ब्रिटेन में नए प्रधानमंत्री का होगा चुनाव, टेरीजा मे ने पार्टी से दिया इस्तीफा
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ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा मे शुक्रवार को कंजरवेटिव पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। अब देश के नए प्रधानमंत्री के चुनाव की दौड़ शुरू हो जाएगी। हालांकि मे तब तक देश की प्रधानमंत्री बनी रहेंगी जब कि किसी नए प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं हो जाता है। माना जा रहा है कि वह जुलाई के आखिर तक इस पद पर रहेंगी। लेकिन ब्रिटेन को यूरोपिय संघ से अलग करने के लिए अब उनके हाथों में कोई नियंत्रण नहीं रहेगा।
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ब्रेक्जिट के लिए अभी भी 31 अक्तूबर तक की तारीख तय की गई है। मे ने 24 मई को इस्तीफा देने की घोषणा कर दी थी। मे करीब तीन साल से ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन से अलग करने के लिए प्रयास कर रही हैं। कई बार इसके लिए समय सीमा भी बढ़ाई गई लेकिन उनकी पार्टी के नेता ही उनके खिलाफ नजर आए।
उन्होंने कहा था, "मैं विश्वास करती हूं कि मुझे दृढ़ रहने का अधिकार है, यहां तक कि जब सफलताओं के खिलाफ बाधाएं हों। लेकिन अब मुझे ये सपष्ट हो गया है कि यह देश के लिए बेहतर होगा कि उन्हें एक नया प्रधानमंत्री मिले। मुझे हमेशा इस बात का खेद रहेगा कि मैं ब्रेक्जिट डिलीवर नहीं कर पाई।"
टेरीजा मे ने ये बात भी स्वीकार की है कि उन्होंने ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन से अलग करने के समझौते के लिए सांसदों को मनाने की काफी कोशिश की लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो पाईं।
अब माना जा रहा है कि मे की जगह कंजरवेटिव पार्टी के नेता और विदेश मंत्री बोरिस जॉन्सन ले सकते हैं। जो भी नया प्रधानमंत्री होगा उसके पास कुछ ही महीनों का समय होगा, कि वह या तो मे के समझौते पर ही काम करे या फिर ब्रेक्जिट में देरी करे। इस पार्टी पर अब निगेल फराज का दबाव भी बना रहेगा, जिनकी ब्रेक्जिट पार्टी बीते महीने यूरोपिय चुनाव में टॉप पर रही है। निगेल किसी भी तरह की डील के पक्ष में नहीं हैं।
पहला जनमत संग्रह
ब्रिटेन में ब्रेक्जिट के आने से सबसे बड़े राजनीतिक संकट की शुरुआत हुई थी। आज भी ये संकट जारी है। इस मुद्दे पर ब्रिटेन में पहला जनमत संग्रह 23 जून, 2016 को हुआ था। इसमें 52 फीसदी लोगों ने यूरोपीय संघ से अलग होने के पक्ष में मतदान किया था। इस वोटिंग के अगले ही दिन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इस्तीफा दे दिया।
टेरीजा मे 13 जुलाई, 2016 को ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री बनी थीं। उन्होंने 2 साल में ब्रेक्जिट का दावा किया था। मे ने 2 साल में ब्रेग्जिट प्रक्रिया को पूरा करने के वादे के साथ शपथ ली थी। लेकिन वो भी इसमें सफल नहीं हो पाईं।