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GST Reforms: म्यूचुअल फंड में निवेश के नए मौके, सही रणनीति से उठाएं सुधारों का लाभ

संदीप भूशेट्टी, सीईओ, चतुरनोवा कैपिटल Published by: दीपक कुमार शर्मा Updated Mon, 15 Sep 2025 06:05 AM IST
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सार

जीएसटी 2.0 सुधार अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा दे सकते हैं। टैक्स दरों में कमी और कंप्लायंस आसान होने से खपत आधारित ऑटो, एफएमसीजी और रियल एस्टेट जैसे कई सेक्टर्स में तेजी आने की उम्मीद है। म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए यह समय पोर्टफोलियो की समीक्षा करने और सही फंड चुनने का है।
 

GST Reforms: This time for mutual fund investors to review their portfolio and choose right fund
म्यूचुअल फंड (सांकेतिक) - फोटो : एएनआई
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विस्तार
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जीएसटी 2.0 सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नई उम्मीदें लेकर आए हैं। टैक्स दरों में कटौती और कंप्लायंस आसान होने से उपभोक्ता आधारित सेक्टर्स को सबसे ज्यादा लाभ मिलेगा। ऑटो सेक्टर में गाड़ियों की कीमतें घटने से मांग बढ़ सकती है, जबकि एफएमसीजी और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स सस्ते होने से खपत तेज होगी। रियल एस्टेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों की लागत कम होने से प्रोजेक्ट्स में तेजी आ सकती है।

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ऐसे में म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए यह समय अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करने और सही फंड चुनने का है। लंबी अवधि का नजरिया, एसआईपी अनुशासन और संतुलित रणनीति अपनाकर निवेशक इन सुधारों का पूरा लाभ उठा सकते हैं।
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सही रणनीति से उठाएं सुधारों का लाभ
जीएसटी 2.0 से कई सेक्टर्स को मजबूती मिलेगी। लेकिन, निवेशक के लिए जरूरी है कि वह इन सुधारों का फायदा सही रणनीति से उठाए। सेक्टोरल फंड्स में निवेश को अतिरिक्त रिटर्न की संभावना मानें और पोर्टफोलियो का बड़ा हिस्सा इसमें न लगाएं। असली ताकत लंबी अवधि के नजरिये और एसआईपी अनुशासन से ही आती है।

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सेक्टोरल फंड पर नजर
आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले पांच साल में शीर्ष-5 सेक्टोरल/थीमैटिक फंड का सालाना रिटर्न 20 से 25 फीसदी के दायरे में रहा है। सेक्टोरल और थीमैटिक फंड ने लंबी अवधि में शानदार रिटर्न रिटर्न दिया है। निवेश के लिए ऑटो, एफएमसीजी और रियल्टी जैसे सेक्टर्स से जुड़े फंड्स आने वाले वर्षों में बेहतर रिटर्न दे सकते हैं। लेकिन, सेक्टोरल फंड्स की खासियत यह भी है कि इनमें उतार-चढ़ाव ज्यादा रहता है। एक समय में शानदार रिटर्न देने वाले ये फंड किसी भी कारण से सेक्टर कमजोर पड़ते ही निवेशक को घाटा भी दे सकते हैं। यही वजह है कि पोर्टफोलियो का सिर्फ 10-15 फीसदी हिस्सा ही सेक्टोरल फंड्स में लगाना चाहिए। यह तरीका निवेशक को अवसर भी देगा और बड़े जोखिम से भी बचाएगा।

निवेश अवधि : लंबे वक्त का रखें नजरिया
इक्विटी म्यूचुअल फंड निवेश हमेशा लंबी अवधि की सोच के साथ करना चाहिए। कम से कम 5 से 7 साल का नजरिया रखने पर ही बेहतर रिटर्न मिल पाता है। सेक्टोरल फंड्स के मामले में यह समय और लंबा होना चाहिए। इन फंड्स में 7 से 10 साल के नजरिये का निवेश सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि किसी सेक्टर की ग्रोथ चक्रीय होती है और चक्र पूरा होने में समय लगता है। वहीं, अल्पकालिक निवेशकों के लिए डेट या बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स उपयुक्त रहेंगे।

एसआईपी में रणनीति : करते रहें स्टेपअप
एसआईपी निवेशकों को अनुशासन और नियमितता देता है। जीएसटी 2.0 के बाद बाजार में अवसर बढ़ रहे हैं। ऐसे में एसआईपी जारी रखना और पोर्टफोलियो में संतुलन बनाना जरूरी है। फ्लेक्सीकैप और मल्टीकैप फंड्स एसआईपी के लिए बेहतर विकल्प हैं क्योंकि ये अलग-अलग मार्केट कैप सेगमेंट में निवेश करते हैं और अस्थिरता कम करते हैं। यह भी ध्यान रखें कि एसआईपी को आय बढ़ने के साथ स्टेपअप करें। हर साल 10-15 फीसदी राशि बढ़ाने का लक्ष्य रखने से कंपाउंडिंग का असर और तेज हो जाता है। लंबी अवधि में बड़ा फंड तैयार होता है।

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नए निवेशक कहां से करें शुरुआत
पहली बार निवेश करने वालों के लिए सेक्टोरल फंड्स सही शुरुआत नहीं हैं। इंडेक्स और बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स पर ध्यान दे सकते हैं। इंडेक्स फंड्स सरल और कम खर्चीले होते हैं, जिससे निवेशक बाजार की औसत ग्रोथ का लाभ उठा सकता है। बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स इक्विटी एवं डेट दोनों का संतुलन बनाते हैं, इसलिए जोखिम कम रहता है।

निवेश करने का यह है सही तरीका

  • निवेश लक्ष्य और अवधि निर्धारित करें। जोखिम प्रोफाइल समझकर सही फंड का चुनाव करें।
  • नियमित निवेश के लिए एसआईपी (सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) की शुरुआत करें। 
  • पोर्टफोलियो की समय-समय पर समीक्षा करें। निवेश में लंबी अवधि तक धैर्य बनाए रखें
  • नए निवेशकों को फिलहाल सुरक्षित और संतुलित फंड्स से शुरुआत करनी चाहिए। धीरे-धीरे जोखिम वाले विकल्पों की ओर बढ़ाना चाहिए।
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