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छुट्टी वाले दिन ज्यादा जलती है पराली, कल के बाद आएगी कमी, लेकिन प्रदूषण से राहत नहीं

आशीष वर्मा, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: ajay kumar Updated Wed, 04 Nov 2020 12:15 AM IST
सार

  • पीजीआई और पीयू ने आठ साल के डाटा का विश्लेषण कर किया दावा
  • 31 अक्तूबर से पांच नवंबर के बीच सबसे ज्यादा जलाई जाती है पराली 

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Stubble burning cases will reduce after November 5 in Haryana and Punjab
फाइल फोटो। - फोटो : PTI
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विस्तार
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पंजाब-हरियाणा सहित दिल्ली व एनसीआर में इस समय प्रदूषण खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। बीते दो दिन में वायु प्रदूषण में जबरदस्त इजाफा देखने को भी मिला है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय पंजाब-हरियाणा में सबसे ज्यादा पराली जलाई जा रही है। इसमें पांच नवंबर के बाद गिरावट आएगी। चिंताजनक बात यह है कि उसके बाद भी प्रदूषण के स्तर में कोई कमी नहीं आने वाली।

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पीजीआई चंडीगढ़ और पंजाब विश्वविद्यालय के पर्यावरण विशेषज्ञों ने सैटेलाइट डाटा के जरिए पिछले आठ साल के आंकड़ों का विश्लेषण कर पाया है कि 31 अक्तूबर से पांच नवंबर के बीच सबसे ज्यादा पराली जलाई जाती है। उसके बाद इसमें गिरावट आने लगती है। इसका कारण यह है कि नवंबर के पहले सप्ताह के बाद किसान दूसरी फसल की तैयारी में जुटते हैं। हालांकि, इस बार पिछले साल के मुकाबले पराली जलाने की घटनाओं में कोई कमी नहीं है।
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हवा से कण निकलने में लगते हैं 14 से 28 दिन  
पीजीआई के पर्यावरण विज्ञान विशेषज्ञ रविंद्रा खैवाल ने बताया कि पराली से निकलने वाले कण को हवा से निकलने में कम से कम 14 से 28 दिन का वक्त लगता है। यदि इस दौरान मैदानी इलाकों में बारिश व पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी होती है तो इससे जल्दी से राहत मिलेगी। जो बड़े कण हैं, उनसे छुटकारा जल्द मिलेगा। लेकिन छोटे कण को हवा से हटने में समय लगता है। 

पराली जलाने में इसलिए नहीं आई कमी :

Stubble burning cases will reduce after November 5 in Haryana and Punjab

पंजाब विश्वविद्यालय की पर्यावरण विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सुमन मोर ने बताया कि पराली में कमी नहीं आने के पीछे दो मुख्य कारण हैं। कोरोना की वजह से किसानों की आय काफी प्रभावित हुई है और पराली को हटाने में काफी पैसा खर्च होता है। दूसरा कारण, कृषि कानून के खिलाफ किसानों का गुस्सा है। वे अपना गुस्सा पराली को जलाने में दिखा रहे हैं।

छुट्टियों में सबसे ज्यादा जलती है पराली 
पर्यावरण विज्ञानी ने पराली जलाने का एक और ट्रेंड पाया है। उनके मुताबिक छुट्टियों के दिन पराली जलाने की घटनाएं सबसे ज्यादा दर्ज की जाती हैं। 19 सितंबर से लेकर दो अक्तूबर के बीच पराली जलाने का ग्राफ शनिवार व रविवार को सबसे ऊपर रहा है।

इस संबंध में पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सुमन मोर ने बताया कि दरअसल किसानों के अंदर सोच है कि पराली की निगरानी करने वाले अफसर शनिवार व रविवार को गश्त पर नहीं निकलते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें कानूनी कार्रवाई का डर नहीं रहता। बीते शनिवार (31 अक्तूबर) को सैटेलाइट में 3823 जगहों पर आग लगने की घटनाएं कैद हुईं। इसका मतलब है कि इस दिन सबसे ज्यादा पराली जलाई गई थी।
 

  • कब                उत्तर भारत में कितनी जगह जलाई गई पराली
  • 28 अक्तूबर                  2642    
  • 29 अक्तूबर                  1657
  • 30 अक्तूबर                  3394
  • 31 अक्तूबर                  3823
  • 01 नवंबर                    3519
  • 02 नवंबर                    3620

हरियाणा-पंजाब में कहां कितना प्रदूषण 

  • जिला     वायु गुणवत्ता सूचकांक
  • जालंधर       220 
  • जींद            379
  • कैथल         360
  • लुधियाना   248
  • मंडी गोबिंदगढ़ 248
  • करनाल      273
  • पानीपत     386
  • चंडीगढ़      126
  • पंचकूला   165

(सोमवार शाम 4 बजे तक के आंकड़े)

ऐसे तय की जाती है श्रेणी 
वायु गुणवत्ता सूचकांक 100 तक रहने पर शहर को हरी श्रेणी, 100 से 200 के बीच में पीली श्रेणी, 200 से 300 के बीच नारंगी श्रेणी और 300 से ज्यादा स्तर पहुंचने पर लाल श्रेणी में रखा जाता है।

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