अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस: यूनिसेफ और अमर उजाला की पहल, जानिए बतौर युवा आपके लिए ये आंकड़े जानना कितने जरूरी हैं
आज यानी 12 अगस्त को विश्व युवा दिवस है। इस मौके पर जानिए कि जलवायु परिवर्तन के खतरे को देखते हुए युवाओं के लिए ये आंकड़े जानना कितने जरूरी हैं...
बच्चों पर जलवायु संकट के प्रभावों का अत्यधिक जोखिम
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले वर्षों में बढ़ती गर्मी, सूखे और अनियमित बारिश की घटनाओं के साथ भारत को जलवायु परिवर्तन के अपरिवर्तनीय प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है। जुलाई 2021 में द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में सालाना लगभग 740,000 अतिरिक्त मौतों को जलवायु परिवर्तन से संबंधित असामान्य गर्म और ठंडे तापमान के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। भारत ने हाल ही में कई चरम मौसम की घटनाओं को देखा है जैसे कि अधिक या कम बारिश के साथ असामान्य मानसून, असामान्य हीट वेव, बार-बार और लंबे समय के लिए बाढ़, मूसलाधार बारिश, अचानक बाढ़, चक्रवात और भूस्खलन।
स्कूल के बुनियादी ढांचे, सुविधाओं और संसाधनों को नुकसान
काउंसिल ऑन क्लाइमेट, एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) 2021 द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, 20 में से 5 भारतीय तीन चरम घटनाओं - चक्रवात, बाढ़ और सूखे के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। जलवायु संकट बच्चों की शिक्षा को बाधित कर रहा है, कभी-कभी गंभीर रूप से ऐसा हो रहा है। भारत में कई स्कूल आपदा संभावित स्थानों में मौजूद हैं, जिनमें खड़ी पहाड़ी इलाके और नदी के किनारे या तटरेखा के बहुत करीब वाली जगहें हैं। जलवायु संबंधी आपदाओं की बढ़ती संख्या इस क्षेत्र में स्कूल के बुनियादी ढांचे, सुविधाओं और संसाधनों को नुकसान पहुंचाती है जिससे बच्चों की शिक्षा बाधित होती है। उदाहरण के लिए, ओडिशा में 2019 में चक्रवात फोनी ने 5,000 से अधिक स्कूलों को क्षतिग्रस्त कर दिया। यूनिसेफ राष्ट्रीय और राज्य नीति, पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचे के दस्तावेजों में जलवायु परिवर्तन और लचीलापन लिए निर्माण घटकों के व्यवस्थित एकीकरण पर जोर देता है।
बच्चों और युवाओं की आवाज
चूंकि जलवायु संकट पीढ़ी दर पीढ़ी अन्याय का मामला है, इसलिए युवाओं को इसे दोचार होने और हमारे ग्रह के भविष्य को निर्धारित करने वाले निर्णय लेने में भाग लेने का उचित मौका मिलना चाहिए। सभी राष्ट्रीय सरकारों और संस्थानों को प्रमुख संस्थानों/मंत्रालयों में बाल और युवा प्रतिनिधियों को शामिल करना चाहिए जो जलवायु परिवर्तन से संबंधित नीति को विकसित करने और लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं। सरकारों को अपने आधिकारिक राष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल में बच्चों और युवाओं को सभी अंतरराष्ट्रीय जलवायु मंचों, विशेष रूप से सीओपी जैसे यूएनएफसीसीसी कार्यक्रमों में शामिल करना चाहिए।
इन सभी मांगों में बच्चों के कमजोर और हाशिए के समूहों को शामिल किया जाना चाहिए और उन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यूनिसेफ नीति निर्माताओं के साथ काम कर रहा है ताकि युवाओं को जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट पर उनकी चिंताओं को आवाज देने और उनके समाधानों को लागू करने के लिए, उनके लिए, उनके परिवारों और उनके समुदायों के लिए क्षमता का निर्माण किया जा सके।
जलवायु संकट से निपटने के लिए यूनिसेफ भारत में क्या कर रहा है?
यूनिसेफ यह सुनिश्चित करने के लिए भागीदारों के साथ काम करता है कि बच्चे सुरक्षित और स्वच्छ वातावरण में रह सकें। हमारे कार्य चार दृष्टिकोणों के आसपास संरचित हैं:
- बच्चों को जलवायु परिवर्तन रणनीतियों और प्रतिक्रिया योजनाओं का केंद्र बनाना
- बच्चों को बदलाव के एजेंट के रूप में पहचानना
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण के प्रभाव से बच्चों की रक्षा करना
- समुदायों में अपशिष्ट प्रबंधन से लेकर स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को सोलराइज करने तक पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ और लचीले हस्तक्षेपों की वकालत करना
यूनिसेफ बच्चों और युवाओं के साथ मिलकर जलवायु की वकालत और कार्रवाई के लिए जागरूकता पैदा करता है। यूथ4वाटर (Youth4Water) कार्यक्रम भविष्य के लिए पानी सुरक्षित करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में युवाओं के कार्यों को बढ़ावा देता है। यूनिसेफ ओडिशा और वाटर इनिशिएटिव द्वारा 2019 में शुरू किया गए इस कार्यक्रम ने 5,000 युवा स्वयंसेवकों को शामिल किया है और 2025 तक 50,000 युवाओं तक पहुंचने का लक्ष्य है।
Our #Youth4UNICEF Neha and Aditi show us what the world would look like if it were a better place for young people!
— UNICEF India (@UNICEFIndia) August 12, 2022
And believe it or not, we can make it happen!#InternationalYouthDay pic.twitter.com/NUp4TVgWyk