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Bilaspur: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की
अमर उजाला नेटवर्क, बिलासपुर
Published by: आकाश दुबे
Updated Mon, 05 May 2025 11:16 PM IST
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सार
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने दावा किया कि संगठन के खिलाफ एक भी ऐसी घटना नहीं है, जिसमें यह घोषित किया गया हो कि यह गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल है।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
- फोटो : highcourt.cg.gov.in

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विस्तार
हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम (सीवीजेएसए) के तहत जारी राज्य सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी। आदिवासी संगठन-मूलवासी बचाओ मंच (एमबीएम) ने गैरकानूनी संगठन घोषित करने पर याचिका दायर की थी। कोर्ट ने कहा कि अगर राज्य सरकार के पास अपनी खुफिया रिपोर्ट है तो वह ऐसी कार्रवाई कर सकती है।
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चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि संगठन पंजीकृत नहीं था और वैसे भी, मामला सीवीजेएसए की धारा 5 के तहत गठित सलाहकार बोर्ड के समक्ष समीक्षा के लिए लंबित था। कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि किसी संगठन को गैरकानूनी घोषित करने के लिए, पहले आपको हमें यह बताना होगा कि क्या इस संगठन की कोई कानूनी वैधता है। आपको पहले यह स्थापित करना होगा। अन्यथा समाज में इतने सारे लोग हैं कि वे एक संघ चला सकते हैं और गतिविधियां कर सकते हैं। याचिका में कहा गया था कि अधिसूचना जारी होने के बाद, एमबीएम के कई सदस्यों को केवल संगठन से जुड़े होने के कारण गिरफ्तार किया गया है। इसमें याचिकाकर्ता रघु मिडियामी भी शामिल हैं, जो एमबीएम के संस्थापक और पूर्व अध्यक्ष हैं।
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याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने दावा किया कि संगठन के खिलाफ एक भी ऐसी घटना नहीं है, जिसमें यह घोषित किया गया हो कि यह गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल है। राज्य की ओर से उपस्थित हुए महाधिवक्ता ने कहा कि कार्रवाई के कारण बताए गए हैं। उन्होंने अक्टूबर 2024 की अधिसूचना का उल्लेख करते हुए कहा कि संगठन माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में सरकार द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों का लगातार विरोध कर रहा है और आम जनता को भड़का रहा है।अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि संगठन कानून के प्रशासन में हस्तक्षेप कर रहा है और कानून द्वारा स्थापित संस्थाओं की अवज्ञा को बढ़ावा दे रहा है। इस तरह सार्वजनिक व्यवस्था, शांति को भंग कर रहा है और नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डाल रहा है। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।