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संगरूर लोकसभा उपचुनाव: 23 साल बाद पंजाब की पंथक सियासत में अकाली दल अमृतसर का उदय, सियासत ने ली नई करवट

सुरिंदर पाल, अमर उजाला, जालंधर (पंजाब) Published by: ajay kumar Updated Mon, 27 Jun 2022 02:24 AM IST
सार

पंजाब का पंथक वोट नया चेहरा तलाश रहा था और पंथक राजनीति में खाली स्थान को भरने के लिए सिमरनजीत सिंह को 23 साल बाद दोबारा सांसद बनाया है और अकाली दल बादल की उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई है। सियासतदानों के मुताबिक, सिमरनजीत सिंह मान पंजाब के पंथक वोटरों को एक मंच पर लाने में कामयाब हो जाते हैं तो पंजाब की सियासत में उनका अहम रोल होगा।

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Rise of Akali Dal Amritsar in Panthak politics of Punjab after 23 years
सिमरनजीत सिंह मान - फोटो : फाइल
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विस्तार
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23 साल बाद पंजाब की पंथक सियासत में अकाली दल (अमृतसर) का दोबारा उदय हुआ है और इन सालों में पंथक वोट के बल पर सूबे में राज करने वाले अकाली दल (बादल) हाशिये पर है। सूबे की सियासत में यह नई करवट है। लगातार खालिस्तान की मांग करने वाले सिमरनजीत सिंह मान की जीत पंथक वोट की बदौलत ही मानी जा रही है। वह 30 बार जेल की हवा भी खा चुके हैं। पंजाब में पंथक राजनीति में रिक्त स्थान सिमरनजीत सिंह मान की जीत से भरता दिख रहा है। मान की जीत से पंथक वोटरों में काफी उत्साह है।

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सीधे आईपीएस के तौर पर भर्ती होने वाले सिमरनजीत सिंह मान ने 18 जून 1984 को अपने पद से इस्तीफा दिया था। छह जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार से वह आहत हो चुके थे। श्री हरमंदिर साहिब पर हुई कार्रवाई ने सिमरनजीत सिंह मान को आहत कर दिया था। उन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार के कुछ दिन बाद ही इस्तीफा दे दिया था। 
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इस्तीफा देने के बाद उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया था। इसके बाद उन्हें कई राज्यों की जेलों में भी रखा गया था। उनकी राजनीति हमेशा सिख पंथ पर केंद्रित रही। 1999 के बाद सिमरनजीत सिंह मान कभी चुनाव नहीं जीते। 1997 में अकाली दल बादल व भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़े। यह वह समय था जब पंजाब की चुनावी राजनीति से वामपंथी पक्ष कमजोर पड़ गया था और गठबंधन ने विधानसभा की 117 में से 93 सीटें जीतीं (अकाली दल 75, भाजपा 18)। 

अकाली दल (बादल) हमेशा पंथक वोट पर आधारित रहा, वहीं भाजपा शहरी वोटरों पर, जिस कारण गठबंधन की तीन बार सरकार बनी। 2017 में बीजेपी के साथ चुनाव लड़ने वाली शिरोमणि अकाली दल के हिस्से 25.2 फीसदी वोट और 15 सीटें आई थीं, अकाली दल का ग्राफ यहीं से तेजी से गिरना शुरू हो चुका था। शिअद (बादल) के कार्यकाल में बेअदबी की घटनाओं, गुरमीत राम रहीम को श्री अकाल तख्त साहब से माफी, बरगाड़ी में सिख संगत पर गोलियां चलाने की घटनाओं ने पंथक वोटरों में अकाली दल (बादल) के प्रति गहरी नाराजगी पैदा कर दी। पंथक वोट अकाली दल से खिसकता जा रहा था। 2019 में अकाली दल लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर सिमट गया।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 13 में से 8, अकाली -भाजपा गठबंधन को चार सीटें, ‘आप’ को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। खडूर साहिब से पंजाब एकता पार्टी से मानव अधिकार कार्यकर्ता मरहूम जसवंत सिंह खालड़ा की पत्नी परमजीत कौर खालड़ा ने चुनाव लड़ा और दो लाख से अधिक वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहीं। इस सीट की खासियत यह थी कि यहां पर सिख संगठनों और वाम संगठनों ने मिल कर खालड़ा के लिए प्रचार किया। 

इससे साफ होता जा रहा था कि पंजाब का पंथक वोट अकाली दल से काफी दूर होता जा रहा है। हाल ही में 2022 के चुनावों में शिरोमणि अकाली दल का वोट फीसदी घटकर 18.36 फीसदी हुआ है लेकिन सीटें सिर्फ तीन हैं, जिसमें एक बसपा के उम्मीदवार की है। यही वजह रही कि 2022 के चुनाव में प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल, बिक्रम सिंह मजीठिया चुनाव हार गए। पंजाब का पंथक वोट नया चेहरा तलाश रहा था और पंथक राजनीति में खाली स्थान को भरने के लिए सिमरनजीत सिंह को 23 साल बाद दोबारा सांसद बनाया है और अकाली दल बादल की उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई है। सियासतदानों के मुताबिक, सिमरनजीत सिंह मान पंजाब के पंथक वोटरों को एक मंच पर लाने में कामयाब हो जाते हैं तो पंजाब की सियासत में उनका अहम रोल होगा।

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