RJ By Election: उपचुनाव में अपने-अपने का दबाव, परिवारवाद से पार पा पाएगी कांग्रेस या भाजपा को मिलेगा फायदा
उपचुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है, ऐसे में कांग्रेस के नेता अपनों के लिए टिकट को लेकर घेराबंदी में जुट गए हैं, जिसके चलते कार्यकर्ताओं की नाराजगी और अनदेखी भाजपा को बढ़त दिलवा सकती है। सलूंबर सहित 6 सीटों पर चुनाव होना तय है, जिसमें से पांच सीट कांग्रेस और उनके सहयोगियों के पास है और एक सीट भाजपा के पास है।

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प्रदेश में राजनीतिक गर्मी और उठापटक का दौर एक बार फिर से शुरू हो चुका है। विधानसभा सत्र के अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने के साथ ही उपचुनाव की हलचल शुरू हो चुकी है, जहां एक तरफ भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौर ने पद ग्रहण करते ही पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी पर पर अपनी प्रतिक्रिया दी। वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने विधानसभा में मुकेश भाकर का साथ देते हुए कांग्रेस को राजस्थान में एकजुट दिखाने का सफल प्रयास किया।

6 सीटों पर होने वाले उप चुनाव में अग्नि परीक्षा कांग्रेस पार्टी की होनी तय है, क्योंकि भाजपा के पास खोने और पाने को कुछ है ही नहीं। न तो उपचुनाव उनके विधानसभा में संख्या बल को प्रभावित करते हैं और न ही सरकार पर कोई अनिश्चितता दर्शाते हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के सामने पार्टी को 6 उप चुनाव में जीत दिलवाकर अपने कद को बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है।
प्रदेश में उपचुनाव
- खींवसर से हनुमान बेनीवाल (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी) ,
- झुंझुनूं से बृजेंद्र ओला (कांग्रेस)
- चौरासी से राजकुमार रोत (बाप)
- देवली उनियारा से हरीश मीणा (कांग्रेस)
- दौसा से मुरारी लाल मीणा (कांग्रेस)
- सलूंबर से भाजपा के विधायक अमूर्त लाल मीणा के निधन के बाद चुनाव होने हैं।
लोकसभा चुनाव जीतने पर पांच विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दिया था, जबकि अमृत मीणा की असमय मृत्यु चुनाव का कारण बनी है।
खींवसर के विधायक हनुमान बेनीवाल (RLP) नागौर से सांसद चुने गए। इन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। अब उपचुनाव में ये अपने ही परिवार से उम्मीदवार को चुनाव लड़ना चाहते हैं। जानकारों की मानें तो इनकी पत्नी कनिका बेनीवाल के नामों की चर्चा जोरों पर है। हनुमान के भाई भी नारायण बेनीवाल भी खींवसर सीट से विधायक रहे चुके हैं। सवाल ये भी है कि क्या अब भी इनका कांग्रेस से गठबंधन लागू रहेगा या बेनीवाल अकेले ही चुनाव में जाएंगे? अगर गठबंधन चालू रहता है तो कांग्रेस इनको कैसे मना पाती है।
झुंझुनू से बृजेंद्र ओला, कांग्रेस पार्टी के विधायक से सांसद बन चुके हैं। उप चुनाव में ये भी अपने परिवार के लिए सीट चाहते हैं, इतिहास गवाह है कि कांग्रेसी नेता शीशराम ओला के समय में उनके सांसद रहते उनके बेटे बृजेंद्र ओला व महिला सीट आने पर उन्होंने अपनी पुत्रवधु राजबाला ओला को सरकारी नौकरी से इस्तीफा दिलाकर जिला प्रमुख बनाया था। स्वयं शीशराम ओला भी जिला प्रमुख रह चुके हैं। यानी ओला परिवार ने अपने परिवार व अपने लोगों को जिला प्रमुख बनाया था। उप चुनाव में भी ओला परिवार को ही महत्व मिले इसकी कवायद चालू है। बृजेंद्र ओला अपने बेटे अमित ओला के लिए और अपनी पत्नी राजबाला ओला के लिए टिकट की लॉबिंग कर रहे हैं।
देवली उनियारा से विधायक हरीश मीणा टोक सवाई माधोपुर से सांसद बने हैं। हरीश मीणा अपने बेटे हनुमंत मीणा को टिकट दिलवाने के भरसक प्रयास कर रहे हैं।
दौसा से मुरारी लाल मीणा जोकि सांसद चुने गए हैं वो भी अपने ही परिवार में टिकट मिले इसके प्रयास में जुटे हैं, मुरारी लाल मीणा की पत्नी सविता मीणा और उनकी बेटी निहारिका मीणा टिकट के लिए प्रयासरत हैं। वहीं दौसा में पंडित नवल किशोर शर्मा के पोते आशुतोष शर्मा को राजनीतिक रूप से स्थापित करने के प्रयास में टिकट की मांग कर रहे हैं।
चौरासी से राजकुमार रोत (बाप) जोकि कांग्रेस के द्वारा गठबंधन में सीट छोड़ कर बाप को दी गई थी, उससे सांसद चुने गए। राजकुमार रोत अपने साले के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं।
हाल ही में खाली हुई सलूंबर सीट से भी कांग्रेस के रघुवीर मीणा ही दावेदारी कर रहे जोकि पिछला चुनाव अमृत लाल मीणा के सामने हारे थे।
अपने सहयोगियों के दबाव में कांग्रेस
6 सीटों की समीकरण पर नजर डाली जाए तो कांग्रेस अपने या अपने सहयोगियों के दबाव में दिखाई देती है। कांग्रेस आलाकमान जोकि खुद भी परिवारवाद के आरोपों से घिरा रहता है, क्या राजस्थान में पनप रहे परिवारवाद से पार पाने में समर्थ हो पाएगा? क्या प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा परिवारवाद के दंश से पार्टी को बचा पाएंगे और जो छवि डोटासरा की आलाकमान की नजरों में बनी है, उसको उप चुनाव में परिवारवाद के चलते नुकसान से बचा पाएंगे? परिवारवाद में उलझी कांग्रेस की आपसी कशमकश कहीं भाजपा के लिए लाभ में न बदल जाए। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और युवा नेताओं के बीच एक उम्मीद की किरण जगी है, जो इस उप चुनाव में कहीं फिर बुझ न जाए।