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न्यूयॉर्क में पीएम मोदी का 'रॉकस्टार' जैसा स्वागत

Updated Sat, 27 Sep 2014 12:21 PM IST
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pm modi in newyork.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर इंडो-अमेरिकन समुदाय में उत्साह चरम पर है। प्रधानमंत्री मोदी न्यूयॉर्क पहुंच गए हैं। इस दौरान लोग मोदी की एक झलक पाने को बेताब दिखे।

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प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका पहुंच गए हैं। भारतीय समुदाय में जबर्दस्त उत्साह का माहौल है। अगले कुछ दिनों में यह बार-बार सुनने को मिलेगा कि भारत और अमेरिका स्वाभाविक सहयोगी हैं और दोनों के हित एक जैसे हैं।
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गौर से देखने पर पता चलता है कि वास्तविकता इससे थोड़ी अलग है। दोनों देशों ने कई महत्वपूर्ण मामलों पर फैसले केवल अपने हित को देखते हुए लिए और दूसरे की परवाह नहीं की।

हाल ही में मोदी सरकार ने विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) में एक समझौता रोक दिया जिसके तहत देशों के बीच व्यापार करना आसान हो जाता।

इस मुद्दे पर अमेरिका सहित विकसित देशों ने दबाव बनाया लेकिन भारत नहीं माना। अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने कहा की भारत ने समझौता रोक कर दुनिया को गलत संदेश दिया है।

मीठी बातों के साथ कड़वी सच्चाइयों की जुगलबंदी

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अमेरिका की सरकारी एजेंसी यूएसटीआर ने कुछ महीने पहले उन देशों की लिस्ट जारी की थी जहाँ बौद्धिक संपदा अधिकार को सुरक्षित रखने के इंतजाम नहीं हैं।

इस लिस्ट में भारत का शुमार उन देशों के साथ किया गया जहाँ हालत बहुत चिंताजनक है और जिन देशों पर विशेष नजर रखने की जरूरत है।

इस श्रेणी में नाम आने के बाद भारत पर प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं। भारत के अपने तर्क हैं लेकिन अमेरिका को लगता है कि इस मुद्दे पर भारत की लचर व्यवस्था से उसके लोगों और कंपनियों को भारी नुकसान हो रहा है।

भारत के पास भी अमेरिका के खिलाफ शिकायतों की लंबी फेहरिस्त है। मसलन भारत का कहना है, अमेरिका का इमिग्रेशन कानून कैपिटल हिल में अटका हुआ है, जिसकी वजह से एच1- बी वीसा की तादात नहीं बढ़ रही है और भारत के सर्विस सेक्टर को काफी नुकसान हो रहा है।

कई मुद्दों पर दोनों देश अपने हित को देते हैं तरजीह

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भारत मानता है कि एच1- बी वीसा की तादात अलग से बढ़ाई जा सकती है लेकिन अमेरिका की घरेलू राजनीति की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है।

इसके अलावा परमाणु समझौता, जलवायु परिवर्तन और कई व्यापारिक समझौतों में भारत के शामिल न होने सहित कई मामले ऐसे हैं जिस पर दोनों देश केवल अपने हित को देख रहे हैं।

अमेरिका और भारत के संबंधों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ कहते हैं की दोस्ती की बातें अपनी जगह हैं लेकिन सच्चाई यह है कि भारत और अमेरिका दोनों लोकतंत्र हैं और उनके फैसले घरेलू राजनीति और अर्थव्यवस्था से निर्देशित होंगे। अगर इस बुनियादी बात को याद न रखा गया तो दिल टूटेंगे और गलतफहमियां बढ़ेंगी, जिसका नुकसान दोनों को होगा।

मोदी को लेकर लोगों में दीवानगी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर इंडो-अमेरिकन समुदाय में उत्साह चरम पर है। आलम यह है कि जिन लोगों को 28 सितंबर को मैडिसन स्क्वायर गार्डन में मोदी के कार्यक्रम का टिकट नहीं मिला वह वालंटियर बनने की जुगत में लगे हैं।

ऐसे हजारों लोगों में से एक भारतीय मूल की साफ्टवेयर इंजीनियर पलक जैन का कहना है कि न वह स्वामी विवेकानंद के समय में थीं न ही उन्होंने सरदार पटेल को देखा है लेकिन वह अपने समय के सबसे महान भारतीय नेता को देखने का मौका नहीं खोना चाहतीं हैं।

कार्यक्रम का आयोजन करने वाली संस्था इंडो अमेरिकन कम्युनिटी फेडरेशन (आईएसीएफ) की मानें तो उन्हें हर रोज सैकड़ों की तादात में लोग टिकट के लिए फोन, पत्र और ई-मेल के जरिए उनसे संपर्क कर रहे हैं।

हालांकि इस कार्यक्रम के सभी 18000 टिकट काफी पहले ही बिक चुके हैं। आईएसीएफ के मुताबिक हालात यह हैं मोदी के चाहने वाले उन्हें देखने के लिए हजारों डॉलर के आफर से लेकर भीड़ को नियंत्रित करने में वालंटियर की तरह काम करने को तैयार हैं।

अमेरिका में काफी अरसे से रह रहे डॉ. शंभू बानिक का कहना है अमेरिका में रह रहे भारतीय समुदाय के लिए मोदी एक रॉक स्टार जैसे हैं।

बानिक ने कहा कि किसी भारतीय नेता के लिए ऐसी दीवानगी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मोदी के कार्यक्रम में 15 लाख डॉलर खर्च होने का अनुमान है और आयोजकों ने अब तक 20 लाख डॉलर जमा कर लिए हैं।

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