1971 War: ‘टक्कर’ पोस्ट से पाक सैनिकों को कैसे खदेड़ा? नायब सूबेदार वांगपू की रोंगटे खड़े कर देने वाली दास्तां
भारतीय सेना के सेवानिवृत्त नायब सूबेदार छिरिंग वांगपू विजय दिवस के खास मौके पर वेस्टर्न कमांड पहुंचे। उन्होंने बताया कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बर्फीली चोटियां से घिरी टक्कर मोर्चे की लड़ाई बेहद मुश्किल थी। वहां भारतीय जवानों को सख्त बन चुके आलू के पकौड़े कुतर कर खाने पड़े थे। माइनस 30 डिग्री तापमान में लद्दाख स्काउट्स के जवानों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सैनिकों को टक्कर पोस्ट से खदेड़ा था।
विस्तार
साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच छिड़ी जंग में लेह-लद्दाख की बर्फीली चोटियों से घिरा एक मोर्चा ऐसा भी था, जहां पाकिस्तानियों के साथ जंग बेहद मुश्किल थी। 18402 फीट की ऊंचाई पर बनी ‘टक्कर’ पोस्ट पर पाकिस्तानी फौजों ने कब्जा कर लिया था। भारतीय सेना को जब इसकी भनक लगी, तो यह तय हुआ कि पोस्ट कब्जे में लेकर पाकिस्तानियों को खदेड़ना है।
रणनीति तैयार हुई मगर मौसम बहुत ज्यादा विपरीत था। तापमान माइनस 30 डिग्री के आसपास था। चांदनी रात और साफ मौसम जंग की चुनौतियों को और बढ़ा रहा था, क्योंकि ऊपर आते हुए हमारी पलटन के जवानों की सारी मूवमेंट पाकिस्तानियों का साफ दिख रही थी। इस मोर्चे को हथियाने की जिम्मेदारी जी. कंपनी लद्दाख स्काउट्स को दी गई, क्योंकि इस पलटन में शामिल सभी (2 अफसर, 13 सिपाही) लद्दाखी थे जो जल्द चोटियों पर चढ़ने और तेज आक्रमण करने में माहिर माने जाते थे।
इस पलटन में शामिल ऑनरेरी नायब सूबेदार छिरिंग वांगपू विजय दिवस के अवसर पर वेस्टर्न कमांड पहुंचे हुए थे। वांगपू ने बताया कि हमले का दिन 8 दिसंबर तय हुआ था। शाम को करीब 4 बजे नीचे बनी 7 नंबर पोस्ट से निकलना था और रात 12 बजे ऊपर पहुंच जाना था ताकि हमला आधी रात को किया जाए। कड़ाके की सर्दी की वजह से बर्फ बहुत सख्त थी। बर्फ पर जवान दो कदम ऊपर चढ़ते थे और तीन कदम नीचे फिसल जाते थे।
इसी वजह से अगले दिन सुबह 6.30 बजे जवान चोटी पर पहुंचे। चांद की रोशनी में टक्कर पोस्ट पर बने बंकर में से पाकिस्तानियों को हमारी मूवमेंट साफ दिख रही थी, जिसके बाद उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में उनकी एमएमजी कवरिंग पार्टी ने भी दुश्मन पर फायर खोल दिया और अंतत: पलटन ऊपर पहुंच गई। उसके बाद पलटन ने बंकर में पहुंचकर पाकिस्तानियों को खदेड़ा।
वांगपू ने बताया कि उन्होंने भी यहां एक पाकिस्तानी को मारा और दूसरे जवान रुस्तम अली को बंदी बनाकर नीचे ले आए। उन्होंने दूसरा पाकिस्तानी जवान टयासी गांव के पास पाकिस्तान द्वारा बनाए गए लकड़ी के पुल के नजदीक ढेर किया।
हालात से चल रही थी दूसरी जंग
वांगपू बताते हैं कि पाकिस्तानियों से लड़ाई के साथ-साथ इस मोर्च को जीतने के लिए उस वक्त हालात से एक अलग जंग चल रही थी। जवान नीचे से आलू के पकौड़े लेकर गए थे, क्योंकि रोटी और ड्राई फ्रूट ऊपर जाकर पत्थर सरीखे सख्त हो जाते हैं जिन्हें चबाना मुश्किल था। बेसन के पकौड़े भी थोड़े कच्चे ही तले थे, जिन्हें जवान कुतर-कुतर कर खाकर भूख मिटा रहे थे। बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े खाकर प्यास बुझानी पड़ रही थी। इसके अलावा भी कई दैनिक क्रियाओं में जवानों को बड़ी कठिनाइयां का सामना करना पड़ा। जवानों की शूरवीरता के बदौलत ही टक्कर पोस्ट पर हमारा कब्जा है। यह पोस्ट एलओसी पर बसे थांग गांव से करीब 6 किलोमीटर ऊपर है।