Starlink: जियो और एयरटेल ने सैटेलाइट स्पेक्ट्रम फीस पर उठाए सवाल, कहा- स्टारलिंक को होगा फायदा
भारतीय टेलीकॉम नियामक संस्था (TRAI) ने मई में प्रस्ताव दिया था कि सैटेलाइट सेवा प्रदाताओं को अपनी वार्षिक कमाई का केवल 4% सरकार को शुल्क के रूप में देना होगा। वहीं स्टारलिंक ने भारत सरकार से अनुरोध किया था कि स्पेक्ट्रम की नीलामी न की जाए, बल्कि वैश्विक ट्रेंड के अनुसार लाइसेंस के जरिए इसे सीधे आवंटित किया जाए

विस्तार
एलन मस्क के सैटेलाइट इंटरनेट स्टारलिंक की जल्द ही भारत में एंट्री होने वाली है, लेकिन उससे पहले विवाद शुरू हो गया है। भारत की दो प्रमुख टेलीकॉम कंपनियां रिलायंस जियो और भारती एयरटेल सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं के लिए प्रस्तावित "कम शुल्क" को चुनौती दे रही हैं। इन कंपनियों का कहना है कि यदि भारत सरकार सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की कीमतें "अनुचित रूप से कम" रखती है, तो इससे एलन मस्क की स्टारलिंक जैसी सेवाओं को अनुचित लाभ मिलेगा और पारंपरिक टेलीकॉम कंपनियों का व्यवसाय प्रभावित होगा।

क्या है मामला?
भारतीय टेलीकॉम नियामक संस्था (TRAI) ने मई में प्रस्ताव दिया था कि सैटेलाइट सेवा प्रदाताओं को अपनी वार्षिक कमाई का केवल 4% सरकार को शुल्क के रूप में देना होगा। वहीं स्टारलिंक ने भारत सरकार से अनुरोध किया था कि स्पेक्ट्रम की नीलामी न की जाए, बल्कि वैश्विक ट्रेंड के अनुसार लाइसेंस के जरिए इसे सीधे आवंटित किया जाए क्योंकि यह एक "प्राकृतिक संसाधन" है जिसे सभी कंपनियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।
टेलीकॉम कंपनियों की आपत्ति
सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) ने 29 मई को संचार मंत्रालय को पत्र लिखकर इस प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने की मांग की। उनका कहना है कि पारंपरिक टेलीकॉम कंपनियां स्पेक्ट्रम के लिए बड़ी राशि नीलामी में देती हैं जिससे उनकी लागत सैटेलाइट सेवाओं की तुलना में लगभग 21% अधिक हो जाती है।
COAI ने लिखा, "प्रति मेगाहर्ट्ज की कीमत समान या तुलनीय होनी चाहिए, खासकर जब एक जैसे उपभोक्ताओं को समान सेवाएं दी जा रही हों।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि सैटेलाइट सेवाएं जमीनी ब्रॉडबैंड का सस्ता और प्रतिस्पर्धी विकल्प बन सकती हैं।
रिलायंस और एयरटेल की चिंता
रिलायंस जियो और एयरटेल जैसे टेलीकॉम खिलाड़ी चिंतित हैं कि उन्हें सैटेलाइट सेवा प्रदाताओं की तुलना में कहीं अधिक शुल्क देना पड़ेगा, जबकि वे एक जैसे उपभोक्ताओं को समान इंटरनेट सेवाएं देंगे। सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में रिलायंस और अन्य कंपनियों ने 5G स्पेक्ट्रम खरीदने में करीब 20 अरब डॉलर (लगभग ₹1.72 लाख करोड़) खर्च किए हैं।
मार्च में रिलायंस और एयरटेल ने स्टारलिंक उपकरणों की डिस्ट्रिब्यूशन डील्स साइन की थीं, लेकिन जैसे ही स्टारलिंक की सेवाएं लॉन्च होंगी, वे आपस में प्रतिस्पर्धा करेंगी। एक इंटरव्यू में संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि स्टारलिंक को लाइसेंस देने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है।