{"_id":"691e8e265310de91c60b412d","slug":"highcourt-verdict-in-marital-dispute-send-twin-girls-to-boarding-school-2025-11-20","type":"story","status":"publish","title_hn":"वैवाहिक विवाद में फैसला: जुड़वां बच्चियों को बोर्डिंग स्कूल भेजें, HC ने कहा-पहला दायित्व बच्चों का कल्याण","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
वैवाहिक विवाद में फैसला: जुड़वां बच्चियों को बोर्डिंग स्कूल भेजें, HC ने कहा-पहला दायित्व बच्चों का कल्याण
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: निवेदिता वर्मा
Updated Thu, 20 Nov 2025 09:13 AM IST
सार
जस्टिस वशिष्ठ ने स्पष्ट कहा कि अदालत का पहला दायित्व बच्चों का कल्याण है। चाहे अभिरक्षा का मामला कानूनी हो या गैरकानूनी, सबसे पहले अदालत को बच्चों के बेहतर भविष्य की चिंता करनी होगी। बातचीत के दौरान बच्चियों ने मां और पिता दोनों के व्यवहार को लेकर अपनी चिंताएं जज से साझा कीं।
विज्ञापन
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
- फोटो : अमर उजाला
विज्ञापन
विस्तार
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने नाबालिग जुड़वां बेटियों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए माता-पिता के आपसी विवाद में एक अहम आदेश दिया है।
वैवाहिक विवाद के एक मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने बच्चियों को मानसिक तनाव और पारिवारिक कलह से बचाने के लिए गुरुग्राम स्थित किसी बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करने का निर्देश दिया है। यह आदेश जस्टिस संजय वशिष्ठ ने तब दिया जब उन्होंने दोनों बच्चियों से चैंबर में व्यक्तिगत बातचीत की और उनकी भावनात्मक स्थिति को समझा।
जस्टिस वशिष्ठ ने स्पष्ट कहा कि अदालत का पहला दायित्व बच्चों का कल्याण है। चाहे अभिरक्षा का मामला कानूनी हो या गैरकानूनी, सबसे पहले अदालत को बच्चों के बेहतर भविष्य की चिंता करनी होगी। बातचीत के दौरान बच्चियों ने मां और पिता दोनों के व्यवहार को लेकर अपनी चिंताएं जज से साझा कीं।
कोर्ट के रिकार्ड के अनुसार बच्चियां कई बार माता-पिता को आपस में झगड़ते और यहां तक कि हाथापाई करते देख चुकी हैं। पिता दफ्तर के काम में व्यस्त रहते हैं और देर से घर लौटते हैं जबकि मां अधिकतर समय वर्क-फ्राम-होम में आनलाइन काम में लगी रहती हैं। इस वजह से बच्चियां अक्सर अकेलापन महसूस करती हैं। अदालत ने माना कि यह माहौल उनके कोमल मन और मानसिक विकास के लिए हानिकारक है।
अदालत ने आदेश दिया कि बोर्डिंग स्कूल का खर्चा मां और पिता दोनों मिलकर वहन करेंगे। दाखिले की प्रक्रिया पूरी करने के लिए दोनों पक्षों को बच्चों के साथ स्कूल जाना होगा। कोर्ट ने जिला प्रशासन और स्कूल प्रबंधन को भी इस प्रक्रिया में सहयोग करने का निर्देश दिया है।
फिलहाल अदालत ने यह व्यवस्था की है कि दाखिले की प्रक्रिया शुरू होने से पहले पिता की सहमति से मां दो दिन तक बच्चियों को अपने साथ रख सकती हैं। वहीं बच्चों से मिलने के अधिकार (विजिटेशन राइट्स) को लेकर आगे अलग से फैसला किया जाएगा। जस्टिस वशिष्ठ ने सुनवाई के अंत में यह भी कहा कि अदालत को खुशी होगी यदि अगली पेशी तक माता-पिता अपने मतभेद दूर कर फिर से एक साथ रहने का निर्णय लेते हैं। उन्होंने कहा यदि इस बीच अच्छे विचार हावी होते हैं और माता-पिता पुन मिलकर संयुक्त रूप से रहने लगते हैं तो यह बच्चियों के लिए सबसे बेहतर होगा।
Trending Videos
वैवाहिक विवाद के एक मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने बच्चियों को मानसिक तनाव और पारिवारिक कलह से बचाने के लिए गुरुग्राम स्थित किसी बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करने का निर्देश दिया है। यह आदेश जस्टिस संजय वशिष्ठ ने तब दिया जब उन्होंने दोनों बच्चियों से चैंबर में व्यक्तिगत बातचीत की और उनकी भावनात्मक स्थिति को समझा।
जस्टिस वशिष्ठ ने स्पष्ट कहा कि अदालत का पहला दायित्व बच्चों का कल्याण है। चाहे अभिरक्षा का मामला कानूनी हो या गैरकानूनी, सबसे पहले अदालत को बच्चों के बेहतर भविष्य की चिंता करनी होगी। बातचीत के दौरान बच्चियों ने मां और पिता दोनों के व्यवहार को लेकर अपनी चिंताएं जज से साझा कीं।
विज्ञापन
विज्ञापन
कोर्ट के रिकार्ड के अनुसार बच्चियां कई बार माता-पिता को आपस में झगड़ते और यहां तक कि हाथापाई करते देख चुकी हैं। पिता दफ्तर के काम में व्यस्त रहते हैं और देर से घर लौटते हैं जबकि मां अधिकतर समय वर्क-फ्राम-होम में आनलाइन काम में लगी रहती हैं। इस वजह से बच्चियां अक्सर अकेलापन महसूस करती हैं। अदालत ने माना कि यह माहौल उनके कोमल मन और मानसिक विकास के लिए हानिकारक है।
अदालत ने आदेश दिया कि बोर्डिंग स्कूल का खर्चा मां और पिता दोनों मिलकर वहन करेंगे। दाखिले की प्रक्रिया पूरी करने के लिए दोनों पक्षों को बच्चों के साथ स्कूल जाना होगा। कोर्ट ने जिला प्रशासन और स्कूल प्रबंधन को भी इस प्रक्रिया में सहयोग करने का निर्देश दिया है।
फिलहाल अदालत ने यह व्यवस्था की है कि दाखिले की प्रक्रिया शुरू होने से पहले पिता की सहमति से मां दो दिन तक बच्चियों को अपने साथ रख सकती हैं। वहीं बच्चों से मिलने के अधिकार (विजिटेशन राइट्स) को लेकर आगे अलग से फैसला किया जाएगा। जस्टिस वशिष्ठ ने सुनवाई के अंत में यह भी कहा कि अदालत को खुशी होगी यदि अगली पेशी तक माता-पिता अपने मतभेद दूर कर फिर से एक साथ रहने का निर्णय लेते हैं। उन्होंने कहा यदि इस बीच अच्छे विचार हावी होते हैं और माता-पिता पुन मिलकर संयुक्त रूप से रहने लगते हैं तो यह बच्चियों के लिए सबसे बेहतर होगा।