत-पाक के बीच हुआ 1971 का युद्घ स्वंतत्र भारत के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा। यह लड़ाई भारत के पश्चिमी और पूर्वी मोंर्चे पर 14 दिनों तक लड़ी गई थी।
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भारतीय सेना की कमान जनरल मानेक शॉ जैसे के हाथ में थी। यह वह समय था जब पाकिस्तान भारत रौंदने की धमकियां देता रहता था। पूर्वी बंगाल (तत्कालीन पाकिस्तान) से हजारों बंगाली शरणार्थी भारत में आ चुके थे।
पकिस्तानी सेना ने भयंकर कत्ल-ए-आम मचा रखा था। लगभग 30 लाख लोगों को मार डाला गया था और 5 लाख से अधिक महिलाएं बलात्कार का शिकार हुई थीं।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कोशिशें की कि कोई हल निकल आए और इसे कत्ल-ए-आम को रोका जा सके। शरणार्थियों को घर वापस भेजा जा सके लेकिन यह नहीं हो सका।
पूर्वी बंगाल के नागरिकों ने मुक्तिवाहिनी बनाकर पश्चिमी पाकिस्तानी हुकूमत से संघर्ष शुरू कर दिया। पाकिस्तान सरकार ने इसे भारत समर्थित युद्ध माना व 3 दिसंबर 1971 को भारत पर आक्रमण कर दिया।
भारत की तीनों सेनाओं ने पाकिस्तान के हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया। दो सप्ताह में ही पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। इस युद्घ में बंगाल के मोर्चे पर भारत की कमान लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा के हाथ में थी।
पश्चिमी मोर्चे पर नौसेना ने कराची बंदरगाह पर हमला कर पाकिस्तानी नौसेना के कई युद्धपोत समुद्र मे डुबो दिए। नौसेना ने पाकिस्तान की पनडुब्बी 'गाजी' को विशाखापट्टनम नौसैनिक अड्डे के पास डुबो दी।
पूर्वी मोर्चे पर भारतीय सेना जब ढाका पर नकेल कस रही थी, सेना प्रमुख मानेक शॉ पाकिस्तानी जनरल नियाजी को आत्मसमर्पण का सुझाव दिया।
अमेरिका ने अपना सातवां बेड़ा भेजकर पाकिस्तान की मदद करने की कोशिश की। लेकिन जब तक यह मदद पहुंच पाती भारतीय सेना ने पाक की कमर तोड़ दी।
जनरल नियाजी ने हार स्वीकार कर 16 दिसंबर, 1971 को दोपहर के 2.30 बजे आत्मसमर्पण 93 हजार पाक सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया।