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Punjab Election Results 2022: बदलाव की बयार में उड़े सियासी दलों के समीकरण, दलित, जट सिख, हिंदू वोट बैंक का गणित फेल
अमर उजाला ब्यूरो, चंडीगढ़
Published by: भूपेंद्र सिंह
Updated Thu, 10 Mar 2022 10:45 PM IST
सार
पंजाब में पारंपरिक दलों ने जातीय, सामाजिक और धर्म के वोट बैंक के हिसाब से समीकरण साधने का प्रयास किया, लेकिन लोग बदलाव चाहते थे।
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भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) की अप्रत्याशित जीत ने सियासी धुरंधरों को भी हैरत में डाल दिया है। सूबे में बदलाव की बयार का अनुमान तो सभी दलों ने लगाया था, लेकिन यह इतनी प्रबलतम होगी, इसका अंदाजा किसी राजनीतिक पंडित को नहीं था। पारंपरिक दलों के जातीय और सामाजिक समीकरण, जिन पर सभी दलों के वोट बैंक टिके हैं, धरे के धरे रह गए और आप की आंधी सभी दलों के काडर वोट तक ले उड़ी।
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प्रत्येक विधानसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी सूबे में कांग्रेस, शिअद, भाजपा व अन्य दल वोटरों की धार्मिक और जातीय संख्या के आधार पर अपने-अपने वोट बैंक को साधने में लगे थे। बेअदबी के आरोपों से घिरी शिअद जट सिखों और पंथक वोटों में अपनी पैठ का आकलन कर रही थी, जबकि किसान आंदोलन का गुस्सा झेल रही भाजपा भी अपने स्तर पर सूबे के हिंदू वोटों और अगड़ी जातियों को अपने साथ जोड़ने में जुटी थी।
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इस दौरान सत्ताधारी कांग्रेस दलित वोटरों और अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटरों का ध्रुवीकरण करके सत्ता में लौटने की रणनीति बना रही थी। कांग्रेस से अलग होकर अपनी पंजाब लोक कांग्रेस का गठन कर चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह और शिअद से अलग हुए सीनियर टकसाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा ने भाजपा के साथ मिलकर त्रिकोणीय गठबंधन भी तैयार किया, जिसका उद्देश्य भाजपा के पारंपरिक वोटों के अलावा पंथक और शहरी वोटों को एकजुट करना था। उधर, शिअद ने बसपा के साथ गठबंधन करके दलित वोटरों को जोड़ने की भरपूर कोशिश की, लेकिन किसी भी दल को कोई कामयाबी नहीं मिली।
आम आदमी पार्टी ने अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत मुफ्त बिजली-पानी देने एलान के साथ की। इसके बाद 18 वर्ष से अधिक की युवतियों और महिलाओं को प्रति माह 1000 रुपये दिए जाने के एलान से पार्टी ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया। आप ने 2017 में पंजाब में 20 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल कर लिया था, लेकिन बीते पांच साल के दौरान पार्टी अंदरूनी कलह का शिकार रही और अपने स्तर पर काडर की स्थापना नहीं सकी।
2022 के लिए मुहिम शुरू करते हुए आप ने लोगों से बदलाव के नाम पर वोट मांगे। अरविंद केजरीवाल और सीएम चेहरा भगवंत मान पूरे प्रचार अभियान के दौरान ‘सिर्फ एक मौका आप को’ के बल पर लोगों को खुद से जोड़ने में सफल रहे।
सिखों की आबादी 57.69 फीसदी
सूबे में 2011 की जनगणना के अनुसार, 57.69 फीसदी आबादी सिखों की है। हिंदुओं की संख्या 38.5 फीसदी जबकि मुसलमानों की आबादी 1.93 फीसदी, ईसाइयों की 1.3 फीसदी, बौद्ध 0.12 फीसदी और जैन 0.16 फीसदी हैं। इन्हीं के बीच दलित वर्ग की तादाद 31.94 फीसदी है, जो देश में किसी भी राज्य के मुकाबले सबसे ज्यादा है।
इनके अलावा, अन्य पिछड़ा वर्ग- सैनी, कंबोज, तरखान/रामगढ़िया, गुर्जर, सुनार, कुम्हार/प्रजापति, तेली, बंजारा और लोहारों की संख्या कुल आबादी का 31.3 फीसदी है। इसी तरह जाट सिख भी कुल आबादी का 21 फीसदी हैं, जबकि बाकी आबादी अन्य अगड़ी जातियों (सामान्य वर्ग)- ब्राह्मण, खत्री/भापा, बनिया, ठाकुर/राजपूत की है।
धर्म और जाति के इस पूरे समीकरण में अकाली दल सिखों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों से जट-सिख वोट हासिल कर लंबे समय तक सत्ता पर काबिज रहा है। वहीं, कांग्रेस को सिखों में अपने काडर वोट के अलावा हिंदू व मुसलमानों के वोट भी सफलता दिलाते रहे हैं। बौद्ध व जैन वर्ग की तादाद भले ही कम है, लेकिन राजनीतिक पार्टियां इन्हें भी दलित वोट बैंक में गिनती रही हैं।
यह भी गौरतलब है कि पंजाब में दलित वर्ग दो भागों- वाल्मीकि समुदाय व रविदासीय समुदाय में बंटा है। कांग्रेस को 2017 में इन दोनों वर्गों का साथ मिला था, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट आम आदमी पार्टी की झोली में गए थे। अगड़ी जातियों और हिंदुओं के वोट हमेशा से भाजपा के साथ रहे हैं, जिसका फायदा शिअद-भाजपा गठबंधन को लंबे समय तक होता रहा। लेकिन इस बार परिस्थितियां पूरी तरह बदल गईं जब उक्त सभी वर्गों ने पारंपरिक दलों से खुद को अलग करते हुए सूबे में सियासी बदलाव की नींव रख दी।